अगले लोस चुनाव पर पड़ेगा ’आप‘ का छाप

मंत्रियों के इस्तीफे का केजरी-दांव

  • भाजपा-कांग्रेस को मिलेगी तगड़ी चुनौती
  • आप ने कहा- राजनीतिक दुराग्रह से प्रेरित कार्रवाई हो रही

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। 2012 में व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी (आप) जिस मकसद से बनी थी उस पर कायम रही। उसी का लाभ उसे मिला की 11 साल पर बाद वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने में सफलता हासिल कर सकी। आज दिल्ली व पंजाब में उसकी सरकार है। साथ ही कई राज्यों उसका खाता खुला। दिल्ली के नगर निगम में उसको लाभ मिला औैर वहां पर उसका मेयर भी बना। हालांकि आप सरकार के काम जनता में लोकप्रिय हैं। परंतु जैसे-जैसे आप बढ़ रही उसकी मुश्किलें भी बढ़ रही।
ये मुश्किलें सियासी तौर पर उसको झेलनी पड़ रही है। जैसे अभी हाल में आप के नंबर दो के नेता मनीष सिसोदिया सीबीआई व ईडी के छापेमारी में कोर्ट व जेल के चक्कर काट रहे हैं। आगामी 2024 में आप इस मुद्दे को जोर-शोर उठाने की सोच रही है। वहीं भाजपा व कांग्रेस भी आप को घेरने की योजना बना रही है। अन्य बहुत सी विपक्षी पार्टियां आप के साथ खड़ी है। ज्ञात हो आबकारी घोटाले में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी नि:संदेह, आप को असहज स्थिति में डालने वाली ही है। भले ही आप का शीर्ष नेतृत्व और कार्यकर्ता इसे राजनीतिक दुराग्रह से प्रेरित कार्रवाई बता रहे हों, लेकिन सवाल यह भी है कि कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ उम्मीद बनकर उभरी पार्टी के मंत्री व नेता गाहे-बगाहे भ्रष्टाचार के आरोपों में क्यों घिरते नजर आ रहे हैं। पंजाब की आप सरकार के सामने भी ऐसे कई मामले उजागर हुए हैं। हालांकि, कोर्ट से राहत न मिलने के बाद सिसोदिया और मनी लॉड्रिंग मामले में गिरफ्तार सत्येंद्र जैन के इस्तीफों के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं,लेकिन लगता नहीं कि आप का यह संकट जल्दी ही खत्म होने जा रहा है। इसकी वजह यह भी है कि कोर्ट से राहत न मिलने के बाद मनीष सिसोदिया को सीबीआई रिमांड पर भेजा गया है। नि:संदेह, राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों से इतर एक तथ्य यह भी है कि दिल्ली की आप सरकार की नयी आबकारी नीति की खामियों पर सरकार के मुख्य सचिव की रिपोर्ट पर ही दिल्ली के उपराज्यपाल ने मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि आप सरकार गलत नहीं थी तो उसने अपनी नयी आबकारी नीति वापस क्यों ली? दरअसल, इस नीति में शराब की बिक्री में सरकार की भूमिका खत्म करके जिस तरह शराब व्यापारियों को सौंपा गया, उसने कई सवालों को जन्म दिया। आरोप लगा कि मुठ्ठीभर शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई।

कार्यकर्ता मजबूती से खड़े

लेकिन एक बात तय है कि जिस मजबूती से आम आदमी पार्टी का नेतृत्व व कार्यकर्ता मनीष सिसोदिया के समर्थन में खड़े हुए हैं, उसका मकसद इस मुद्दे के भरपूर राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि चंडीगढ़, हरियाणा व पंजाब आदि में भी आप के समर्थकों ने सिसोदिया की गिरफ्तारी के खिलाफ आंदोलन किये हैं। कहीं न कहीं आप सिसोदिया को राजनीतिक दुराग्रह से पीडि़त दिखाने का प्रयास कर रही है। बहरहाल, सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के इस्तीफे के बाद अब राजनीतिक माहौल के और तल्ख होने के आसार हैं। सवाल यह भी है कि अब केजरीवाल दिल्ली सरकार कैसे चलाएंगे क्योंकि सिसोदिया के पास शिक्षा व वित्त समेत 18 विभाग रहे हैं। हालांकि सिसोदिया व सत्येंद्र जैन के इस्तीफे के बाद सौरभ भारद्वाज व आतिशी को मंत्री बनाया है। सौरभ, सत्येंद्र जैन व सिसोदिया के विभागों की जिम्मेदारी आतिशी संभालेंगे।

कौन होगा सिसोदिया के कद का नेता

तैंतीस में से 18 विभाग देखने वाले सिसोदिया के आप सरकार में राजनीतिक कद का अनुमान लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं यदि सिसोदिया को लंबे समय जेल में रहना पड़ता है तो अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों में आप की सक्रियता पर बुरा असर पड़ेगा। वहीं यदि सीबीआई शराब घोटाले में सिसोदिया के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटा लेती है तो आप सरकार की मुसीबतें और बढ़ जाएंगी। दूसरी ओर पार्टी स्तर पर यदि केजरीवाल अन्य राज्यों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे तो उसकी एक वजह यह थी कि सिसोदिया राजकाज को बढिय़ा ढंग से संभाले हुए थे। खासकर शिक्षा मंत्री की भूमिका में सिसोदिया की तारीफ भी होती रही है। वहीं विपक्षी दल व राजनीतिक पंडित कहते हैं कि यदि आप खुद को राजनीतिक दुराग्रह से पीड़ित दर्शा पाती है तो उसे इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा। लेकिन यदि आबकारी मामले में गिरफ्तार लोगों के बीच सिसोदिया की संलिप्तता साबित होती है तो भाजपा इसका राजनीतिक लाभ उठा सकती है। बहरहाल, फिलहाल केजरीवाल सरकार की बड़ी चिंता हो सकती है कि वर्ष 2015 से दिल्ली सरकार का बजट पेश करने वाले सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद इस बार दिल्ली सरकार का बजट कौन पेश करेगा। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल केंद्र सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों को विरोधियों के खिलाफ हथियार के रूप इस्तेमाल करने का आरोप लगा रहे हैं। वे सवाल उठा रहे हैं कि अडाणी और किसी बीजेपी नेता के खिलाफ जांच एजेंसियां क्यों कार्रवाई नहीं करती हैं। वहीं कुछ नेता आप सरकार के मुद्दे पर सामूहिक लड़ाई की बात भी कर रहे हैं क्योंकि अकेले केजरीवाल सशक्त केंद्र का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं।

 

 

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