लखीमपुर हिंसा की एसआईटी जांच पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, कहा- दो एफआईआर से विशेष आरोपी को बचाने की हो रही कोशिश
- एक मामले के सबूत दूसरे केस में होंगे इस्तेमाल
- दोनों एफआईआर में अंतर नहीं कर पा रही एसआईटी
- हाईकोर्ट के पूर्व जज के जरिए हो जांच की निगरानी
- बयान प्रक्रिया पर भी शीर्ष अदालत ने उठाए सवाल
4पीएम न्यूज नेटवर्क. नई दिल्ली। लखीमपुर खीरी हिंसा मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने एसआईटी जांच को निशाने पर लिया और बिना किसी का नाम लिए कहा कि मामले में दो एफआईआर से एक विशेष आरोपी को बचाने की कोशिश हो रही है। एक मामले के सबूत दूसरे मामले में इस्तेमाल होंगे। कोर्ट चाहता है कि हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आगे की जांच की निगरानी करें। केस में दर्ज दोनों एफआईआर में किसी तरह का घाल-मेल नहीं होना चाहिए। मामले पर अब शुक्रवार को सुनवाई होगी। शीर्ष अदालत ने कहा कि लखीमपुर में दो तरह की हत्याएं हुई हैं। पहली उन किसानों की जिनको गाड़ी से कुचला गया। दूसरा उन राजनीतिक कार्यकर्ताओं की जिनको भीड़ ने मारा। सभी की जांच होनी चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि दोनों घटनाओं के गवाहों से अलग-अलग पूछताछ होनी चाहिए। स्टेटस रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कोर्ट ने कहा कि मोबाइल फोन को लेकर क्या हुआ? उनको ट्रैक करने के लिए क्या किया गया? आशीष मिश्रा और गवाहों के फोन के अलावा आपने किसी का फोन ट्रैक नहीं किया। क्या दूसरे आरोपियों ने मोबाइल का इस्तेमाल नहीं किया। साल्वे ने कहा कि अन्य आरोपियों के पास मोबाइल फोन नहीं था। कोर्ट ने कहा कि आप कहना चाहते हैं कि किसी अन्य आरोपी के पास मोबाइल नहीं था? कोर्ट ने पूछा कि बाकी आरोपियों की सीडीआर डिटेल कहां है। इस पर हरीश साल्वे ने कहा कि सीडीआर हमारे पास हैं। कोर्ट ने कहा कि ‘हम इस मामले में हाईकोर्ट के एक पूर्व जज को नियुक्त करना चाहते हैं, ताकि दोनों एफआईआर के बीच अंतर हो। साथ ही कोर्ट ने पंजाब हाईकोर्ट के पूर्व जज रंजीत सिंह और राकेश कुमार का नाम भी सुझाया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की जांच कर रही एसआईटी दोनों एफआईआर के बीच अंतर नहीं कर पा रही है। चीफ जस्टिस ने कहा कि मामले में दोनों एफआईआर की अलग-अलग जांच हो। कोर्ट की इस टिप्पणी पर यूपी सरकार के वकील ने कहा कि दोनों एफआईआर की अलग-अलग जांच हो रही है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि एक किसानों की हत्या का मामला है तो दूसरा पत्रकार और राजनीतिक कार्यकर्ता का मामला है। गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं, जो मुख्य आरोपी के पक्ष में लगते हैं। इस पर साल्वे ने कहा कि अगर कोई आगे आता है और कहता है कि उसका बयान दर्ज किया जाए तो हमें वह करना होगा। फिर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह अलग बात है। और ये भी अलग बात है कि आप कुछ लोगों की पहचान करने का प्रयास करें और फिर बयान दर्ज करें। गौरतलब है कि कोर्ट में चीफ जस्टिस एन वी रमन, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ इस पर सुनवाई कर रही थीं जबकि हरीश साल्वे ने यूपी सरकार का पक्ष रखा।
पहले भी लगा चुकी है फटकार
पिछली सुनवाई 26 अक्टूबर को हुई थी तब कोर्ट ने यूपी सरकार को फटकार लगाते हुए गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने, उनके बयान दर्ज करने का आदेश दिया था। कहा गया था कि पत्रकार रमन कश्यप और ड्राइवर सुंदर की मौत से जुड़े गवाहों के भी बयान अलग से लिए जाएं। मोबाइल टावर से मोबाइल डेटा लेने को कहा था लेकिन उसका अब तक कुछ नहीं हुआ। कहा गया कि आशीष मिश्रा और गवाहों के फोन के अलावा किसी का फोन ट्रैक नहीं किया गया।
क्या था मामला
कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लखीमपुर हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हो गई थी। किसानों ने केंद्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा पर गाड़ी से चार किसानों को कुचलने का आरोप लगाया था। फिलहाल आशीष मिश्रा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
सीबीआई को मामला सौंपना कोई हल नहीं
सुनवाई के दौरान मृत श्याम सुंदर की पत्नी के वकील ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की। इस पर सीजेआई ने कहा कि सीबीआई को मामला सौंपना कोई हल नहीं है।