मिशन 2022: अमित शाह और नड्डा खुद देखेंगे यूपी के विधायकों का रिपोर्ट कार्ड

यूपी में मिशन 2022 के लिए संगठन की गतिविधियां तेज हो गई हैं। पार्टी ने एलान कर दिया है कि चुनाव योगी के चेहरे पर होगा लेकिन विधायकों का बेंचमार्क तैयार किया जा रहा है। व्यक्तिगत सर्वेक्षण के बाद विधायकों के तैयार हो रहे रिपोर्ट कार्ड को सीधे पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह देखेंगे। सर्वे के नतीजे ही यूपी में विधानसभा की टिकटें तय करेंगे। उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा के चुनाव में भाजपा की लहर में विपक्षी दलों के तंबू उखड़ गए थे। प्रचंड बहुमत की योगी सरकार बनी। आगरा जिले की बात की जाए तो यहां की जनता ने सभी नौ सीटें भाजपा के खाते में डाल दीं। उसके बाद लोकसभा चुनाव में दोनों संसदीय सीट भाजपा को मिलीं। मेयर और जिला पंचायत पर भी भाजपा का कब्जा है। अब भाजपा के सामने 2022 का इम्तिहान है। हाल के बंगाल चुनाव में पूरी ताकत झौंकने के बाद भी अपेक्षित परिणाम न मिलने से भाजपा चौकन्नी है। बंगाल और यूपी के बीच यूं कोई तुलना नहीं है लेकिन लखनऊ से ही दिल्ली का रास्ता निकलता है, इसलिए उत्तर प्रदेश का चुनाव किसी भी दल के लिए अहम होता है। ऐसे में मिशन 2022 को लेकर भाजपा और संघ परिवार में बड़े पैमाने पर तैयारियां शुरू हो गई हैं। पार्टी ने साफ संकेत दे दिए हैं के यूपी चुनाव योगी के चेहरे पर लड़ा जाएगा लेकिन एक बार किले की कमजोर दीवारों का भी परीक्षण हागा। विधायकों के व्यक्तिगत सर्वेक्षण में उनके पांच वर्ष के कामकाज, जनता के बीच उनकी पकड़, उनके प्रति जनता का नजरिया और विपक्षी दलों की राजनीतिक पैंतरों के बीच विधायक की मजबूती के आधार की जांच हो रही है। सर्वे की रिपोर्ट सीधे पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह के सामने पेश की जाएगी। इसी रिपोर्ट के आधार पर कमजोर कड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।

कोरोना काल के कार्य देखे जाएंगे

कोरोना काल में जनता को उसके हाल पर छोड़कर अपने घरों में बैठे रहना विधायकों को भारी पड़ सकता है। भाजपा नेतृत्व द्वारा जो सर्वे कराया जा रहा है उसमें इस बात पर विशेष जोर दिया जा रहा कि जब जनता कोरोना की विभीषिका झेल रही थी। आक्सीजन सिलेंडर, अस्पतालों में बेड और दवाओं के लिए लोग भटक रहे थे जनप्रतिनिधि क्या कर रहे थे। दरअसल कोरोना के पीक समय में जो हालात थे उन्हें लेकर जनता में जनप्रतिनिधियों के प्रति काफी नाराजगी है। आगरा में भी कुछ जनप्रतिनिधि तो सीधे तौर पर जनता के निशाने पर हैं। वे दावे चाहे जो करें लेकिन आपदा के वक्त जनता से नजर मिलाना तो दूर वे फोन पर भी उपलब्ध नहीं थे। अब जब हालात सुधर गए हैं तो नेताजी नजर आने लगे हैं।

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