मध्यप्रदेश में बसपा को किंगमेकर बनाने की जिम्मेदारी आकाश के कंधों पर दी मायावती ने

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती के सियासी वारिस माने जाने वाले आकाश आनंद भोपाल की सडक़ों पर उतरकर संघर्ष करते नजर आए। दलित और आदिवासी समुदाय के मुद्दों को लेकर बसपा नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद ने राजभवन के घेराव के लिए पैदल मार्च निकाला। पुलिस ने भले ही राजभवन पहुंचने से पहले उन्हें रोक लिया हो, लेकिन आकाश ने सियासी संदेश दे दिया है। आकाश आनंद पहली बार जमीन पर पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ प्रदर्शन करते नजर आए, जिसे मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से जोडक़र देखा जा रहा है।
बसपा, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर किस्मत आजमा रही है और पार्टी को जिताने का जिम्मा आकाश आनंद और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम के कंधों पर है। मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने दलित और आदिवासी उत्पीडऩ को लेकर मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार दलित-आदिवासियों के साथ सिर्फ छलावा कर रही है। बीजेपी के साथ कांग्रेस पर भी निशाना साधते हुए कहा कि मध्य प्रदेश में दोनों ही राजनीतिक बड़ी पार्टियां, चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी आदिवासियों को साधने की बात करती है, लेकिन उनके उत्थान के लिए कुछ भी काम नहीं किया। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों सिर्फ आदिवासियों का वोट हासिल करती हैं।
आकाश आनंद ने भले ही अंबेडकर मैदान में डेढ़ मिनट की स्पीच दी हो, लेकिन भोपाल की सडक़ों पर उतरकर उन्होंने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के समीकरण साधने का बड़ा सियासी दांव चला है। सूबे में करीब 22 फीसदी आदिवासी समुदाय है, और 17 फीसदी दलित आबादी है। राज्य के विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं, जिनमें से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति और 35 सीटें अनुसूतिक जाति के लिए आरक्षित हैं। इस तरह 82 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं जबकि 148 सीटें अनारिक्षित हैं।
बसपा की नजर मध्य प्रदेश चुनाव में दलित और आदिवासी समुदाय के वोटों पर है, जिनकी आबादी 40 फीसदी के करीब है। बसपा इन्हीं 40 फीसदी वोटों को अपने पाले में लाकर मध्य प्रदेश की राजनीति में किंगमेकर बनने का सपना संजोय हुए है, जिसे अमीलजामा पहनाने का काम मायावती के भतीजे आकाश आनंद संभाल रहे हैं। इसीलिए आकाश जमीन पर उतरकर दलित और आदिवासी समुदाय को साधने में जुट गए हैं। बुधवार को बसपा के विधायक रामबाई के साथ-साथ पार्टी के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल कर अपनी ताकत का एहसास बीजेपी और कांग्रेस को करा दिया है। साथ ही बसपा ने विधानसभा चुनाव में तीसरे मोर्च के रूप में अपनी आमद दर्ज करा दी है।
मध्य प्रदेश में 17 फीसदी के करीब दलित मतदाता हैं और बसपा का सियासी आधार इन्हीं वोटों पर टिका है। यूपी से सटे हुए मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड, विंध्य, ग्वालियर-चंबल इलाके की सीटों पर मायावती प्रभाव डालती रही हैं। राज्य की 25 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर बसपा हार-जीत तय करती है। बुंदेलखंड व ग्वालियर इलाके में बड़ी आबादी दलित समुदाय की है, जहां पर बसपा चुनाव जीतती रही है। बीएसपी इन्हीं इलाकों की सीटों पर 2023 के चुनाव में फोकस कर रही है और इतनी सीटें जीतने की जुगत में है, ताकि उसके बिना कांग्रेस या बीजेपी किसी की भी सरकार न बन सके।
कांशीराम ने बसपा का गठन करने के बाद यूपी पर खास फोकस किया था, लेकिन साथ ही मध्य प्रदेश में दलित समुदाय के बीच राजनीतिक चेतना जमाने का काम भी शुरू कर दिया था। 90 के दशक में बसपा मध्य प्रदेश में तीसरी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी थी। बसपा ने यूपी में सपा के साथ मिलकर सरकार बनाया तो उसका असर मध्य प्रदेश के 1993 के विधानसभा चुनाव में दिखा। बसपा 1993 में 11 विधायक जीतकर आए थे और 1998 में भी 11 विधायक जीतने में सफल रहे थे, लेकिन इसके बाद से बसपा का सियासी ग्राफ डाउन होना शुरू हुआ।
2003 में बसपा के दो विधायक जीते, लेकिन यूपी में मायावती पूर्णबहुमत के साथ 2007 में सरकार बनाई तो उसका असर मध्य प्रदेश में भी दिखा। मध्य प्रदेश के 2008 के विधानसभा चुनाव में बसपा के सात विधायक जीतकर आए, लेकिन यूपी में बसपा का ग्राफ गिरा तो मध्य प्रदेश में प्रभाव पड़ा। 2013 के मध्य प्रदेश चुनाव में बसपा के चार विधायक जीते और 2018 में दो विधायक बने। इतना ही नहीं, बसपा के वोट फीसदी में भी गिरावट आई है। 2018 में बसपा को करीब 5 फीसदी ही वोट मिला। ऐसे में बसपा 2023 के विधानसभा चुनाव में किंगमेकर बनना है तो अपने सियासी ग्राफ बढ़ाने के साथ-साथ सीट बढ़ाने की चुनौती होगी?

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