हरियाणा में जाटों के जाल में उलझी भाजपा

  • गैर-जाट बिरादरियों पर फोकस कर रही बीजेपी
  • किसानों की नाराजगी भी सत्ताधारी दल को पड़ेगी भारी
  • प्रदेश की सियासत में जाटों का रहा है दबदबा
  • कांग्रेस ने जाटों के प्रतिनिधित्व पर दिया जोर

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
चंडीगढ़। विधानसभा चुनावों को लेकर हरियाणा में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने-अपने चुनावी घोषणापत्र जारी कर दिए हैं। दोनों की ओर से वादों का पिटारा खोला गया है और जनता को रिझाने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया है। अब जनता किसके वादों पर विश्वास करती है ये तो वो 5 अक्टूबर को मतदान के दिन बताएगी और इसका पता 8 अक्टूबर को परिणाम के दिन ही चल पाएगा। लेकिन इससे पहले दोनों ही दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे हैं। प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने टिकट वितरण में रणनीतिक कदम उठाए हैं। जो उनकी जाति-आधारित प्राथमिकताओं को दिखाता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपने उम्मीदवारों का चयन काफी सोच-समझकर किया है। जिससे कई जातियों को अपने पाले में लाया जा सकेगा।
हरियाणा में गैर-जाट राजनीति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जानी जाने वाली भाजपा ने जाट समुदाय को 15 टिकट दिए हैं, जो कुल 90 सीटों का 17 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं। पिछले सालों की तुलना में यह कम है। साल 2019 विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने 19 जाट उम्मीदवारों मैदान में उतारा था, जबकि 2014 में 24 जाट समुदाय के सदस्यों को टिकट दिया था।

हरियाणा में करीब 27 प्रतिशत आबादी जाट समुदाय की

हरियाणा में जाट समुदाय की लगभग 27 प्रतिशत आबादी है। इसीलिए प्रदेश में जाट नेताओं ने राजनीतिक परिदृश्य पर अपना दबदबा बनाए रखा। बंसी लाल, देवी लाल, ओम प्रकाश चौटाला और भूपिंदर सिंह हुड्डा जैसे जाट नेताओं ने प्रदेश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान पहले लोक दल, फिर इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) और कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व बड़े पैमाने पर जाट नेताओं द्वारा किया गया। दोनों दलों ने अन्य समुदायों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश की, जिसमें कांग्रेस ने एससी के साथ गठबंधन बनाने में सफलता प्राप्त की, विशेष रूप से जाटव समुदाय, जो एससी के बीच एक प्रमुख जाति है। एससी राज्य की आबादी का लगभग 21 प्रतिशत हिस्सा है।

कांग्रेस ने जाटों को दिए 28 टिकट

इसके विपरीत, कांग्रेस ने जाटों के प्रतिनिधित्व पर अधिक जोर दिया। कांग्रेस ने इस बार के हरियाणा विधानसभा चुनाव में जाटों को 28 टिकट दिए हैं, जो कुल सीटों का लगभग 31 प्रतिशत है। जो राज्य के आबादी के लगभग 27 प्रतिशत हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि जाट समुदाय को नजरअंदाज करना या कम सीटें देना बीजेपी के कहीं भारी न पड़ जाए। रोहतक, सोनीपत और हिसार जैसे जाट-बहुल संसदीय क्षेत्रों में भाजपा की सफलता के बावजूद, इस बार जाटों के टिकट कम करने का उनका फैसला किसान आंदोलनों के कारण होने वाले विरोध से प्रभावित हो सकता है। चूंकि जाट समुदाय में बहुत से ज़मीन के मालिक और किसान शामिल हैं, इसलिए भाजपा इस समुदाय को और अलग-थलग करने से बचना चाहती है। इसके बजाय, पार्टी अपने टिकट वितरण में ‘उच्च’ जाति और ओबीसी उम्मीदवारों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

बीजेपी ने उच्च जाति को साधने का किया प्रयास

ओबीसी और उच्च जाति समूहों पर भाजपा का जोर उनके टिकट आवंटन में स्पष्ट है। पार्टी ने ब्राह्मणों और पंजाबी खत्रियों को 11-11 टिकट दिए हैं, जो राज्य की आबादी का क्रमश: लगभग 8 और 9 प्रतिशत हिस्सा हैं। यह दृष्टिकोण ब्राह्मणों और पंजाबी खत्रियों दोनों के लिए कुल सीटों का 24 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने हरियाणा में ओबीसी समुदाय पर खासा ध्यान केंद्रित किया है, जो कि कुल आबादी का 40 प्रतिशत है।

बीजेपी से ओबीसी के बड़े नेता नाराज

हालांकि, टिकट वितरण से कई प्रमुख ओबीसी नेताओं को बाहर रखने से असंतोष पैदा हुआ है। 2019 के विधानसभा चुनाव में रादौर में कांग्रेस के बिशन लाल सैनी से हारने वाले भाजपा ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष करण देव कंबोज को इस बार टिकट नहीं दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए। यह कदम बड़े ओबीसी समुदायों को प्राथमिकता देने की भाजपा की मौजूदा रणनीति को रेखांकित करता है, जैसा कि कंबोज समुदाय को केवल एक टिकट आवंटित करने से स्पष्ट होता है, जबकि कांग्रेस ने कंबोज को दो टिकट दिए हैं।

पीएम मोदी ने किया 82 साल के वरिष्ठ नेता का अपमान: प्रियंका

  • प्रधानमंत्री द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के पत्र का जवाब खुद न देने पर भड़कीं पार्टी महासचिव
  • लोकतंत्र की परंपरा संवाद करने की

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा नेताओं और मंत्रियों के विवादास्पद बयानों के बाद शुरू हुई सियासी गहमागहमी आए दिन बढ़ती जा रही है। अब इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की भी एंट्री हो गई है। प्रियंका गांधी ने मल्लिकार्जुन खरगे की चिट्ठी जवाब नहीं दिए जाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते हुए उनकी आलोचना की है। प्रियंका ने पीएम पर वरिष्ठ नेता का अपमान करने का आरोप लगाया है।
दरअसल, पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख राहुल गांधी के खिलाफ की जा रहीं विवादित टिप्पणियों पर नाराजगी जताई थी। उसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खरगे को पत्र लिख पलटवार किया था। इसी को लेकर अब प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी को घेरा है।

आज की राजनीति में घुल चुका है जहर

कांग्रेस नेत्री ने आगे कहा कि लोकतंत्र की परंपरा और संस्कृति, सवाल पूछने और संवाद करने की होती है। धर्म में भी गरिमा और शिष्टाचार जैसे मूल्यों से ऊपर कोई नहीं होता। आज की राजनीति में बहुत जहर घुल चुका है। प्रधानमंत्री को अपने पद की गरिमा रखते हुए, सचमुच एक अलग मिसाल रखनी चाहिए थी। अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी राजनेता के पत्र का आदरपूर्वक जवाब दे देते तो जनता की नजर में उन्हीं की छवि और गरिमा बढ़ती। कांग्रेस नेता ने कहा कि यह अफसोस की बात है कि सरकार के ऊंचे से ऊंचे पदों पर आसीन हमारे नेताओं ने इन महान परंपराओं को नकार दिया है।

पीएम की आस्था बुजुर्गों के सम्मान में नहीं

प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कुछेक भाजपा नेताओं और मंत्रियों की अनर्गल तथा हिंसक बयानबाजी के मद््देनजर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के जीवन की सुरक्षा के लिए चिंतित होकर कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा था। प्रियंका ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री की आस्था अगर लोकतांत्रिक मूल्यों, बराबरी के संवाद और बुज़ुर्गों के सम्मान में होती तो इस पत्र का जवाब वह खुद देते। मगर इसकी बजाय उन्होंने जेपी नड्डा की ओर से एक हीनतर और आक्रामक किस्म का जवाब लिखवा कर भिजवा दिया। 82 साल के एक वरिष्ठ जननेता का निरादर करने की आखिर क्या जरूरत थी?

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