प्रशासन की बड़ी लापरवाही आई सामने: गौ आश्रय केंद्र सिर्फ नाम का?असल में गाय कहार रही हैं! अपनी दयनीय स्थिति पर
सुष्मिता मिश्रा
प्रशासन है मस्त,गाय हुई अपनी जीवन से त्रस्त!जी हां जहां एक तरफ सरकार गौ आश्रय केंद्र को लेकर चिंतित नजर आ रही है,और हर प्रकार से गौ सुरक्षा के लिए वादे और इंतजाम कर रही है। जिससे यह साफ पता चलता है की सरकार कितनी सजग दिख रही है, गौ पशुओं के लिए! किंतु प्रशासन की लचक, प्रशासन व्यवस्था की कमी साफ देखी जा सकती है, जी हां आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मंडल के मोहनलालगंज विकासखंड के कमलापुर विचलिका गांव का है। जहां पर प्रशासन द्वारा गौ आश्रय केंद्र बनाया गया था, और वहां के पशुओं को आश्रय दिया गया था।
कागजी कार्यवाही में प्रशासन ने अपने ऊपर बैठे आका को गांव आश्रय ठीक-ठाक होने का अनुमान बताया और पैसा पास करवा लिया गया। किंतु जब संवाददाता ने उस गांव के गौ आश्रय केंद्र पहुंचकर उस केंद्र का जायजा लिया तो वहां पर ना तो पशुओं को बैठने की सुनिश्चित व्यवस्था थी और ना ही उनके खाने के लिए उचित व्यवस्था।
वहां पर गौ माता कहे जाने वाली गाय भूख प्यास से व्याकुल दलदल के ढेर में अपने प्राण त्यागने के कगार पर लेटि नजर आई।जहां पर अध मरे गाय अपने प्राण त्यागने की स्थिति पर पड़ी थी ऐसी भयावह घटना समक्ष रूप घट रही थी। संवाददाता के अनुसार उस आश्रय केंद्र पर ना तो कोई कर्मचारी दिख रहा था और ना ही कोई व्यवस्था थी। कईयों की संख्या में वहां पशु गाय तड़प रही थी।भूख प्यास से व्याकुल अपने प्राण को त्यागने के लिए छटपटा रही थी।
गाय अपनी तनी स्थिति पर आंसू बहा रही थी।जिससे यह साफ नजर आ रहा है, कि जो सरकार द्वारा गौ आश्रय केंद्र खोलने का पैसा पास किया जाता है। वह असल में प्रशासन के आला अधिकारियों द्वारा डकार लिया जाता है। जिसमें प्रधान,ग्राम विकास अधिकारी जैसे अधिकारी शामिल होते हुए साफ दिख जाते हैं। जहां पर उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ द्वारा गाय हमारी माता है का नारा लगाते हुए गौ आश्रय के लिए तमाम योजनाएं लाए। किंतु प्रशासन के आला अधिकारियों द्वारा सिर्फ पैसों का बंदरबांट कर कागजी कार्यवाही पूर्ति खाना कर दी जाती है।
पर असल में गांवो के आश्रय केंद्र में गाय अपने जीवन से हाथ धोती हुई नजर आती है।यह सब गांव के प्रधान,ग्राम विकास अधिकारी से लेकर आला अधिकारी तक की मिलीभगत से ऐसे कृत्य संभव हो पाते है।जब संवाददाता ने आला अधिकारियों से ऐसी भयावह स्थिति के विषय में रूबरू करवाया,तो उन्होंने सिर्फ यह कहते हुए आश्वासन दे दिया कि सब ठीक है और हमारी निगरानी में सभी प्रकार की व्यवस्थाएं सुनिश्चित कराई जा रही है। आखिर यही व्यवस्था है प्रशासन की, आखिर कब तक प्रशासन अपनी कार्यशैली को बदनाम करता हुआ नजर आएगा।जिससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि, प्रशासन है मस्त गाय अपने जीवन से त्रस्त। ऐसा उत्तर प्रदेश के कई गांवों में देखा जा सकता है।जहां पर गौ आश्रय केंद्र के नाम पर सिर्फ वहां गाय अन्य पशु अपने जीवन के लिए तड़पते हुए नजर आएंगे। एक प्रश्न उठता है सरकार के समक्ष,की आखिर प्रशासन की ऐसी घोर लापरवाही कब तक चलेगी! कब तक यूं ही गाय मां का रूप कहे जाने वाली गायों को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ेगी! आखिर कब प्रशासन कुंभकरण की नींद जागेगा।