बांग्लादेश की पूर्व पीएम खालिदा जिया का निधन

- हसीना भारत में, यूनुस के लिए खुला मैदान!
- चुनावी अनुमान, भारत को फायदा या फिर नुकसान!
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। पूर्व पीएम खालिदा जिया की मौत के बाद बांग्लादेश की राजनीति ने एक ऐसा मोड़ ले लिया जिसने पूरे दक्षिण एशिया के सियासी संतुलन को हिला दिया। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्ष की सबसे बड़ी आवाज रहीं खालिदा जिया का निधन हो गया है। यह महज एक नेता की मृत्यु नहीं बल्कि उस राजनीतिक धुरी का टूटना है जिस पर दशकों से बांग्लादेश की सत्ता घूमती रही है।
एक तरफ खालिदा जिया का जाना दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का भारत में राजनीतिक शरण लेना और तीसरी ओर सत्ता की बागडोर यूनुस के हाथों में होना। चुनावी मौसम में बन रहे इस त्रिकोण से उपजी राजनीतिक स्थिति का आलंकलन आसानी से नहीं किया जा सकता। इन तीनों घटनाओं ने मिलकर बांग्लादेश की राजनीतिक पिच को लगभग खाली कर दिया है। और जब राजनीति में मैदान खाली होता है तो सबसे तेज दौड़ वही जीतता है जो सत्ता के सबसे करीब होता है।
भारत की कूटनीति विफल हो रही है?
यह सवाल अब दिल्ली के रणनीतिक हलकों में भी उठने लगा है कि भारत ने एक ही नेतृत्व पर भरोसा किया वैकल्पिक राजनीतिक संवाद को नजरअंदाज किया गया और बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति को स्थिर मान लिया गया। लेकिन जमीनी हकीकत बदल चुकी है। सवाल यह नहीं कि भारत की कूटनीति पूरी तरह विफल हुई है या नहीं सवाल यह है कि क्या भारत ने बदलाव को समय रहते पहचाना? खालिदा जिया का निधन बांग्लादेश की राजनीति में एक युग का अंत है। शेख हसीना का भारत में होना एक असहज सच्चाई है। और यूनुस का सत्ता में होना एक नया प्रयोग। यह चुनाव सिर्फ बांग्लादेश का नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की दिशा तय करेगा। और भारत के लिए यह चुनाव फायदे से ज़्यादा चुनौतियों का संकेत देता है। अब देखना यह है कि भारत इस बदलते राजनीतिक नक्शे में खुद को कैसे पुन: स्थापित करता है।
क्या भारत की चुनौती बढ़ेगी
भारत लंबे समय से शेख हसीना को बांग्लादेश में सबसे भरोसेमंद साझेदार मानता रहा है। सीमा सुरक्षा, आतंकवाद, व्यापार और चीन के प्रभाव को संतुलित करने में हसीना सरकार भारत के लिए अहम रहीं हैं। लेकिन मौजूदा हालात में भारत के सामने कई बड़ी चुनौतियां पैदा हो गयी हैं। भारत का भरोसेमंद चेहरा कमजोर हुआ है। शेख हसीना का भारत में होना भारत कूटनीतिक रूप से असहज स्थिति पैदा कर रहा है यूनुस की अनिश्चितता भी भारत के लिए बड़े सवाल पैदा कर रही है। यूनुस खुले तौर पर भारत विरोधी नहीं हैं लेकिन वह भारत केंद्रित भी नहीं हैं। उनकी राजनीति अंतरराष्ट्रीय नैतिकता पर टिकी है जो भारत के क्षेत्रीय हितों से कई बार टकरा सकती है। वहीं खालिदा जिया की मौत के बाद भारत विरोधी नैरेटिव का उभार तेजी से फैल रहा है।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले चिंता बढ़ाएंगे
सबसे गंभीर चिंता का विषय है बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमले। राजनीतिक अस्थिरता का सबसे पहला शिकार हमेशा अल्पसंख्यक ही होते हैं। बंग्लादेश में हाल के महीनों में मंदिरों पर हमले किये गये हैं। वहां धार्मिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है और अल्पसंख्यकों को राजनीतिक मोहरा बनाने की घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं। यह घटनाएं सिर्फ मानवाधिकार का मुद्दा नहीं बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ा मामला है।
नामंकन के दूसरे दिन मौत, सस्पेंस
चुनाव नामांकन की प्रक्रिया चल रही थी। और बेगम खालिदा जिया ने ठीक एक दिन पहले देश में होने जा रहे चुनावों के लिए अपना नामंकन पर्चा दाखिल किया था। तभी खालिदा जिया के निधन की खबर आयी। यह खबर सिर्फ बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के लिए नहीं बल्कि पूरे चुनावी माहौल के लिए बड़ा झटका बनी बीएनपी पहले ही नेतृत्व संकट से जूझ रही थी। खालिदा जिया लंबे समय से बीमार चल रही थी। वह सक्रिय राजनीति से भी दूर थी लेकिन पार्टी की आत्मा वही थीं। अब उनके जाने के बाद पार्टी एक बार फिर उसी सवाल पर अटक गई है कि नेतृत्व कौन करेगा?
बांग्लादेश की राजनीति का सबसे संवेदनशील अध्याय
बंग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का भारत में होना बांग्लादेश की राजनीति का सबसे विवादास्पद मुद्दा बन चुका है। उनके समर्थक इसे सुरक्षा और रणनीतिक मजबूरी बता रहे हैं जबकि विरोधी इसे देश छोड़कर भागने के रूप में पेश कर रहे हैं। सड़कों और सोशल मीडिया पर यह सवाल लगातार उठ रहा हैं कि अगर हसीना इतनी लोकप्रिय थीं तो देश में क्यों नहीं हैं? और यही सवाल धीरे धीरे भारत तक पहुंच रहा है और भारत विरोधी नैरेटिव को धार दे रहा है।
बेटा लौटा लेकिन सियासी जमीन नहीं
17 सालों बाद बंग्लादेश वापस लौटे जिया के बेटे के लिए राहे आसान नहीं है। खालिदा जिया के बेटे जिन पर पार्टी की पूरी दारोमदार थी 17 वर्षों बाद देश लौटे हैं। लेकिन उनकी वापसी एक मजबूत राजनीतिक पुनरागमन से ज्यादा एक प्रतीकात्मक मौजूदगी लगती है। क्योंकि उनके पास न तो सरकार है, न प्रशासनिक पकड़ न ही सड़कों पर जनसमर्थन और न ही सत्ता में वापसी की स्पष्ट रणनीति बीएनपी आज उस स्थिति में है जहां सहानुभूति तो है लेकिन संगठन नहीं। और चुनाव सहानुभूति से नहीं संगठन और संसाधनों से जीते जाते हैं।
यूनुस के लिए रास्ता साफ
बंग्लादेश की ताजा राजनीतिक स्थिति में सबसे मजबूत खिलाड़ी यूनुस ही दिखायी दे रहे हैं। क्योंकि सत्ता की कमान उनके हाथ में है और इस समय न तो उनके सामने खालिदा जिया जैसी अनुभवी विपक्षी नेता हैं और न ही शेख हसीना जैसा मजबूत राजनीतिक चेहरा। यूनुस को लेकर जो सबसे अहम बात है वह यह कि वह पारंपरिक राजनीतिज्ञ नहीं हैं। उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल है। और वे खुद को नैतिक विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं। ऐसे समय में जब जनता पारंपरिक राजनीति से ऊब चुकी है तो यूनुस जैसा राजनीतिक माडल की एक्सपेक्टेंस बड़ जाती है।



