नए सिलेबस के लिए चल रही माथापच्ची

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार कक्षा एक से कक्षा 12 तक के सिलेबस में संशोधन करने का निर्णय लिया गया है। एनसीईआरटी नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग ने ज्यादातर राज्यों को चार अलग-अलग क्षेत्रों में राज्य स्तरीय सिलेबस तैयार करने को कहा है। राज्यों से प्राप्त पाठ्यक्रम सुझावों को शामिल कर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) तय किया जाएगा। शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि जिला स्तर पर इनपुट के आधार पर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम तैयार किया जाएगा।
मंत्रालय ने हाल ही में शिक्षा संबंधी संसदीय समिति को बताया कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का पाठ्यक्रम पहले आएगा, जिसके बाद जिला स्तर पर भी परामर्श किया जाएगा। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद विनय प्रभाकर सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि समिति जुलाई के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंप देगी। उन्होंने कहा कि इतिहास, भूगोल और साहित्य के सिलेबस में स्थानीय चीजों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नए सिलेबस में नई शिक्षा नीति की झलक देखने को मिलेगी। यह जरूरी नहीं है कि किताबें बहुत मोटी होनी चाहिए, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह दिलचस्प होनी चाहिए। हर पाठ्यपुस्तक में ई-टेस्टबुक भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि छात्रों से भी फीडबैक लिया जाना चाहिए।
नौवीं कक्षा में पढऩे वाले छात्र को कक्षा पांच के लिए पाठ्य पुस्तक तैयार करने के लिए कहा जाए। मुझे लगता है कि पाठ्यपुस्तक बहुत सटीक होगी । इससे हमें यह भी अंदाजा हो जाएगा कि छात्र क्या सोच रहे हैं। कक्षा दूसरी और तीसरी के लिए पुस्तकें अमर चित्र कथा की तरह होनी चाहिए। क्यों न हास्य की तरह दो या तीन सबक लिए। कुछ पाठ भी नाटकीय रंगमंच की सामग्री लेने के लिए यह समझाना चाहिए । उन्होंने स्थानीय सामग्री को पाठ्यक्रम में शामिल करने की भी बात कही। विनय प्रभाकर सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि इतिहास के बारे में 17 पाठ प्राचीन इतिहास से हैं और तीन पाठ स्थानीय इतिहास से भी संबंधित होने चाहिए। ऐसा सिर्फ इतिहास के लिए ही नहीं, बल्कि भूगोल और साहित्य के लिए भी किया जा सकता है। ‘छह साल की छोकरी, भरकर लाई टोकरी, टोकरी में आम है, नहीं बताती दाम है। दिखा दिखाकर टोकरी हमें बुलाती छोकरी।’कक्षा एक की एनसीईआरटी की हिंदी की किताब ‘रिमझिम’ के तीसरे अध्याय की इस कविता को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने आपत्ति भी दर्ज कराई। विनय प्रभाकर सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि मेरा मानना है कि जो भी सुनने में अजीब लगता है, उसे काव्य पाठ्यक्रम में नहीं जाना चाहिए। बिना गंभीरता के सिलेबस में शामिल नहीं होना चाहिए। मैंने सुझाव दिया है कि एक तंत्र होना चाहिए और आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।

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