पंद्रह सालों से ज्यादा समय से लखनऊ में जमे अशोक सिंह पर नहीं चलता कोई कानून
नियम कायदे से ऊपर मुख्य कर निर्धारण अधिकारी अपर नगर आयुक्त के कमरे पर जमायेहैं कब्जा
खुद बैठने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं अपर नगर आयुक्त अनूप बाजपेई
मो. शारिक
लखनऊ। नगर निगम के मुख्य कर निर्धारण अधिकारी अशोक सिंह लगातार विवादों में बने हुए हैं। अशोक सिंह के लिए सभी नियम कायदे भी कोई मायने नहीं रखते हैं। वो जो चाहते हैं, करते हैं। यही वजह है कि वो जोनल और जोन 3 के जोनल भी रह चुके हैं। आलम तो ये है कि अशोक सिंह कई सालों से अपर नगर आयुक्त का कमरा तक कब्जाए हुए हैं। जबकि खुद अपर नगर आयुक्त के पद पर तैनात हुए अनूप बाजपेई बैठने के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। क्योंकि उनका खुद का कोई मुकम्मल ठिकाना ही नहीं रहा है।
इतना ही नहीं अशोक सिंह ने अपनी सेवाकाल के अधिकांश वर्ष नगर निगम लखनऊ में ही बिता दिए। ये इनके प्रभाव का ही असर है कि इनका लखनऊ से इतर कहीं ट्रांसफर भी नहीं किया जाता है। जबकि खुद नगर निगम कर्मचारियों के ट्रांसफर में बड़े खेल करते हैं और अपने चहीतों को मनचाही जगहों पे भेज देते हैं। अशोक सिंह के ये ही लाडले कई वर्षों से नगर निगम के सभी जोनो को चूना लगा रहे हैं। अशोक सिंह एक लंबे समय से पूरे विभाग को दीमक की तरह कुतर रहे हैं, लेकिन उनके लिए कोई नियम कायदे मायने नहीं रखते हैं।
अपने लाडलों को लाभ के पदों पर बिठाकर लगा रहे निगम को चूना
शासन में अपनी पहुंच के चलते कई नगर निगमों के बदल जाने के बावजूद अशोक सिंह अपनी जगह से नहीं हिलते हैं। वहीं अपने करीबियों को फायदे के पदों पर बिठाकर उनसे लाभ कमा रहे हैं। अपने करीबी पंकज अवस्थी को प्रचार का काम थमा कर होर्डिंग और यूनीपोल में भी बड़ा घोटाला कर रहे हैं। अशोक सिंह की साठ गांठ के चलते ही कई बड़ी एजेंसियों के बकाया का भी पता नहीं चल पाता है। इकाना स्टेडियम का योनिपोल गिरने के बाद बड़ी-बड़ी एजेंसियों की पोल खुलती नजर आ रही है। ऐसी न जाने और कितनी कंपनियां हैं, जो अशोक सिंह और पंकज अवस्थी की सांठ-गांठ से नगर निगम को चुना लगा रही हैं। इतना ही नहीं ऐसे भ्रष्ठ कर्मचारी टैक्स वसूली में भी सालों से घोटाला कर रहे हैं और ट्रांसफर व पोस्टिंग में भी बड़ा खेला कर रहे हैं। कर्मचारियों और जोनल में जिसको जहां मन करता है, वहां उसको उस जोन में बैठा देते हैं। इतना ही नगर निगम में वर्षों से जमे अशोक सिंह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टॉलरेंस नीति को भी दागदार बना रहे हैं।
तीन वर्षों में ट्रांसफर का है नियम
एक ओर अशोक सिंह सालों से नगर निगम में पैर जमाए हुए हैं, तो वहीं दूसरी ओर मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के स्थानांतरण की नीति निर्गत की है। इस नीति के तहत जो अधिकारी अपने सेवाकाल में सम्बंधित जनपद में कुल 3 वर्ष पूरे कर चुके हों, उनको उक्त जनपदों में स्थानांतरित कर दिया जाए। वहीं एक यह भी आदेश जारी क्या गया है कि जो 7 वर्ष पूर्ण कर चुके हों उनको भी उक्त मंडल से स्थानांतरण हेतु उक्त निर्धारित अवधि में नहीं गिना जाएगा। मंडलीय कार्यालयों में तैनाती की अधिकतम अवधि 3 वर्ष होगी। इस हेतु सर्वाधिक समय से कार्यरत अधिकारियों के स्थानान्तरण प्राथमिकता के आधार पे किए जाएंगे। लेकिन सवाल ये ही है जब ये नीति लागू है तो फिर अशोक सिंह कैसे अब तक इस नीति के दायरे से बचे हुए हैं? आखिर क्या वजह है कि अशोक सिंह पिछले कई वर्षों से यहीं पर जमे हुए हैं और उन पर यह नीति लागू नहीं की जा रही है।
अपर नगर आयुक्त ने की महिला पत्रकार से अभद्रता
नगर निगम में कल एक नया मामला सामने आया। जहां एक महिला पत्रकार के सवाल पर अपर नगर आयुक्त अभय पांडेय भडक़ गए और महिला पत्रकार से अभद्रता करने लगे। दरअसल, महिला पत्रकार एक पीडि़त की जमीन मामले को लेकर अभय पांडेय से बात करने गई थी। लेकिन महिला के सवाल करते ही अपर नगर आयुक्त अभय पांडेय अभद्रता पर उतर आए और अपने कर्मचारियों से कहकर महिला पत्रकार को धक्के मारकर कमरे से बाहर निकलवा दिया। मौके पर अधिकारी भी मौजूद थे। इस घटना के बाद नगर निगम मुख्यालय पे काफी ज्यादा तादाद में लोग एकत्र हो गए और अपर नगर आयुक्त अभय पांडेय को हटाए जाने की मांग करने लगे और धरने पर बैठ गए। काफी देर तक ये हंगामा नगर निगम में नगर आयुक्त के कमरे के बाहर चलता रहा लेकिन अभय पांडेय अपना कमरा बंद कर भाग गए। काफी मशक्कत के बाद नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने लोगों को समझाया और उनका ज्ञापन लेते हुए इस बारे में आला अधिकारियों से बात कर मदद का आश्वासन दिया। इसके बाद लोगों ने धरने को खत्म कर दिया।
पीएम मोदी के खरगे के पत्र का जवाब न देने पर भाजपा-कांग्रेस में जुबानी जंग
चिदंबरम ने कहा- भाजपा सांसदों के दिए तर्क, पार्टी की पूर्ण असहिष्णुता का उदाहरण
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। ओडिशा के बालासोर में हुए भीषण रेल हादसे के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र अब भाजपा और कांग्रेस में जुबानी जंग लगातार जारी है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पांच जून को पीएम मोदी को पत्र लिखकर इस हादसे से संबंधित कई सवाल उठाए थे। लेकिन खरगे के इस पत्र का जवाब प्रधानमंत्री ने न देकर भाजपा के कुछ सांसदों ने दिया था। इन सांसदों ने तर्क दिया था कि खरगे का पत्र बयानबाजी ज्यादा और तथ्यों पर कम आधारित है। अब इस मामले में पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा सांसदों द्वारा खरगे के पत्र पर दिए गए तर्क भगवा पार्टी की पूर्ण असहिष्णुता का एक और उदाहरण है।
पीएम ने जवाब देने के लायक नहीं समझा: चिदंबरम
चिंदबरम ने पत्र लिखने वाले चारों भाजपा सांसदों पर निशाना साधते हुए ओडिशा रेल हादसे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को लिखे गए एआईसीसी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे के पत्र को कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि भाजपा सांसदों का पत्र तथ्यों पर सतही और तर्कों पर खोखला है। भाजपा सांसदों की प्रतिक्रिया किसी भी आलोचना के लिए भाजपा की पूर्ण असहिष्णुता का एक और उदाहरण है। चिदंबरम ने कहा कि खरगे राज्यसभा में विपक्ष के नेता होने के नाते प्रधानमंत्री को पत्र लिख सकते हैं। लोकतंत्र में लोग अपनी बात पीएम मोदी के सामने रख सकते हैं और उनसे उनके जवाब की उम्मीद करते हैं। लेकिन हमारा लोकतंत्र ऐसा है कि पीएम इसे जवाब देने लायक नहीं समझते। उनकी बजाय, भाजपा के चार सांसद खुद जवाब देने की जिम्मेदारी लेते हैं, जो तथ्यों पर सतही और तर्कों पर खोखला है। चिंदबरम ने कहा कि पिछले साल दिसंबर में सौंपी गई दो कैग रिपोर्ट खरगे के तर्क को पूरी तरह सही साबित करती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने पत्र में दावा किया था कि 9 फरवरी 2023 को मैसूर में हुए हादसे के बाद साउथ वेस्ट जोनल रेलवे के संचालन अधिकारी ने रेलवे के सिग्नल सिस्टम को दुरुस्त करने की जरूरत बताई थी, लेकिन उस चेतावनी को रेल मंत्रालय ने दरकिनार कर दिया। इसी को लेकर चिंदबरम ने कहा कि मुझे कोई शक नहीं है कि ये पत्र भी धूल खा रहा होगा। उन्होंने कहा कि क्या भाजपा सांसद हमें बताएंगे कि इस चेतावनी पर क्या कार्रवाई की गई थी?