कर्ज में डूबा Bihar, CM Nitish की 10 हजारी योजना ने सब डुबा दिया!

बिहार सरकार विकास के बड़े दावे करती रही है…डबल इंजन, सुशासन, विकास की गंगा, बदलता बिहार…

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार सरकार विकास के बड़े दावे करती रही है…डबल इंजन, सुशासन, विकास की गंगा, बदलता बिहार…

ये सारे नारे पिछले कई सालों से बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे हैं…लेकिन जब असल तस्वीर सामने आती है…तो पता चलता है कि हकीकत में तो बिहार की जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाने वाली नीतीश सरकार जनता को कर्ज के बोझ तले दबा दिया है…जी हां, खबर देखिए…दैनिक भास्कर एनालिसिस में खुलास किया गया है…लिखा है 10 हजारी स्कीम का असर, हर बिहारी पर 27000 रूपए का कर्ज….

केंद्र ने सहयोग नहीं किया तो 10 लाख कर्मचारियों की फंसेगी सैलरी….सड़क-पुल-पुलिया तो आप भूल ही जाइए……..अगली खबर में भी देखिए…..इसमें लिखा है…मुफ़्त की दौलत ने कर दिया बिहार का खजाना खाली…10 हज़ारी योजना ने नीतीश सरकार की माली सेहत को किया लहूलुहान…..यानी आपके चहेते मुख्यमंत्री जी ने हर बिहारी को 27000 रुपए के कर्ज में डुबो दिया है…

बिहार की आर्थिक हालत कभी भी इतनी खराब नहीं रही….जितनी आज है…सबसे बड़ा सवाल ये है कि….क्या सीएम नीतीश कुमार और NDA सरकार ने बिहार को कर्ज के दलदल में झोंक दिया है?…तो जवाब है….हाँ, बिल्कुल….आज स्थिति ये है कि हर बिहारी पर 27,000 रुपये से ज्यादा कर्ज चढ़ चुका है…और आने वाले महीनों में ये बोझ और बढ़ने वाला है…क्योंकि सरकार की मुफ्त योजनाएं और 10-10 हजार वाली स्कीमें सीधे राज्य की कमर तोड़ रही हैं…

नीतीश सरकार की 10 हजारी योजना राजनीतिक तौर पर जरूर फायदेमंद दिखी…लेकिन आर्थिक रूप से ये बिहार के लिए विनाशकारी साबित हो रही है…लाखों लोगों के खाते में 10-10 हजार रुपये देने के बाद सरकार अब उसी स्कीम की अगली किश्त देने में भी हांफ रही है…सरकार को आगे और 2–2 लाख रुपये तक देने हैं…यानी योजनाओं का विस्तार हुआ तो खर्च 10 हजार से बढ़कर लाखों करोड़ तक पहुंचने का डर है…राज्य का पूरा फाइनेंस सिस्टम चरमराने लगा है…ये कहना गलत नहीं होगा कि ये स्कीम एक चुनावी स्टंट से ज्यादा कुछ भी नहीं और आर्थिक आत्महत्या से कम नहीं है…

सरकार के पास पैसा नहीं है….और योजनाओं का बोझ बढ़ता जा रहा है…आज स्थिति ये है कि…बिहार का हर नागरिक, चाहे वो नवजात बच्चा ही क्यों न हो, 27 हज़ार रुपये से ज्यादा का कर्जदार हो चुका है….विकास की बात करने वाली सरकार ने कर्ज के पहाड़ खड़े कर दिए हैं…लेकिन जवाब देने से बच रही है…एक साल में ही सरकार को दो बार सप्लीमेंट्री बजट पेश करना पड़ा…

ये किसी भी राज्य की माली हालत की सबसे बड़ी चेतावनी है…यानी अब विकास की गाड़ी रुक गई है और सड़क, पुल, पुलिया सबकुछ ठप हो गए…क्योंकि, जब सरकार की आधी कमाई….सैलरी, पेंशन और मुफ्त योजनाओं में चली जाए….तो सड़क, पुल, शिक्षा और अस्पताल…इन सबकी स्थिति क्या होगी….आप समझ सकते हैं…वहीं वित्त विभाग की रिपोर्ट साफ कहती है कि आने वाले महीनों में विकास परियोजनाओं पर काम ठप होने का खतरा है…

पुल-पुलिया का बजट कट…मिली जानकारी के मुकाबिक, जिन जिलों में नई सड़कें बननी थीं…वहां टेंडर रोक दिए गए…जहां पुल का निर्माण होना था…वहां ठेकेदारों को भुगतान भी रुका है………यानी सरकार केवल योजनाओं के विज्ञापन चला रही है…जमीन पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है…………बिहार सरकार की एक और बड़ी चिंता ये है कि अगर केंद्र ने फंड नहीं दिया…..तो 10 लाख सरकारी कर्मचारियों की सैलरी तक फंस जाएगी…दरअसल, राज्य की कमाई बेहद कम है…GST शेयर घटा है…

एक्साइज और रेवेन्यू कलेक्शन कमजोर है…ऐसे में नीतीश सरकार लगातार केंद्र को पत्र लिख रही है कि उसे अतिरिक्त मदद दी जाए…लेकिन केंद्र भी जानता है कि बिहार की वित्तीय स्थिति योजनाओं के गलत संचालन और अनियोजित फैसलों का परिणाम है…इसलिए केंद्र से भी राहत मिलनी मुश्किल लग रही है…अगर अगले दो महीनों में केंद्र से फंड नहीं आया…तो सैलरी, पेंशन और डेवलपमेंट….इन तीनों पर संकट आ जाएगा…

नीतीश कुमार और NDA नेताओं ने पिछले चुनावों में कहा था कि…2025 तक बिहार देश का सबसे तेजी से विकसित होने वाला राज्य बनेगा…लेकिन आंकड़े बोलते हैं…बिहार विकास नहीं, कर्ज और मुफ्त योजनाओं के जाल में फंस गया है…राज्य का बजट 3 लाख करोड़ के करीब पहुंच गया है…लेकिन उसमें से आधा से ज्यादा पैसा केवल रूटीन खर्च पर जा रहा है…यानि कि पुराने बकाया, वेतन, पेंशन और कर्ज की किश्तें…विकास बजट घटता जा रहा है….नई परियोजनाएं रुकी हुई हैं…और फिलहाल कोई बड़ा औद्योगिक निवेश भी नहीं आ रहा है…

बिहार में कर्ज बढ़ने के तीन बड़े कारण हैं…पहला…..मुफ्त योजनाओं की भरमार…वोट पाने की राजनीति में सरकार ने इतनी योजनाएं शुरू कर दीं कि खजाना खाली होने लगा…सबको पैसा देना आसान था…लेकिन उसके लिए आय नहीं बढ़ाई गई……………..दूसरा…टैक्स कलेक्शन बेहद कमजोर होना………….देखिए, बिहार में उद्योग कम हैं और सरकार की अपनी आमदनी लगातार गिरती जा रही है…बिना कमाए, सिर्फ खर्च करने से कोई भी राज्य नहीं चल सकता………………..और तीसरा बड़ा कारण है…गलत प्राथमिकताएं….जब पैसा था तब सरकार ने विकास पर खर्च नहीं किया…अब जब पैसों की जरूरत बढ़ी है…………तो खजाना खाली है…

ऐसे में कभी सुशासन बाबू कहे जाने वाले सीएम नीतीश कुमार आज पूरी तरह राजनीतिक मजबूरियों में फंसे हुए दिखते हैं…कभी RJD के साथ, कभी BJP के साथ…बार-बार गठबंधन बदले गए…इन राजनीतिक उलटफेरों ने सरकार को इतने खर्चों के लिए मजबूर कर दिया कि आर्थिक प्रबंधन पीछे छूट गया…और ये कहना गलत नहीं होगा कि आज बिहार ऐसे नेता के हाथों में है……जो राजनीतिक समीकरण तो संभाल सकता है…लेकिन आर्थिक संकट से निपटने में पूरी तरह नाकाम दिखता है………

बिहार की जनता सवाल पूछ रही है कि…क्या हम इसी दिन के लिए वोट देते हैं कि सरकार हमें कर्ज में डुबो दे?…क्या हमारी अगली पीढ़ी भी कर्ज का बोझ उठाएगी?…..बिहार का युवा काम चाहता है, न कि मुफ्त का पैसा…उसे रोजगार चाहिए, उद्योग चाहिए…लेकिन सरकार का ध्यान सिर्फ वोटरलिस्ट मजबूत करने में लगा हुआ है…राज्य की वित्तीय हालत अब इतनी खराब है कि अर्थशास्त्री इसे ICU स्टेज बता रहे हैं…रेवेन्यू डेफिसिट लगातार बढ़ रहा है…लोन लीमिट पार हो रही है…फाइनेंस डिपार्टमेंट विकास कार्यों की फाइलें रोक रहा है…इसका सीधा मतलब है कि अगले 1 साल तक बिहार में कोई बड़ा विकास काम शुरू होने की कोई संभावना नहीं है…

सीएम नीतीश कुमार और NDA सरकार ने बिहार को विकसित राज्य बनाने का वादा किया था…लेकिन आज हालात ये हैं कि…बिहार की आर्थिक रीढ़ टूट चुकी है…पूरा बिहार कर्ज में डूब चुका है…सैलरी और विकास दोनों पर संकट मंडरा रहा है……मुफ्त योजनाओं की राजनीति ने बिहार को पीछे धकेल दिया है…भरोसा टूट चुका है और जनता अब जवाब चाहती है कि…विकास के नाम पर बिहार को कर्ज में क्यों डूबा दिया गया?….क्या बिहार को विकास की ओर ले जाने जो दावे NDA, पीएम मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और सीएम नीतीश कुमार ने किए थें…वो सभी दावे सिर्फ और सिर्फ चुनावी थे?…. बिहार की सियासत में 10 हज़ारी योजना और उससे पैदा हुआ माली बोझ ने राज्य सरकार की कमर तोड़ दी है….चुनावी मौसम की राहत और रहमत देने वाली ये योजना अब सरकार के लिए ज़िम्मेदारी का पहाड़ बन चुकी है…..मुफ़्त बिजली, महिलाओं को दो-दो लाख की मदद और तमाम लोकलुभावन वादों ने बिहार के वित्तीय ढांचे में ऐसी दरार डाल दी है…

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