‘SIR के कारण हुई पिता की मौत’, परिवार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और CEO पर लगाए आरोप

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में चुनाव आयोग की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया के बीच एक के बाद एक बुजुर्ग मतदाताओं की मौत ने हड़कंप मचा दिया है। सुनवाई के नोटिस मिलने के बाद दो बुजुर्गों की मौत हो गई, जबकि तीसरे ने खुदकुशी कर ली है।
परिवारों ने इन मौतों के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
पुरुलिया जिले के 82 साल के दुर्जन माझी को सुनवाई का नोटिस मिला था। उनके बेटे कनई ने बताया कि पिता का नाम 2002 की फिजिकल वोटर लिस्ट में था, लेकिन चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अपलोड लिस्ट में नहीं दिख रहा था।
इसी वजह से नोटिस भेजा गया। सुनवाई से कुछ घंटे पहले ही दुर्जन माझी चलती ट्रेन के आगे कूद गए और उनकी मौत हो गई।
परिवारों की क्या हैं शिकायतें?
हावड़ा के 64 साल के जमात अली शेख को भी सुनवाई का नोटिस मिला था। नोटिस मिलने के कुछ ही घंटों बाद सोमवार को उनकी मौत हो गई। उनके बेटे ने शिकायत में कहा कि उनके पिता वैध मतदाता थे, लेकिन CEC और CEO ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर उन्हें मानसिक तनाव में डाल दिया, जिससे मौत हुई।
ये दोनों परिवारों ने पुलिस में CEC ज्ञानेश कुमार और CEO मनोज अग्रवाल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। वे मानते हैं कि SIR प्रक्रिया में भेजे गए नोटिस ने उनके बुजुर्गों को इतना परेशान कर दिया कि मौत हो गई।
चुनाव आयोग की सफाई
चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने इन शिकायतों पर कहा कि CEC के खिलाफ कोई FIR दर्ज नहीं की जा सकती। कानून में इसकी साफ व्यवस्था है। इसी तरह, CEO भी अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते हुए किसी आपराधिक मामले में जिम्मेदार नहीं ठहराए जा सकते। अगर पुलिस कोई FIR दर्ज करती है तो उसके कानूनी नतीजे होंगे।
आयोग ने 27 दिसंबर को एक नोटिफिकेशन जारी किया था। इसमें कहा गया कि तकनीकी गड़बड़ी की वजह से करीब 1.3 लाख मतदाताओं के नाम 2002 की फिजिकल लिस्ट में तो हैं, लेकिन ऑनलाइन डेटाबेस में नहीं दिख रहे। ऐसे मतदाताओं को सुनवाई के लिए नहीं बुलाया जाएगा।
नोटिस से परेशान होकर की खुदकुशी?
पूर्वी मिदनापुर में मंगलवार को 75 साल के बिमल शी को भी सुनवाई का नोटिस मिला था। नोटिस से परेशान होकर वे घर में फांसी लगा ली। SIR प्रक्रिया में 2002 की वोटर लिस्ट को आधार बनाया जा रहा है।
कई मतदाताओं को अपने या परिवार के नाम उस लिस्ट में न मिलने पर सुनवाई के लिए बुलाया जा रहा है। तकनीकी समस्या के बावजूद कुछ नोटिस भेजे गए। परिवारों का कहना है कि वैध मतदाताओं को इस तरह परेशान करना गलत है।

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