अरावली बचाने के लिए अखिलेश की खास पहल, ‘विदेशी तो छोड़िए, देश के पर्यटक भी नहीं आएंगे’

देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल अरावली की पहाड़ियों की ऊंचाई-आधारित नयी परिभाषा को लेकर सियासी और सामाजिक विवाद बढ़ता ही जा रहा है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल अरावली की पहाड़ियों की ऊंचाई-आधारित नयी परिभाषा को लेकर सियासी और सामाजिक विवाद बढ़ता ही जा रहा है। अरावली को बचाने के लिए चारों तरफ से आवाजें उठ रही हैं। जगह-जगह प्रोटेस्ट किये जा रहे हैं।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरोध के बीच अब विपक्ष ने भी सरकार पर निशाना साधा है. विपक्ष के नेता इसे लेकर सरकार पर हमला बोल रहे हैं और भाजपा सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं। इसी कड़ी में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इसे दिल्ली और एनसीआर के भविष्य से जुड़ा गंभीर मुद्दा बताते हुए व्यापक चेतावनी दी है. बता दें कि अरावली विवाद सीधे पर्यावरण, प्रदूषण नियंत्रण और जनजीवन से जुड़ा माना जाता है. अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया. उन्होंने इस पोस्ट में अरावली को दिल्ली का प्राकृतिक सुरक्षा कवच बताया है. उन्होंने कहा प्रिय दिल्लीवासियों, बची रहे जो अरावली तो दिल्ली रहे हरीभरी! अरावली को बचाना कोई विकल्प नहीं है बल्कि ये तो संकल्प होना चाहिए. मत भूलिए कि अरावली बचेगी तो ही एनसीआर बचेगा.

अखिलेश ने इसपर जो देते हुए कहा कि अरावली को बचाना ज़रूरी है क्योंकि यह दिल्ली और एनसीआर के लिए एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच है या कहें क़ुदरती ढाल है. अरावली ही दिल्ली के ओझल हो चुके तारों को फिर से दिखा सकती है, पर्यावरण को बचा सकती है. अरावली पर्वतमाला ही दिल्ली के वायु प्रदूषण को कम करती है और बारिश-पानी में अहम भूमिका निभाती है. अरावली से ही एनसीआर की जैव विविधता बची हुई है. जो वेटलैंड गायब होते चले जा रहे हैं, उन्हें यही बचा सकती है. गुम हो रहे परिंदों को वापस बुला सकती है.

वहीं इसी कड़ी में अखिलेश यादव ने कहा कि अरावली से ही एनसीआर का तापमान नियंत्रित होता है. इसके अलावा अरावली से एक भावात्मक लगाव भी है जो दिल्ली की सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहर का हिस्सा है. अरावली को बचाना, दिल्ली के भविष्य को बचाना है, नहीं तो एक-एक सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे दिल्लीवासी स्मॉग जैसे जानलेवा हालात से कभी बाहर नहीं आ पाएंगे. आज एनसीआर के बुज़ुर्ग, बीमार और बच्चों पर प्रदूषण का सबसे ख़राब और ख़तरनाक असर पड़ रहा है. यहां के विश्व प्रसिद्ध हॉस्पिटल और मेडिकल सर्विस सेक्टर तक बुरी तरह प्रभावित हुआ है, जो लोग बीमारी ठीक करने दिल्ली आते थे,

वो अब और बीमार होने नहीं आ रहे हैं. उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ये हाल रहा तो उत्तर भारत के सबसे बड़े बाज़ार और आर्थिक केंद्र के रूप में भी दिल्ली अपनी अहमियत खो देगी. ⁠विदेशी तो छोड़िए, देश के पर्यटक भी यहां नहीं आएंगे. ⁠न ही दिल्ली में कोई बड़ा इवेंट आयोजित होगा. न ही कोई राजनीतिक, शैक्षिक, अकादमिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक सम्मेलन आयोजित होगा. ⁠न ही ओलंपिक, कॉमनवेल्थ या एशियाड जैसी कोई बड़ी खेल प्रतियोगिता आयोजित होगी. उन्होंने कहा कि ⁠यहां का होटल, रेस्टोरेंट, टैक्सी-कैब, गाइड, हैंडीक्राफ़्ट बिज़नेस, हर काम-कारोबार व अन्य सभी आर्थिक-सामाजिक गतिविधियां ठप्प हो जाने के कगार पर पहुंच जाएंगी.

अखिलेश यादव ने कहा कि जब प्रदूषण की वजह से हवाई जहाज़ नहीं चलेंगे, ट्रेनें घंटों लेट होंगी, सड़क परिवहन असुरक्षित हो जाएगा, तो दिल्ली कौन आएगा? ⁠यहां तक कि इसका असर ये भी पड़ेगा कि लोग अपने बेटी-बेटे की शादी तय करने से पहले दिल्ली के हवा-पानी के बारे में सोचने लगेंगे. उन्होंने ⁠इसीलिए हर नागरिक के साथ हर स्कूल-कोचिंग, हर व्यापारी, हर रेहड़ी-पटरीवाले, हर घर-परिवार तक को अरावली बचाओ अभियान का हिस्सा बनना चाहिए. ⁠हर चैनल, हर अख़बार को ये अभियान चलाना चाहिए.

अखिलेश यादव ने कहा कि जो लोग सरकार की चाटुकारिता कर रहे हैं, वो भी समझ लें कि उनका स्वयं का जीवन भी ख़तरे में है. अरावली को बचाना मतलब ख़ुद को बचाना है. अगर अरावली का विनाश नहीं रोका गया तो भाजपा की अवैध खनन को वैध बनाने की साज़िश और ज़मीन की बेइंतहा भूख देश की राजधानी को दुनिया की प्रदूषण राजधानी बना देगी और लोग दिल्ली छोड़ने को बाध्य हो जाएंगे. इसीलिए आइए हम सब मिलकर अरावली बचाएं और भाजपा की गंदी राजनीति को जनता और जनमत की ताक़त से हराएं.

देश के 3 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश से गुजरने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर पर्यावरण प्रेमी डरे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को एक फैसले में पर्यावरण मंत्रालय की एक सिफारिश को सही माना है। केंद्र सरकार की सिफारिश को मानते हुए अरावली की नई परिभाषा तय की गई है। अब केवल वे पहाड़ियां जो अपने आसपास के स्थानीय स्तर से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंची हैं, उन्हें ही ‘अरावली हिल’ माना जाएगा। अगर दो या दो से ज्यादा ऐसी पहाड़ियां एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में हैं तो उन्हें ‘अरावली रेंज’ कहा जाएगा। 700 किलोमीटर रेंज में फैली अरावली पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पर्यावरण विशेषज्ञ और कार्यकर्ता चिंतित हैं। उनका कहना है कि इस नई परिभाषा से अरावली का लगभग 90 फीसदी हिस्सा संरक्षण से बाहर हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो इस इलाके में खनन और निर्माण शुरू होगा, जिसका असर यहां के इको सिस्टम सिस्टम और पर्यावरण पर पड़ेगा। देश के पर्यावरण प्रेमियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर चिंता जताई है। सोशल मीडिया पर #SaveAravalli हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। लोग इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला को बचाने की अपील कर रहे हैं।

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