मलिक मोहतसिम खान का बड़ा बयान, कहा- पारदर्शिता से जुड़े सवालों केजवाब देना जरूरी
मीडिया को जारी एक बयान में उन्होंने कहा ‘शुरू में ड्राफ्ट लिस्ट से करीब 65 लाख नाम हटा दिए गए थे, जो एक अभूतपूर्व संख्या थी और सुधारों के बाद भी, 47 लाख वोटरों को बहार किया गया.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोहतसिम खान ने देशभर में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चिंता व्यक्त की है. उनका कहना है कि इस प्रक्रिया को पूरे देश में लागू करने से पहले, चुनाव को उन जरूरी सवालों के जवाब देने होंगे जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता के लिए जरूरी हैं.
बिहार के बाद देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में वोटर लिस्ट अपडेट की जाएगी. सोमवार (27 अक्टूबर) को चुनाव आयोग ने बताया कि इन राज्यों में वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR 28 अक्टूबर से शुरू होगा और 7 फरवरी को खत्म होगा. आयोग के इस फैसले पर विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है. वहींजमात-ए इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने भी देशव्यापी SIR की घोषणा पर चिंता जताई है.
जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्षमलिक मोतसिम खान ने चुनाव आयोग से हाल ही में बिहार में हुए SIR से सबक लेते हुए इस प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और समावेश की अपील की ताकि बड़े पैमाने पर वोटरों के नाम हटाए जाने की एक और लहर को रोका जा सके. उनका कहना है कि बिहार SIR में गंभीर गड़बड़ियां, अव्यवहारिक टाइमलाइन और पारदर्शिता की कमी थी.
मीडिया को जारी एक बयान में उन्होंने कहा ‘शुरू में ड्राफ्ट लिस्ट से करीब 65 लाख नाम हटा दिए गए थे, जो एक अभूतपूर्व संख्या थी और सुधारों के बाद भी, 47 लाख वोटरों को बहार किया गया. इस प्रक्रिया में राज्य के बजाय नागरिकों पर सबूत देने का बोझ डाला गया, जिससे यह एक प्रशासनिक संशोधन के बजाय नागरिकता सत्यापन अभियान बन गया. इस प्रक्रिया को पूरे देश में लागू करने से पहले, ECI को उन जरूरी सवालों के जवाब देने होंगे जो लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता के लिए बहुत जरूरी हैं’.
उन्होंने आगे कई सवाल उठाए. उन्होंने पूछा कि बिहार के अनुभव से क्या सबक सीखा गया और SIR गाइडलाइन में क्या खास बदलाव किए गए. उन्होंने SIR के दूसरे फेज़ के लिए ECI द्वारा तय की गई टाइमलाइन पर भी सवाल उठाया. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सिर्फ़ एक महीने में इतना बड़ा काम करने से कई दिक्कतें आएंगी. उन्होंने पूछा किECI इस ज़रूरी प्रोसेस के लिए पर्याप्त समय क्यों नहीं दे रहा है.
मोतसिम खान ने 2002/2003 को कटऑफ साल के तौर पर लगातार इस्तेमाल करने पर भी सवाल उठाया. उनका कहना है कि उस समय कोई सिटिज़नशिप वेरिफिकेशन नहीं किया गया था, और क्या अवैध विदेशियों की पहचान करना अभी भीSIR का एक मकसद है. इसके अलावा, उन्होंने इस बात पर भी क्लैरिटी मांगी कि सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देशों के बावजूद आधार को सिटीजनशिप के सबूत के तौर पर क्यों रिजेक्ट किया जा रहा है, जबकि दूसरे नॉन-सिटीजनशिप डॉक्यूमेंट्स स्वीकार किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि 2002/2003 की लिस्ट में शामिल होने के आधार पर छूट के लिए कौन योग्य है – व्यक्ति, उसके बच्चे, या परिवार के दूसरे सदस्य.
जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्षने घर-घर जाकर वेरिफिकेशन के बदले हुए प्रोसेस पर संदेह जताया और पूछा कि क्या अब ड्राफ्ट स्टेज के दौरान नए वोटर्स को जोड़ने की इजाज़त है, और ECI सभी सबमिट किए गए फॉर्म के लिए एक्नॉलेजमेंट रिसीट कैसे पक्का करेगा. उन्होंने अधिकारियों या बूथ लेवल ऑफिसर (BLOs) द्वारा बिना सहमति के फॉर्म भरने की रिपोर्ट की ओर भी इशारा किया और पूछा कि ऐसी धोखाधड़ी को रोकने के लिए क्या सेफगार्ड्स लगाए गए हैं. उन्होंने प्रवासी मजदूरों के साथ होने वाले बर्ताव को भी गंभीर चिंता के तौर पर उठाया, जिन्हें अस्थायित्व और दस्तावेज़ों की कमी के कारण अपवर्जन का सामना करना पड़ता है.
उपाध्यक्ष ने बिहार SIR के दौरान महिलाओं के प्रतिनिधित्व में आई कमी पर ध्यान दिलाते दिलाया और पूछा कि इस तरह के नतीजे को रोकने के लिए सुधार के क्या कदम उठाए जाएंगे. उन्होंने सवाल किया कि क्या लिस्ट से बाहर किए गए लोगों को हटाने से पहले नोटिस और सुनवाई का मौका मिलेगा, या उन्हें नए वोटर के तौर पर दोबारा अप्लाई करने के लिए मजबूर किया जाएगा. इसके अलावा, उन्होंने यह भी साफ करने के लिए कहा कि PAN कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, MNREGA जॉब कार्ड, राशन कार्ड और बैंक पासबुक जैसे आम पहचान डॉक्यूमेंट्स – जो ECI के दूसरे प्रोसेस में रेगुलर तौर पर स्वीकार किए जाते हैं, उन्हें अनुमोदित लिस्ट से क्यों हटा दिया गया है.
मलिक मोअतसिम खान ने तकनीकी पारदर्शिता और सटीकता की ज़रूरत पर ज़ोर दिया, और पूछा कि क्या ECI ने एक असरदार डी-डुप्लीकेशन सिस्टम समन्वित किया है और क्या वह पब्लिक की जांच के लिए मशीन-रीडेबल ड्राफ्ट (पढ़ने योग्य मसौदा) और पूर्ण निर्वाचक नामावली जारी करेगा.उन्होंने कहा कि ये कदम वोटर का भरोसा बनाए रखने और हेरफेर या गलती को रोकने के लिए ज़रूरी हैं.
मलिक ने आगे कहा ‘निर्वाचक नामावली में बदलाव नागरिकता सत्यापन अभियान जैसा नहीं होना चाहिए। वोट देने का अधिकार सुरक्षित रखा जाना चाहिए, न कि ब्यूरोक्रेटिक तरीकों से इसमें रुकावट डाली जानी चाहिए. उन्होंने निर्वाचन आयोग से इन मुद्दों पर सार्वजनिक सफाई देने और यह पक्का करने की अपील की कि किसी भी नागरिक को दस्तावेज़ों की दिक्कतों या प्रशासनिक अस्पष्टता के कारण वोट देने के अधिकार से वंचित न किया जाए. उन्होंने कहा ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए सभी को शामिल करना और भरोसा ज़रूरी है. ECI को पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए, संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखना चाहिए, और हर भारतीय के वोट देने के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए’.



