बार-बार सत्र स्थगित होना ‘अलोकतांत्रिक’

  • सदनों में सार्थक बहस हो, सत्ता व विपक्ष निभाए जिम्मेदारी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। जिस तरह से संसद व राज्यों के विधानसभाएं सत्र के दौरान हंगामे की भेंट चढ़ जाती है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। क्या सत्ता क्या विपक्ष दोनों ही के सदस्य गंभीर मुद्दो पर बहस के दौरान शोर-शराबा करके सदनों की कार्यवाही को बाधित करते है। कभी-कभी मामला इतना बढ़ जाता है कि पीठासीन अधिकारियों को कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है। इस तरह जनता के गंभीर मुद्दों की अनदेखी हो जाती है। जिस प्रतिनिधि को जनता ने संसद में अपनी बात रखने के लिए भेजा है वह वहा तमाशाबीन बनकर रह जाते हैं।
कभी-कभी विपक्ष असंसदीय एवं आक्रामक तरीका ज्यादा से ज्यादा अपनाकर अपने विरोध को विराट बनाने के लिये सार्थक बहस की बजाय नारेबाजी एवं संसद को अवरुद्ध करने का तरीका अपनालेता हैै, उससे लोकतंत्र की मर्यादाएं एवं गरिमा तार-तार हो रही है। बजट सत्र को इस तरह से हंगामेदार तो होना ही था, लेकिन बड़ा प्रश्न है कि देश का सर्वोच्च लोकतांत्रिक मंच कब तक बाधित होता रहेगा, संवाद और विमर्श के लिए उपयुक्त पात्रता कब सामने आयेगी। मानो दलों ने प्रण कर लिया है कि वह किसी भी सत्र को सुगम तरीके से नहीं चलने देगा। उसने न बेहतर सुझाव दिये हैं, न ही बुनियादी मुद्दों को उठाया है और न ही स्वच्छ आलोचनात्मक रुख अपनाकर सरकार का सहयोग किया है। संसद में नारेबाजी, अध्यक्ष की आसंदी तक जाकर हंगामा आदि सदस्यों की आदत बन गई है। इसी वजह से लोकसभा अध्यक्ष को भी कहना पड़ता है कि ‘जनता सब देख रही है। लगातार संसदीय अवरोध का कायम रहना लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। लोकतंत्र में संसदीय अवरोध जैसे उपाय किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर सकते। कहीं कोई स्वयं शेर पर सवार हो चुका है तो कहीं किसी नेवले ने सांप को पकड़ लिया है। न शेर पर से उतरते बनता है, न सांप को छोड़ते बनता है। यह स्थिति देश के लिये नुकसानदायी है। देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार सत्तारुढ़ होने के बाद से विपक्ष हंगामे पर उतारू है।
हालांकि जब कांग्रेस-नीत गठबंधन थी तब भाजपा विपक्ष में थी वह भी ऐसे ही विरोध करके संसद का समय खराब करती थी। विरोध देशहित नहीं है, स्वहित है। जब से हिंडनबर्ग का सर्वेक्षण आया है, विपक्ष के निशाने पर सरकार को लाने के लिये हंगामे खड़े कर दिये हैं। विपक्षी दलों की मांग है कि इस मामले में सरकार जवाब दे। इस हंगामे के चलते संसद का बजट सत्र बार-बार स्थगित करना पड़ा। कामकाज बाधित रहे। इस मसले पर स्वस्थ चर्चा का माहौल बनना चाहिए, न कि हंगामे खड़े करके देश की संसद को अकर्मण्य एवं निस्तेज बना दिया जाये। संसद में उठाने के लिए विपक्ष के पास और मुद्दे भ हैं। हो सकता है सरकार की अडाणी या अन्य मामलों में विफलताएं रही हों, लेकिन देश की समस्याएं भी अनेक हैं, विकास के अनेक मुद्दे हैं, क्यों नहीं विपक्ष उन पर चर्चा करता। संसदीय अवरोध कोई लोकतांत्रिक तरीका नहीं है, उससे हम प्रतिपल देश की अमूल्य धन-सम्पदा एवं समय-सम्पदा को खोते हैं। जिनकी भरपाई मुश्किल है। इसके साथ ही राजनीतिक मूल्य, भाईचारा, सद्भाव, लोकतंत्र के प्रति निष्ठा, विश्वास, करुणा यानि कि जीवन मूल्य भी खो रहे हैं। मूल्य अक्षर नहीं होते, संस्कार होते हैं, आचरण होते हैं। उन्माद, अविश्वास, राजनैतिक अनैतिकता, गैरजिम्मेदाराना व्यवहार, दमन एवं संदेह का वातावरण उत्पन्न हो गया है। उसे शीघ्र कोई दूर कर सकेगा, ऐसी सम्भावना दिखाई नहीं देती। ऐसी अनिश्चय, आशंका और भय की स्थिति किसी भी राष्ट्र के लिए संकट की परिचायक है। विशेषत: लोकतंत्र के लिये दुर्भाग्यपूर्ण है। देश की सियासत को धर्मों में बांटने की कोशिशें की जा रही हैं। सियासत में ध्रुवीकरण की राजनीति जमकर हो रही है। मुस्लिम समाज अपनी गलतफहमियों को दूर करे। यद्यपि संविधान में सभी को अपना धर्म मानने और प्रचार करने की आजादी दी गई है।

सशक्त मुद्दों को उठाकर मजबूत हो सकता है विपक्ष

विपक्ष सशक्त मुद्दों को उठाकर, शालीन एवं शिष्टता का परिचय देकर न केवल स्वयं को मजबूती दे सकता है, बल्कि असंख्य जनता का विश्वासपात्र भी बन सकता है, लेकिन ऐसा न होना विडम्बनापूर्ण है। संसद के कामकाज में बाधा डालकर विपक्ष न केवल अपने को कमजोर साबित कर रहा है बल्कि भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद को भी खोखला कर रहा है। अच्छा होता अगर वह संसद का इस्तेमाल सरकार से तीखे सवाल करने के लिए करता, अडानी मुद्दे में सरकार की अतियों को खोजता, आम जनता से जुड़ मुद्दों पर सरकार की विफलता को उजागर करता, सरकार की नीतियों को सशक्त बनाने में सार्थक बहस करने में करता। उसके पास इसके लिए मुद्दों की कमी नहीं हैं। खासतौर पर अव्यवस्था, बेरोजगारी, भारत-चीन विवाद, जातीय जनगणना, बढ़ती महंगाई, गिरती कानून व्यवस्था आदि कई मुद्दों पर सार्थक संसदीय बहस के द्वारा विपक्ष स्वयं को जिम्मेदार होने का अहसास कराता। विपक्ष को इन मुद्दों पर सरकार को घेरना चाहिए था। सदन की गरिमा अक्षुण्ण रखना विपक्ष का भी दायित्व है। लोकसभा कुछ खम्भों पर टिकी एक सुन्दर ईमारत ही नहीं है, यह एक अरब तीस करो? जनता के दिलों की ध?कन है। उसके एक-एक मिनट का सदुपयोग हो। वहां शोर, नारे और अव्यवहार न हो, अवरोध पैदा नहीं हो। ऐसा होना निर्धन जन और देश के लिए हर दृष्टि से महंगा सिद्ध होता है।

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