BJP को तोड़ने की तैयारी में नीतीश! चिराग ने किया बड़ा खुलासा
बिहार में नीतीश भले ही मुख्यमंत्री हों लेकिन कद देखा जाए तो भाजपा का ही बड़ा है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार में नीतीश भले ही मुख्यमंत्री हों लेकिन कद देखा जाए तो भाजपा का ही बड़ा है।
इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद बिहार में बीजेपी का कद जहां पहले से बढ़ा तो वहीं दूसरी तरफ पहले कभी बड़े भाई की भूमिका निभा रहे नीतीश कुमार का कद काफी कम हुआ। हाँ वो बात अलग है कि सीएम नीतीश कुमार को ही बनाया गया। लेकिन इस बार जबसे नीतीश कुमार को सीएम बनाया गया है सियासी गलियारों में इसको लेकर चर्चा जोरों पर है। सियासी पंडितों का तो ये भी कहना है कि नीतीश को सीएम बनाना बीजेपी की मजबूरी थी वहीँ कुछ का ये भी कहना है कि नीतीश महज नाम के सीएम हैं बाकी के सारे विभाग तो बीजेपी के पास ही हैं।
खैर इसे लेकर अटकलों और बयानबाजियों का दौर जारी है। इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्री और एलजेपी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने इस मुद्दे को लेकर खुलकर अपनी बात रखी। मुद्दों को लेकर अपनी बात रखी है. जब उनसे सवाल किया गया कि बिहार में बीजेपी की ज्यादा सीटें होने के बाद भी नीतीश कुमार सीएम क्यों हैं? इस सवाल पर चिराग पासवान ने कहा कि जो अगले पांच साल हैं वो बिहार के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. वो इसे गोल्डन एरा के रूप में मानता हैं.
चिराग ने कहा कि अगले पांच सालों में बिहार में आपको वो बदलाव दिखेंगे जो संभवत: दो दशक में हम लोग उम्मीद कर रहे थे. दो दशकों में वो जमीन तैयार की जा रही है. केंद्रीय मंत्री ने कहा, ”मैं ये मानता हूं कि अगले पांच उस अनुभव का होना जरूरी जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास है. बिहार आसान राज्य नहीं है. बिहार में जरूरी है कि आप उस अनुभव के साथ आएं. डबल इंजन का फायदा तब उठा पाएंगे जब आपके पास अनुभव होगा.”
वहीं खुद के सीएम बनने को लेकर भी उन्होंने कहा कि ‘सीट शेयरिंग में देर हो गई. मेरे पास वो समय ही नहीं था कि मैं अपने चुनाव की तैयारी कर सकूं. मेरी राजनीति में आने का कारण ही बिहार और बिहारी हैं. मैं सक्रिय भूमिका में बिहार में रहना चाहता हूं. पद जरूरी नहीं, व्यवस्था का हिस्सा बनना जरूरी है. मैं मुख्यमंत्री बनूंगा तभी बिहार जाऊंगा ऐसी मेरी कतई सोच नहीं है. मैं विधायक बनकर भी व्यवस्था का हिस्सा बन जाऊं, इसी सोच के साथ मैंने कहा कि मैं 2030 का विधानसभा चुनाव लड़ूंगा.”
बात की जाए नीतीश कुमार की तो पहले ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि नीतीश कुमार का हाल भी भाजपा ठीक उसी तरह करेगी जैसे महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे का हुआ। हालांकि चुनावी नतीजों के आने के बाद ऐसा नहीं हुआ बीजेपी के पास ज्यादा सीटें होते हुए भी सीएम नीतीश कुमार को ही बनाया गया लेकिन उनका कद जरूर घटा दिया गया। यहां तक की उनसे गृह विभाग भी छीन लिया गया। ऐसे में अब इसे लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।
बात की जाए पाला बदलने की तो दोस्तों आपको बता दें कि बिहार में पांच साल में चार अवसर ऐसे आते हैं, जब नए सियासी समीकरण की नींव रखी जाती है या राजनीति में कोई नई घटना होती है। सालाना ऐसे दो मौके आते हैं। हर पांचवें साल चुनाव होते हैं तो प्री और पोस्ट पोल समीकरण बनते और बिगड़ते हैं। जिन्हें जिसके साथ आवाजाही करनी होती है, वे खुले मन से इन्ही दो मौकों पर करते हैं या इसकी योजना बनाते हैं। साल के ये दो खास मौके होते हैं खरमास यानी मलमास और रमजान।
किसी भी शुभ काम के लिए लोग खरमास खत्म होने का इंतजार करते हैं। मकर संक्रांति के दही-चूड़ा भोज से नए समीकरण बनते और बिगड़ते हैं। इस बार बिहार में एनडीए की प्रचंड बहुमत से जीत तो हुई है, लेकिन अंदरखाने बड़ा-छोटा बनने-बनाने की होड़ के संकेत भी मिल रहे हैं। साथ ही, नए समीकरण की गंध भी लोगों की नाक तक पहुंच रही है।
खरमास 15 दिसंबर से शुरू होकर 14 जनवरी तक चलेगा। 15 जनवरी को मकर संक्रांति है, जिस दिन लोग दही-चूड़ा भोज के बाद नए काम की शुरुआत करते हैं। मलमास में कोई काम शुभ नहीं माना जाता, इसलिए शुभ कार्य के लिए राजनीतिक लोग भी मकर संक्रांति आने तक इंतजार करते हैं। राजनीति में नए समीकरण ऐसे ही मौकों पर बनते हैं या उनकी आधारशिला रखी जाती है। 15 दिसंबर से मलमास शुरू हो रहा है. मकर संक्रांति अगले माह 15 जनवरी को है।
बिहार की राजनीति में फिर से सरगर्मियां तेज हो गई हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव में 202 सीटें जीत कर एनडीए ने सत्ता में शानदार वापसी की है। भाजपा को 89 और जेडीयू को 85 सीटें मिली हैं। नीतीश कुमार ने 20 नवंबर को 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रिकार्ड बना लिया है. इसके बावजूद सवाल उठ रहे हैं कि क्या नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू फिर से नंबर वन बनेगी। क्या जेडीयू का बड़ा दल बनना नीतीश के पक्ष में जाएग या विपक्षी विधायकों का आकर्षण उन्हें महागठबंधन की ओर धकेल देगा।
अब ऐसे में चुनावी नतीजों से इतना तो साफ है कि एनडीए का जलवा बरकरार है, लेकिन नीतीश कुमार का व्यक्तिगत कद अब भी भाजपा से बहुत छोटा हो चुका है। भाजपा ने जेडीयू से चार सीटें अधिक जीती हैं। इसके बावजूद भाजपा ने नीतीश को ही सीएम बनाया है। भाजपा का स्पष्ट मत है कि 2025 का चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा गया, इसलिए भविष्य में भी उनका ही नेतृत्व बरकरार रहेगा। भाजपा की नीयत पर संदेह इसलिए होता है कि उसने स्पीकर का पद तो पुरानी परिपाटी का हवाला देकर ले ही लिया, 20 साल से सीएम के पास रहने वाला गृह विभाग भी इस बार बारगेनिंग कर भाजपा ने ले लिया है। गृह विभाग अब डेप्युटी सीएम सम्राट चौधरी के पास है. इससे तो यही लगता है कि एनडीए पर भाजपा ही हावी है। बड़ी पार्टी होने के नाते नैतिक रूप से उसका नैतिक हक भी बनता है।
वहीं बात की जाए महागठबंधन की तो इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्ष को महज 35 सीटें मिली हैं। महागठबंधन की लीड पार्टी आरजेडी के 25 विधायक जीते हैं, जबकि कांग्रेस के छह और वाम दलों-आईआईपी के चार विधायक निर्वाचित हुए हैं। नीतीश के प्रति महागठबंधन के विधायकों का आकर्षण कम नहीं हुआ है। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने तो इस साल जनवरी के पहले ही दिन कह दिया था कि नीतीश के लिए दरवाजे हमेशा खुले हैं। अब चर्चा है कि कांग्रेस के कुछ विधायक इधर उधर झुक सकते हैं। पहले भी कांग्रेस के कई विधान परिषद सदस्य नीतीश के साथ आ गए थे।
बहुजन समाज पार्टी और छोटे दलों के विधायक भी नीतीश के संपर्क में हैं। नीतीश का आकर्षण उनकी सामाजिक न्याय की छवि से है। अगर नीतीश ऑपरेशन तीर चलाते हैं, तो विपक्ष के 4-5 विधायकों का उनके साथ आना पक्का है। ऐसा हुआ तो नीतीश भाजपा से आगे निकल सकते हैं।
ऐसे में नीतीश को सहयोगियों से कोई दिक्कत नहीं है। इसकी आशंका तभी उत्पन्न होगी, जब भाजपा नीतीश कुमार को उनकी मर्जी के खिलाफ सीएम पद से बेदखल करने की कोशिश करे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जेडीयू के दो बड़े नेताओं से नीतीश के एग्जिट प्लान के बारे में पूछे जाने की खबर जब से मीडिया में आई है, तब से यह चर्चा बिहार में चल रही है कि क्या सच में नीतीश ऐसा सोच रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो यह उनकी मर्जी के खिलाफ कदम होगा। अब तक अपने मन की करने वाले नीतीश क्या भाजपा के इस दबाव को झेल पाएंगे या फिर कोई दूसरी रणनीति बनाएंगे।
इसी दूसरी रणनीति में नीतीश कुमार के नए समीकरण की भी चर्चा हो रही है। ऐसे में नीतीश ने स्पष्ट कर दिया है कि दो बार आरजेडी के साथ जाकर उन्होंने जो गलतियां कीं, उसे तीसरी बार नहीं दोहराएंगे। लेकिन उनकी पुरानी परंपरा देखें तो इसका कोई मोल नहीं रह जाता है। उन्होंने इसी तरह का बयान एक बार और दिया था, जब वे महागठबंधन का हिस्सा बने थे। उन्होंने कहा था कि मरना कबूल है, लेकिन भाजपा के साथ अब नहीं जाएंगे।
पाला बदलना नीतीश के लिए कोई बड़ी बात या नई बात नहीं है। याद हो कि नीतीश कुमार ने 2015 में भाजपा का साथ छोड़ आरजेडी से हाथ मिला लिया था। 2017 में आरजेडी का साथ छोड़ भाजपा संग हो गए। 2022 में फिर महागठबंधन का हिस्सा बने, लेकिन 2024 में एनडीए में वापसी कर ली। यही वजह है कि अब आवाजाही न करने के उनके कहे पर किसी को भरोसा नहीं होता। अगर ऐसा होता है तो नीतीश के साथ AIMIM के पांच और महागठबंधन के 35 विधायकों का साथ उन्हें मिल सकता है। इस तरह नीतीश के पास जेडीयू समेत विपक्षी विधायकों को मिला कर 125 का समर्थन हो जाएगा।
भाजपा अगर अपना सीएम बनाने का दबाव डालती है और नीतीश कुमार उसे स्वीकार कर लेते हैं तो यह मान लेना चाहिए कि सब कुछ उनकी मर्जी से हो रहा है। अगर उनकी मर्जी के खिलाफ भाजपा ने कदम उठाया तो उन्हें उसे झटका देने में देर नहीं लगेगी। उनका स्वभाव ऐसा ही रहा है. ऐसे में अब सभी को इंतजार है खरमास का। देखना ये होगा कि नीतीश कुमार कहीं फिर से पाला बदल लिए तो बीजेपी का बिहार में क्या होगा।



