आखिर क्यों छिन रहे हैं भाजपा के हाथ से उसके किले

लखनऊ। हाल ही के दिनों में केंद्र में भाजपा के सात पूरे होने का जश्न देश भर में भाजपाइयों ने मनाया है लेकिन पिछले कुछ समय में भाजपा का गिरता ग्राफ कुछ और ही कहानी कह रहा है। भगवा खेमे के हाथ से एक एक करके कई राज्य निकल गए हैं और पार्टी आज भी आत्मुग्धता के दौर में है। साल 2019 के लोकसभा के बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। खास बात यह है कि भाजपा के विजय रथ को रोकने का काम क्षेत्रीय क्षत्रपों ने किया है। इस पूरे घटनाक्रम में सिर्फ एक ही बात भाजपा के पक्ष में है वो यह है कि वह पश्चिम बंगाल में तीन से सीधे 78 पर पहुंच गयी। यानि सरकार भले न बना पाई हो लेकिन पश्चिम बंगाल में अब भाजपा मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाएगी। त्रिपुरा में वामदल के पैर उखाडऩे के बाद भाजपा नेतृत्व आश्वस्त था कि उसे यहां भी इसी तरह की सफलता मिल सकती है लिहाजा केन्द्र की पूरी सरकार राज्यों के मुख्यमंत्री और भाजपा का संगठन ताकत से वहां जुटा रहा लेकिन आंकड़ा दो सौ क्या सौ तक भी नहीं पहुंच सका। हरियाणा में दूसरी बार भाजपा सत्ता में लौटी तो लेकिन इस बार उसे बैसाखी का सहारा लेना पड़ा। वहां उसे जननायक जनता पार्टी के नेता दुष्यंत चौटाला से मिलकर सरकार बनानी पड़ी। जबकि इसके पहले वहां भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी। इसी तरह महाराष्ट्र में उसका वर्षो पुराना शिवसेना से भी साथ छूट गया। । शिवसेना ने इस राज्य में कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली और भाजपा को मजबूरी मे विपक्ष में बैठना पड़ा।
यही हाल उड़ीसा में भी है, इस प्रदेश में भाजपा को भी गठबंधन की ही राजनीति करनी पड़ रही है वहां वह बीजू जनता दल के सहारे है। हालांकि इस समय वह उसके साथ नहीं है। बीजू जनता दल के आगे वहां भाजपा और कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है कभी कांग्रेस का गढ़ रहे उड़ीसा में कभी भाजपा को अकेले कमल खिलाने का मौका नहीं मिला। यही स्थिति देश की राजधानी दिल्ली में भी रही। वहां भी पिछले तीन चुनावों से भाजपा को आम आदमी पार्टी से कांटे की टक्कर मिल रही है। इस बार के हैदराबाद नगरनिगम के चुनाव में भाजपा ने काफी पसीना बहाया था। उसके निशाने आंध्र प्रदेश का चुनाव था पर बावजूद इसके उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी। हैदराबाद नगर निगम के चुनाव मे अमित शाह जेपी नड्ढा योगी आदित्यनाथ समेत सहित भाजपा के कई दिग्गज पहुंचे थे। पर भाजपा को यहां भी कामयाबी नहीं मिली थी। आन्ध्रप्रदेश से लगे तेलांगाना का भी है जहां तेलंगाना राष्ट्र समिति तेलांगाना राज्य के गठन के बाद से लगातार सरकार बनती आ रही है। वहां भाजपा लगातार प्रयास कर रही है पर क्षेत्रीय पार्टी तेलागांना राश्ट्र समिति के आगे उसकी नहीं चल पा रही है।

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