भूपेंद्र सरकार ने मोदी की योजना पर लगाई रोक, किसानों को नहीं मिल रहा बीमा का लाभ!
गुजरात सरकार ने 2020 में योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को 'नॉन-लॉस' मोड में चलाने का फैसला किया... यानी राज्य का नुकसान न हो...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात के खेतों में इस साल बेमौसम बारिश ने कहर बरपा दिया है.. अक्टूबर के आखिर और नवंबर की शुरुआत में आई भारी बारिश ने हजारों किसानों की फसलें तबाह कर दीं.. धान, कपास, मूंगफली और सब्जियों जैसी मुख्य फसलों पर पानी की मार पड़ी.. जिससे लाखों रुपये का नुकसान हुआ.. किसान संगठन चिल्ला रहे हैं कि सरकार, हमारी खेती की सीमा तक मुआवजा दे.. वहीं, राज्य में फसल बीमा योजना के न होने पर सवाल उठ रहे हैं.. पूरे देश में यह योजना चल रही है.. तो गुजरात के किसानों का क्या कसूर.. दूसरी तरफ, केंद्र की भाजपा सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि.. वह उद्योगपतियों के अरबों के कर्ज माफ कर सकती है.. लेकिन किसानों का क्यों नहीं.. ऊपर से पशुओं के लिए चारे की किल्लत ने पशुपालकों को परेशान कर दिया है..
आपको बता दें कि गुजरात में मानसून खत्म होने के बाद भी बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही… मौसम विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक राज्य के 15 जिलों में 100-200 मिमी से ज्यादा बारिश हुई.. सौराष्ट्र, कच्छ और उत्तर गुजरात के इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुए.. अहमदाबाद से लेकर राजकोट तक के खेतों में पानी भर गया.. गुजरात कृषि विभाग की 4 नवंबर की प्रारंभिक रिपोर्ट कहती है कि करीब 2.5 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ है.. इसमें धान की फसल पर सबसे ज्यादा नुकसान हुआ.. कपास के खेतों में पानी घुसने से फसल सड़ गई.. और मूंगफली की पैदावार 40% तक कम हो गई..
बता दें कि गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने 3 नवंबर को ट्वीट किया कि बारिश प्रभावित इलाकों का सर्वे चल रहा है.. जल्द मुआवजा राशि जारी होगी.. लेकिन किसान संगठन कहते हैं कि सर्वे धीमा है.. राज्य आपदा प्रबंधन विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि 50,000 से ज्यादा किसानों ने नुकसान का आकलन कराया है.. केंद्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ के तहत मुआवजा मिल सकता है.. लेकिन गुजरात में इसको लागू नहीं होने से किसान परेशान हैं..
पूरे भारत में फसल बीमा चल रही है.. तो गुजरात में क्यों नहीं.. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2016 से लागू है.. जो केंद्र और राज्य मिलकर चलाते हैं.. इसमें किसान कम प्रीमियम पर फसल का बीमा कराते हैं.. और प्राकृतिक आपदा में नुकसान पर मुआवजा मिलता है.. 2024-25 के कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक.. 28 राज्यों में यह योजना पूरी तरह सक्रिय है.. किसानों ने 5 करोड़ से ज्यादा आवेदन दिए.. और 1.5 लाख करोड़ रुपये का बीमा कवर मिला.. लेकिन गुजरात में समस्या है..
गुजरात सरकार ने 2020 में योजना को ‘नॉन-लॉस’ मोड में चलाने का फैसला किया.. यानी राज्य का नुकसान न हो.. लेकिन 2023 से यह पूरी तरह बंद हो गई.. राज्य कृषि मंत्री कन्हैया लाल पटेल ने विधानसभा में कहा था.. प्रीमियम बहुत ज्यादा था, किसान भुगतान नहीं कर पा रहे.. 2024 में गुजरात के सिर्फ 10% किसानों ने बीमा कराया.. जबकि महाराष्ट्र में 70% और पंजाब में 80% किसानों ने बीमा कराया.. विशेषज्ञ डॉ. विपिन शर्मा कहते हैं कि गुजरात में नकदी फसलों पर फोकस है.. लेकिन बीमा की कमी से छोटे किसान जोखिम में हैं.. वहीं अगर योजना चल रही होती.. तो इस बार के नुकसान पर 2,000-3,000 रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजा मिल जाता.. लाखों किसान बच जाते..
किसान नेता शरद जोशी की अगुवाई वाला ‘शेतकारी संगठन’ गुजरात चैप्टर ने 5 नवंबर को अहमदाबाद में धरना दिया.. उनका बैनर कहता था कि गुजरात के किसान निर्दोष क्यों सजा भुगतें.. संगठन का दावा है कि योजना बहाल होने से 5 लाख से ज्यादा किसान को लाभ मिलता.. केंद्र सरकार ने 2025 के बजट में योजना के लिए 16,000 करोड़ रुपये आवंटित किए.. लेकिन गुजरात ने अपना हिस्सा नहीं डाला… विपक्षी दल कांग्रेस और आप ने राज्यपाल को पत्र लिखा है कि यह भेदभाव है.. गुजरात को छोड़कर बाकी राज्य क्यों तरक्की कर रहे..
वहीं यह बहस पुरानी है.. लेकिन बेमौसम बारिश ने इसे फिर हवा दे दी.. विपक्ष कहता है कि भाजपा सरकार उद्योगपतियों के 21 लाख करोड़ के कर्ज माफ कर सकती है.. तो किसानों का क्यों नहीं.. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की 2023-24 की रिपोर्ट कहती है कि 2008 से 2022 तक बैंकों ने 16.11 लाख करोड़ रुपये के कॉर्पोरेट कर्ज माफ किए.. इसमें बड़े उद्योगपति जैसे नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या के मामले शामिल हैं.. जो देश छोड़ भाग गए.. इनका कुल कर्ज 25,000 करोड़ से ज्यादा था.. जो माफ हो गया..
केंद्र सरकार ने 2019-20 में ‘इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड’ के तहत 10 बड़े मामलों में 3 लाख करोड़ का कर्ज सेटल किया.. उद्योग मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में कहा था कि यह अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए जरूरी था.. लेकिन किसान संगठन पूछते हैं कि किसानों का कर्ज क्यों नहीं माफ हुआ.. 2025 तक किसानों पर कृषि मंत्रालय डेटा के अनुसार 18 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है.. गुजरात में ही 2 लाख करोड़ का किसान कर्ज बकाया है.. 2021 में उत्तर प्रदेश और पंजाब में किसान कर्ज माफी हुई… जहां 1-2 लाख करोड़ माफ हुए.. लेकिन गुजरात में ऐसा कुछ नहीं हुआ…
आपको बता दें कि विपक्ष ने संसद में प्रस्ताव लाने की बात कही है.. कांग्रेस सांसद शक्तिसिंह गोहिल ने कहा कि गुजरात मॉडल का दावा करने वाली सरकार किसानों को क्यों भूल गई.. विशेषज्ञों का मानना है कि कर्ज माफी से तात्कालिक राहत मिलेगी.. लेकिन लंबे समय के लिए फसल बीमा और सिंचाई जैसी योजनाएं जरूरी हैं.. शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि अगर भाजपा सरकार देश के उद्योगपतियों का 21 लाख करोड़ रुपये का कर्ज.. और देश छोड़कर भाग गए उद्योगपतियों का कर्ज़ माफ कर सकती है.. तो किसानों का क्यों नहीं.. पशुओं के लिए चारे की कमी है.. इस हालात में पशुपालकों को मुफ़्त में चारा उपलब्ध कराया जाए..



