लोकसभा स्पीकर पद पर क्यों अड़े हैं चंद्रबाबू नायडू? TDP ने BJP के साथ किया बड़ा खेला!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को NDA संसदीय दल का नेता चुना गया है। BJP के सहयोगी दलों ने NDA की बैठक में यह साफ़ ऐलान कर दिया है कि नरेंद्र मोदी ही तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री होंगे।

4PM न्यूज़ नेटवर्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को NDA संसदीय दल का नेता चुना गया है। BJP के सहयोगी दलों ने NDA की बैठक में यह साफ़ ऐलान कर दिया है कि नरेंद्र मोदी ही तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री होंगे। इसके साथ ही चंद्रबाबू नायडू की TDP की ओर से जो शर्त रखी गई है, वो है लोकसभा अध्यक्ष का पद. यानी कि चंद्रबाबू नायडू चाहते हैं कि सरकार के समर्थन के बदले उनकी पार्टी को केंद्रीय कैबिनेट में तो जगह मिले ही मिले, लोकसभा अध्यक्ष का पद भी उनकी ही पार्टी के पास रहे। आपको बता दें कि चंद्रबाबू नायडू स्पीकर पद के जरिए सरकार पर कंट्रोल कर सकती है क्योंकि संविधान में स्पीकर को कई अधिकार दिए गए हैं TDP इस पद के जरिए सरकार से कई शर्तें मनवा सकती है।

PM के लिए सबसे बड़ी चुनौती

ऐसे में बताया जा रहा है कि चंद्रबाबू नायडू की पार्टी का जो बीजेपी के साथ पिछले इतिहास रहा है। दरअसल, चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के सांसद ने इतिहास में BJP के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जो किया है, उसे शायद ही बीजेपी के लोग भूल पाए होंगे। आपको बता दें कि आखिर इतिहास में TDP ने ऐसा क्या किया है कि बीजेपी नायडू की पार्टी को लोकसभा अध्यक्ष का पद देने से हिचकिचा रही है और आखिर क्या है वो कहानी, जिसे अगर तेलगु देशम पार्टी दोहरा दे तो फिर नरेंद्र मोदी के लिए प्रधानमंत्री के पद पर बने रहना सबसे बड़ी चुनौती हो जाएगी।

आपको बता दें कि 1999 साल और महीना अप्रैल का। और देश में NDA की सरकार थी। दूसरी बार प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी को महज 13 महीने हुए थे। इस गठबंधन सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्‍ताव लाया गया। लोकसभा में वोटिंग कराई गई और महज 1 वोट से वाजपेयी की सरकार गिर गई।

जानिए संविधान में स्पीकर के लिए क्या है ताकत?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 93 और 178 में लोकसभा के अध्यक्ष पद का जिक्र है। इन्हीं दो आर्टिकल में लोकसभा अध्यक्ष की ताकत का भी विस्तार से जिक्र किया गया है। लोकसभा अध्यक्ष की सबसे बड़ी ताकत तब होती है, जब सदन की कार्यवाही चल रही होती है यानी कि संसद का सत्र चल रहा हो, तो लोकसभा अध्यक्ष ही उस सत्र का कर्ता-धर्ता माना जाता है। ऐसे में लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करने की जिम्मेदारी भी स्पीकर की ही होती है।

लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने का काम भी स्पीकर का ही होता है। स्पीकर ही तय करता है कि बैठक का एजेंडा क्या है? सदन कब चलेगा, कब स्थगित होगा, किस बिल पर कब वोटिंग होगी, कौन वोट करेगा, कौन नहीं करेगा जैसे तमाम मुद्दे पर फैसला स्पीकर को ही लेना होता है? ऐसे में  यानी कि संसद के लिहाज से देखें तो स्पीकर का पद सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। जब सदन चल रहा होता है तो सैद्धांतिक तौर पर लोकसभा अध्यक्ष का पद किसी पार्टी से जुड़ा न होकर बिल्कुल निष्पक्ष होता है।

आखिर TDP क्यों चाहती है स्पीकर का पद?

ऐसे में फिर सवाल है कि एनडीए में बने रहने के लिए और नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए आखिर टीडीपी क्यों चाहती है कि स्पीकर का पद उसके पास ही रहे। ऐसे में अब ये तो तय है कि सरकार भाजपा की नहीं बल्कि NDA की है। यानी की  नरेंद्र मोदी अब गठबंधन के प्रधानमंत्री हैं। ऐसे में अगर कभी किसी वक्त में टीडीपी या कहिए कि चंद्रबाबू नायडू की बात नहीं मानी गई या जिन शर्तों के साथ टीडीपी ने बीजेपी को समर्थन दिया है, कभी उन शर्तों को तोड़ा गया और चंद्रबाबू नायडू ने सरकार से समर्थन वापस लिया तो जिम्मेदारी स्पीकर की होगी कि वो नरेंद्र मोदी को बहुमत साबित करने के लिए कह दे।

TDP ने बीजेपी का क्यों किया समर्थन?

लोकसभा स्पीकर का पद लोकतंत्र में कितना अहम होता है, उसे इस उदाहरण से बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. बाकी स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर भी कोई बड़ा फायदा नहीं होता है। बिल पास करते वक्त कोई बिल मनी बिल है या नहीं, ये तय करने का अधिकार भी स्पीकर के पास ही होता है। ऐसे में स्पीकर का पद अपने पास रखकर चंद्रबाबू नायडू अपनी उन सभी शर्तों को मनवाने के लिए बीजेपी को मजबूर कर सकते हैं, जो शर्तें उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाते वक्त रखी थीं।

 

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