आदित्य ठाकरे का बड़ा बयान, कहा- किसी भी भाषा को जबरन नहीं थोप सकते
संजय राउत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की. उन्होंने अपनी पोस्ट में एक उद्धव ठाकरे और बाल ठाकरे की पुरानी तस्वीर शेयर की. उन्होंने पोस्ट पर लिखा कि महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ एकजुट मोर्चा निकाला जाएगा.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः महाराष्ट्र की राजनीति में एक असाधारण साथ देखने के मिल रहा है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, जो अब तक अपने-अपने राजनीतिक रास्तों पर अलग-अलग चलते रहे हैं, अब शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता के मुद्दे पर एक साथ राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा निकालने जा रहे हैं।
पहले यह मोर्चा 7 जुलाई को प्रस्तावित थ, लेकिन अब इसकी तारीख बदलकर 5 जुलाई कर दी गई है। इस बदलाव को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। कई विश्लेषकों का मानना है कि दोनों भाइयों का साथ आना केवल भाषा नीति का विरोध नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत भी हो सकता है। राज्य सरकार की ओर से शिक्षा संस्थानों में हिंदी को अनिवार्य करने के प्रस्ताव के खिलाफ यह मोर्चा निकाला जा रहा है। ठाकरे बंधुओं का कहना है कि यह निर्णय राज्य की भाषाई और सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ है।
यह पहली बार है जब उद्धव और राज ठाकरे किसी साझा मंच पर एक गंभीर मुद्दे को लेकर सामने आ रहे हैं। इससे दोनों दलों शिवसेना (उद्धव गुट) और मनसे (राज ठाकरे) – के संभावित समीकरणों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। इस मोर्चे को लेकर अब सभी की नजर 5 जुलाई पर टिकी है, जब यह साफ होगा कि यह भाईचारा केवल एक नीतिगत विरोध तक सीमित है या आने वाले समय में यह कोई बड़ा राजनीतिक गठजोड़ बनने वाला है।
संजय राउत ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की तस्वीर
संजय राउत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की. उन्होंने अपनी पोस्ट में एक उद्धव ठाकरे और बाल ठाकरे की पुरानी तस्वीर शेयर की. उन्होंने पोस्ट पर लिखा कि महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ एकजुट मोर्चा निकाला जाएगा. इसके आगे उन्होंने लिखा ‘जय महाराष्ट्र’ .
कैसे आए दोनों भाई साथ?
संजय राउत ने दोनों भाईयों के साथ आने की वजह बताते हुए कहा कि राज ठाकरे ने मुझसे फोन कर कहा कि उद्धव ठाकरे 7 तारीख को मोर्चा निकाल रहे हैं और मै 6 को निकाल रहा हूं. उन्होंने कहा कि अगर ये दोनों मोर्चा एक साथ निकाले गए तो इसका असर ज्यादा पड़ेगा. उन्होंने कहा कि मराठी भाषा के लोगों को भी अच्छा लगेगा. इसके बाद मैने उद्धव ठाकरे से बात की और वह मान गए. लेकिन 7 तारीख को एकादशी का त्योहार होने की वजह से मोर्चे की तारीख 5 जुलाई रखी गई. राउत ने कहा कि दोनों लोगों ने राजनीतिक एजेंडे को पीछे छोड़कर जनता की भलाई के लिए सोचा.
मनसे के संस्थापक राज ठाकरे ने हिंदी भाषा के खिलाफ पहले 6 जुलाई को विरोध प्रदर्शन की घोषणा की थी. लेकिन उस दिन महाराष्ट्र का धार्मिक पर्व आषाढ़ी एकादशी का दिन था. जिसके बाद राज ठाकरे ने विरोध प्रदर्शन की तारीख को 5 जुलाई कर दिया था. इस बात की जानकारी राज ठाकरे ने सोशल मीडिया के जरिए दी थी.
शैक्षिक मुद्दा नहीं बल्कि सांस्कृतिक मुद्दा
उद्धव ठाकरे ने हिंदी भाषा का विरोध करते हुए कहा कि कि हम महाराष्ट्र में कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को लागू नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक शैक्षिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान को दबाने का काम भी है. उन्होंने राज्य की शिक्षा प्रणाली की जांच की भी मांग की.
महाराष्ट्रतील शाळांत हिंदी सक्ती विरोधात एकच आणि एकत्र मोर्चा निघेल!
जय महाराष्ट्र! pic.twitter.com/A8ATq2ra0k— Sanjay Raut (@rautsanjay61) June 27, 2025
ठाकरे विरासत की अगली पीढ़ी की ओर से बोलते हुए शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने कहा कि वह किसी भी भाषा को जबरन थोपने को स्वीकार नहीं करते. उन्होंने कहा शिक्षा को बढ़ाया जाना चाहिए न की हमें बोझ बढ़ाना चाहिए. उन्होंने राज्य सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि बोझ बढ़ाने के बजाय, जो पहले से मौजूद है, उसकी गुणवत्ता में सुधार क्यों नहीं किया जा रहा है.
शरद पवार भी कर रहे हैं विरोध
कांग्रेस नेता शरद पवार ने भी त्रिभाषा फार्मूले का विरोध करते हुए कहा कि मेरा मानना है कि प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने बच्चे की सीखने की क्षमता को लेकर कहा कि हमें यह विश्लेषण करना चाहिए कि निश्चित आयु का बच्चा कितनी भाषा सीखने में सक्षम है. ऐसा तो नहीं कि उस पर सरकार उसपर भाषाई बोझ बढ़ा रही हो. उन्होंने कहा कि कक्षा 5 के बाद बच्चे को हिंदी भाषा सीखने में कोई समस्या नहीं होगी.
दरअसल महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार ने कुछ महीनों पहले यह आदेश जारी किया था कि महाराष्ट्र की सभी स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी भाषा को भी अनिवार्यता दी जाए. विपक्षी नेता लगातार फडणवीस के इस फैसले का विरोध कर रहे है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि हिंदी भाषा को विकल्प के रूप में रखा जाए न कि अनिवार्यता दी जाए.



