लाठी से जान लेना क्या छोटा गुनाह है? मॉब लिंचिंग में मारे गए अखलाक के परिवार का कोर्ट में सवाल

2015 में नोएडा के दादरी में हुई मोहम्मद अखलाक की मॉब लिंचिंग केस में आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने के उत्तर प्रदेश सरकार के कदम पर कोर्ट 23 दिसंबर को दोनों पक्षों की दलीलें सुनेगी. मामले से जुड़े एक वकील ने बताया कि गौतम बुद्ध नगर जिले की सूरजपुर फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने गुरुवार को यह तारीख तय की है. बता दें, अखलाक के घर बीफ रखा होने की अफवाह फेलने के बाद बिसाहड़ा में भीड़ ने उनके घर पर हमला कर दिया था और लाठी-डंडों से पीटकर-पीटकर उनकी हत्या कर दी थी.
राज्य सरकार ने ग्रेटर नोएडा के जारचा पुलिस स्टेशन इलाके में अखलाक की लिंचिंग के सिलसिले में सभी आरोपियों के खिलाफ केस वापस लेने के लिए कोर्ट से इजाजत मांगी है. यह मामला 10 साल पहले हुआ था और इसने पूरे देश में गुस्सा भड़का दिया था. सरकार के इस कदम के खिलाफ परिजनों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की है, उन्होंने सवाल किया कि क्या डंडों से की गई हत्या कोई छोटा अपराध है?
23 दिसंबर को कोर्ट के सामने पेश होंगे दोनों पक्ष
यह मामला गुरुवार को एडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज की कोर्ट में आया, जहां केस वापस लेने की अर्जी पर सुनवाई हुई. अखलाक के परिवार के वकील यूसुफ सैफी ने कहा कि कोर्ट ने दोनों पक्षों से 23 दिसंबर को अपने विचार पेश करने को कहा है. सैफी ने आगे बताया, “कोर्ट ने केस वापस लेने की अर्जी पर दलीलें सुनने के लिए 23 दिसंबर की तारीख तय की है. दोनों पक्षों को उस तारीख को अपनी बात रखने का निर्देश दिया गया है.”
वकील के मुताबिक प्रॉसिक्यूशन ने कोर्ट में पेंडिंग केस वापस लेने के लिए अर्जी दी थी. राज्य सरकार और प्रॉसिक्यूशन के जॉइंट डायरेक्टर के निर्देशों पर यह अर्ज़ी असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट गवर्नमेंट एडवोकेट (क्रिमिनल) ने दायर की थी. अधिकारियों के मुताबिक अर्जी में कहा गया है कि सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के हित में केस वापस लेने की मांग की गई है.
वापसी याचिका पर परिवार ने क्या कहा?
पिछले महीने एडिशनल डिस्ट्रिक्ट सरकारी वकील भाग सिंह भाटी की ओर से दायर सरकारी वापसी याचिका में दावा किया गया था कि केस वापस लेने से सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने में मदद मिलेगी. इसमें हमले के दौरान हथियारों की कमी, पार्टियों के बीच कोई पुरानी दुश्मनी न होने और एक विवादित फोरेंसिक रिपोर्ट का हवाला दिया गया था. जिसमें कहा गया था कि अखलाक के घर में मिला मांस गाय या उसके बछड़े का था.
याचिका में यह भी कहा गया था कि अब तक सिर्फ़ एक मुख्य गवाह का बयान दर्ज किया गया है. अखलाक के परिवार ने इन आधारों पर कड़ी आपत्ति जताई. उनकी आपत्ति याचिका में सवाल उठाया गया कि क्या लाठियों से पीट-पीटकर किसी आदमी की हत्या करना कोई छोटा अपराध माना जा सकता है और इस दावे को चुनौती दी गई कि केस वापस लेने से सद्भाव बढ़ेगा. परिवार के वकील सैफी ने कहा, “एक बार FIR दर्ज हो जाती है, चार्जशीट दायर हो जाती है और आरोप तय हो जाते हैं. अभियोजन पक्ष पहले ही अपने सबूत पेश कर चुका है और अखलाक की बेटी शैस्ता का बयान दर्ज किया जा चुका है. दो मुख्य गवाह – अखलाक का बेटा दानिश और उसकी पत्नी इकरमन अभी गवाही देने बाकी हैं.”
उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश के बाद फैसला
अधिकारियों ने बताया कि कोर्ट जाने का फैसला 26 अगस्त 2025 को लखनऊ में उत्तर प्रदेश सरकार के जस्टिस सेक्शन-5 (क्रिमिनल) की ओर से जारी एक सरकारी आदेश के बाद लिया गया था. बता दें, अखलाक की सितंबर 2015 में बिसाहड़ा में उनके घर पर भीड़ ने हमला करके हत्या कर दी थी, इस अफवाह पर कि वहां बीफ रखा हुआ था. इस घटना ने मॉब वायलेंस और सांप्रदायिक तनाव पर राष्ट्रीय बहस छेड़ दी थी.



