अहमदाबाद प्लेन हादसा: SC की कड़ी फटकार, सरकार से मांगा जवाब
अहमदाबाद प्लेन हादसे पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई... कोर्ट ने कहा कि शुरुआती जांच रिपोर्ट में पायलटों पर दोष मढ़ना गैर-जिम्मेदाराना है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों अहमदाबाद प्लेन हादसे को पायलट की गलती बताकर.. जिम्मेदारी से भागने वाली सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने तगड़ी फटकार लगाई है और जवाब भी मांगा है.. दरअसल इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.. सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट ने बताया कि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में पायलटों को ही हादसे का दोषी ठहराया था.. जबकि पायलट बहुत ही अनुभवी थे.. ये बात सुनते ही सुप्रीम कोर्ट भड़क गया.. जस्टिस सूर्यकांत ने ऐसे दावों को ‘बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना’ बताया.. साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय से इस घटना की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिका पर जवाब मांगा है..
आपको बता दें कि 12 जून 2025 को गुजरात के अहमदाबाद हवाई अड्डे से लंदन जा रही एअर इंडिया की फ्लाइट AI171 एक भयानक हादसे का शिकार हो गई.. बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान टेकऑफ के महज कुछ सेकंड बाद ही इंजनों की आवाज गायब हो गई और यह तेजी से नीचे गिर पड़ा.. वहीं इस हादसे के तीन महीने बाद 22 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय को कड़ी फटकार लगाई..
कोर्ट ने शुरुआती जांच रिपोर्ट में पायलटों को जिम्मेदार ठहराने को गैर-जिम्मेदाराना और दुर्भाग्यपूर्ण बताया.. जस्टिसों ने कहा कि बिना पूरी जांच के पायलटों पर दोष लगाना उनके परिवारों के लिए पीड़ादायक है.. कोर्ट ने गोपनीयता बनाए रखने पर जोर दिया और जांच को पारदर्शी, निष्पक्ष और तेज बनाने का आदेश दिया.. वहीं यह टिप्पणी सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन नामक एनजीओ की PIL पर आई.. जिसकी पैरवी वकील प्रशांत भूषण ने की.. प्रशांत भूषण ने दलील दी कि रिपोर्ट में महत्वपूर्ण डेटा छिपाया गया है.. और मीडिया ने पायलटों को बदनाम कर दिया..
यह मामला सिर्फ एक हादसे तक सीमित नहीं है.. यह भारत की विमानन सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करता है.. एअर इंडिया जैसी सरकारी कंपनी पर सवाल उठे हैं.. जहां पिछले सालों में कई सुरक्षा उल्लंघन सामने आए हैं.. सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप उम्मीद जगाता है कि सच्चाई सामने आएगी.. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जांच वाकई स्वतंत्र होगी..
आपको बता दें कि यह हादसा सिर्फ संख्याओं का खेल नहीं था.. हर मौत के पीछे कहानियां थीं.. एक डॉक्टर जो लंदन में जॉब इंटरव्यू के लिए जा रहा था… एक दंपति जो हनीमून मना रहा था.. बच्चे जो स्कूल की छुट्टियों में घूमने जा रहे थे.. मीडिया में तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए, जो दृश्य दिल दहला देने वाले थे.. हादसे ने पूरे देश को झकझोर दिया.. विमानन मंत्री राम मोहन नायडू ने संसद में बयान दिया कि सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है.. लेकिन सवाल उठे कि क्या यह सिर्फ शब्द हैं.. इस हादसे ने पुरानी घावों को कुरेदा.. 2020 के कोझिकोड क्रैश की याद ताजा हो गई.. जहां भी पायलट एरर का आरोप लगा था..
हादसे के एक महीने बाद 12 जुलाई 2025 को विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो ने प्रेलिमिनरी रिपोर्ट जारी की.. रिपोर्ट में कहा गया कि टेकऑफ के तुरंत बाद दोनों फ्यूल कटऑफ स्विचेस को रन से कटऑफ पोजीशन में ले जाया गया.. जिससे इंजन बंद हो गए.. यह सीधे पायलट की गलती का इशारा था.. CVR के कुछ अंशों से पता चला कि पायलटों के बीच कन्फ्यूजन था.. स्विच क्यों ऑफ.. जैसी बातें रिकॉर्ड हुईं.. लेकिन रिपोर्ट में डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर का पूरा डेटा, CVR का फुल ट्रांसक्रिप्ट और इलेक्ट्रॉनिक एयरक्राफ्ट फॉल्ट रिकॉर्डिंग नहीं था.. AAIB ने कहा कि यह शुरुआती रिपोर्ट है.. फाइनल रिपोर्ट 12 महीने में आएगी..
वहीं यह रिपोर्ट जारी होते ही विवादास्पद हो गई.. अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इसे लीक कर दिया.. इससे पहले कि केंद्र को सौंपा जाए.. रिपोर्ट में पायलटों को दोषी ठहराने से उनके परिवार नाराज हो गए.. एक्सपर्ट्स ने सवाल उठाए कि क्या फ्यूल स्विचेस में खराबी थी.. बोइंग 787 में ये स्विचेस FADEC सिस्टम से जुड़े हैं.. जो कंप्यूटर कंट्रोल्ड हैं.. कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि इलेक्ट्रिकल फॉल्ट से स्विचेस ऑटोमैटिकली मूव हो सकते थे.. DGCA ने रिपोर्ट को तथ्यात्मक बताया.. लेकिन विपक्ष ने हमला बोला.. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि सरकार जांच को प्रभावित कर रही है.. परिवारों ने बोइंग और हनीवेल के खिलाफ मुकदमा दायर किया.. आरोप लगाया कि स्विचेस FAA द्वारा सुरक्षित बताए गए थे.. लेकिन फॉल्टी साबित हुए.. एक पूर्व पायलट ने सिमुलेटर में क्रैश रीक्रिएट किया.. और कहा कि मैन्युअल रूप से स्विच ऑफ करना असंभव है..
आपक बता दें कि जांच में कई एंगल थे.. क्या मेंटेनेंस में लापरवाही थी.. एअर इंडिया पर पहले से 51 सुरक्षा उल्लंघन के आरोप थे.. 2024 के DGCA ऑडिट में पाया गया कि फ्यूल सिस्टम में दोष दोहराए जा रहे थे.. लेकिन रिपोर्ट ने इन्हें नजरअंदाज किया.. मीडिया ने पायलट एरर को हेडलाइंस बनाया.. जिससे अफवाहें फैलीं.. सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इसे अनैतिक कहा… यह विवाद दिखाता है कि शुरुआती रिपोर्ट कितनी संवेदनशील होती है…
हादसे के दो महीने बाद सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दायर की.. यह एनजीओ विमानन सुरक्षा पर काम करता है.. याचिका में मांगा गया कि जांच स्वतंत्र हो.. कोर्ट की निगरानी में चले, और सभी डेटा सार्वजनिक हो.. प्रशांत भूषण ने दलील दी कि AAIB रिपोर्ट अधूरी है.. DFDR का सिर्फ 20 फीसदी डेटा दिया गया.. CVR ट्रांसक्रिप्ट में समय गायब है.. और उन्होंने WSJ लीक का जिक्र किया.. और कहा कि इससे पायलट बदनाम हुए.. भूषण ने आरोप लगाया कि सरकार ने रिपोर्ट लीक होने दिया ताकि एयरलाइंस पर दबाव न पड़े..
22 सितंबर 2025 को चीफ जस्टिस की बेंच ने सुनवाई की.. कोर्ट ने कहा कि शुरुआती रिपोर्ट पर पायलटों को दोष देना गैर-जिम्मेदाराना है.. अगर कल कोई कह दे कि पायलट ए या बी की गलती थी.. तो परिवार दुखी होगा.. बाद में अगर निर्दोष साबित हुए, तो क्या.. बेंच ने गोपनीयता पर जोर दिया.. जांच पूरी होने तक लीक न हो.. और उन्होंने प्रतिद्वंद्वी कंपनियों का जिक्र किया.. कहा कि वे फायदा उठा सकती हैं.. बोइंग जैसी कंपनियां खुद को बचाने के लिए कह सकती हैं कि मेंटेनेंस ठीक था.. कोर्ट ने DGCA और MoCA को नोटिस जारी किया.. चार हफ्ते में जवाब मांगा..
भूषण ने काउंटर किया कि रिपोर्ट में एयरक्राफ्ट की खराबियां नजरअंदाज की गईं.. कोर्ट ने सहमति जताई और कहा कि जांच निष्पक्ष हो.. यह सुनवाई PIL के महत्व को दिखाती है.. सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन ने कहा कि बिना फुल डेटा के ऑब्जेक्टिव जांच असंभव है.. कोर्ट का रुख सकारात्मक है.. लेकिन क्या सरकार सुनेगी? विशेषज्ञों का मानना है कि यह केस 1985 के एअर इंडिया क्रैश की तरह लैंडमार्क बन सकता है.. जहां भी जांच विवादित थी..
आपको बता दें कि यह हादसा अकेला नहीं है.. एअर इंडिया की हिस्ट्री दर्दनाक है.. 1985 में एअर इंडिया फ्लाइट 182का बम विस्फोट, 2010 का मंगलौर क्रैश, 2020 का कोझिकोड क्रैश… हर बार पायलट एरर या मेंटेनेंस फेलियर का आरोप.. ब्रिटानिका के अनुसार, एअर इंडिया के प्रमुख हादसों में तकनीकी खराबी, मानवीय गलती और आतंकवाद शामिल हैं.. एयरलाइंस में 263 सुरक्षा उल्लंघन पाए गए, जिनमें एअर इंडिया के 51 थे.. लेवल 2 उल्लंघन जो उड़ान प्रभावित कर सकते हैं 44 थे.. फ्यूल सिस्टम, इलेक्ट्रिकल फॉल्ट्स दोहराए जा रहे थे.. DGCA चीफ ने कहा कि भारत की दुर्घटना दर वैश्विक औसत से कम है.. लेकिन आलोचक कहते हैं कि रिपोर्टिंग कमजोर है..
एअर इंडिया पर व्हिसलब्लोअर्स की अनदेखी के आरोप हैं.. 2023 में एक इंजीनियर ने फ्यूल स्विच दोष की चेतावनी दी.. लेकिन कार्रवाई नहीं हुई.. टाटा ग्रुप द्वारा खरीद के बाद सुधार के वादे हैं.. लेकिन क्रैश ने सवाल खड़े किए.. ICAO ने भारत की सेफ्टी रेटिंग पर चिंता जताई.. विशेषज्ञ कहते हैं कि ट्रेनिंग, मेंटेनेंस और रेगुलेशन मजबूत करने की जरूरत है.. DGCA ने क्रैश के बाद बोइंग 787 फ्लीट चेक किया.. लेकिन कोई बड़ा दोष नहीं मिला.. फिर भी सवाल बाकी हैं.. क्या प्राइवेटाइजेशन ने सुरक्षा को प्रभावित किया? सरकार का जवाब अगली सुनवाई में आएगा…
सुप्रीम कोर्ट का आदेश जांच को नई दिशा दे सकता है.. अगर स्वतंत्र प्रोब साबित हुई कि सिस्टम फेलियर था.. तो एअर इंडिया पर भारी जुर्माना लग सकता है.. परिवारों को न्याय मिलेगा, और सुरक्षा मानक ऊंचे होंगे.. विशेषज्ञों का मानना है कि CVR फुल ट्रांसक्रिप्ट से सच्चाई खुलेगी.. लेकिन देरी हो रही है.. फाइनल रिपोर्ट अभी दूर है.. वहीं यह केस अन्य देशों के लिए सबक है.. अमेरिका में NTSB की पारदर्शिता मिसाल है.. भारत को भी ऐसा मॉडल अपनाना चाहिए.. पीड़ित परिवारों की आवाज मजबूत हो रही है.. वे मुआवजे से ज्यादा सच्चाई चाहते हैं…



