जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के दिल में उमड़ा तालिबान के लिए प्रेम
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के नेता डॉ. फारूक अब्दुल्ला में एक बार फिर तालिबान के लिए प्यार जागा है। उन्होंने कहा कि तालिबान अब अफगानिस्तान में सत्ता में है। ऐसे में हमें यानि भारत को तालिबान शासकों से बात करनी चाहिए। तालिबान के प्रति अब्दुल्ला का यह नरम रुख पहली बार नहीं है। जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख नेता, फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती, तालिबान को लेकर प्रतिस्पर्धा में लग रहे हैं कि कौन तालिबान के पक्ष में अधिक बयान देता है। आज यानि शनिवार को फारूक अब्दुल्ला ने ट्वीट किया। डॉ फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि भारत ने अफगानिस्तान में पिछले शासन के दौरान विभिन्न परियोजनाओं पर अरबों रुपये खर्च किए हैं। अब हमें वर्तमान अफगान शासकों से बात करनी चाहिए। जब हमने अफगानिस्तान में इतना निवेश किया है, तो इसके साथ संबंध होना महत्वपूर्ण है। इसमें क्या ग़लत है?
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में कई दशकों से अब्दुल्ला परिवार का दबदबा है। शेख अब्दुल्ला के बेटे फारूक अब्दुल्ला नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष हैं। अब्दुल्ला की राजनीति की धार इतनी तेज है कि वह यहां तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
फारूक अब्दुल्ला का जन्म 21 अक्टूबर 1937 को हुआ था। उनकी माता का नाम बेगम अकबर जहान अब्दुल्ला है। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा श्रीनगर में ही पूरी की। इसके बाद उन्होंने जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। इसके बाद उन्होंने लंदन में प्रैक्टिस भी की। लंदन में उन्होंने ब्रिटिश मूल की नर्स मौली से शादी की। बेटे उमर अब्दुल्ला के साथ फारूक की तीन बेटियां साफिया, हिना और सारा हैं। उनकी बेटी सारा की शादी राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सचिन पायलट से हुई है।
1980 में हुए आम चुनाव में फारूक अब्दुल्ला श्रीनगर से सांसद चुने गए। एक साल बाद, 1981 में, उन्हें नेशनल कॉन्फ्रेंस का अध्यक्ष चुना गया। 1982 में उनके पिता शेख अब्दुल्ला का निधन हो गया। इसके बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत संभाली और मुख्यमंत्री बने। लेकिन अपने बहन के पति गुलाम मोहम्मद शाह के विरोध के कारण अब्दुल्ला अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इसके बाद फारूक लंदन चले गए। वह 1996 में फिर से कश्मीर लौटे और 1996 का विधानसभा चुनाव लड़ा। 1999 में जब अटल बिहारी की गठबंधन सरकार बनी तो उनकी पार्टी भी इसमें शामिल हो गई। इस सरकार में उनके बेटे उमर अब्दुल्ला को केंद्र में मंत्री पद दिया गया था।