केरल निकाय चुनाव में बीजेपी की नहीं गली दाल

  • 70 फीसदी से अधिक हुआ था मतदान
  • थरूर का सुरूर
  • थरूर के गढ़ तिरुवनंतपुरम में एनडीए को बढ़त

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
तिरुवनंतपुरम। केरल की राजनीति एक बार फिर स्थानीय निकायों की गिनती के साथ राष्ट्रीय विमर्श में लौट आई है। पंचायत से लेकर नगर निगम तक-हर मत हर वार्ड और हर राउंड के साथ यह साफ होता जा रहा है कि केरल के निकाय चुनाव सिर्फ स्थानीय सरकारों के गठन का सवाल नहीं हैं बल्कि 2026 की विधानसभा राजनीति की पहली ठोस झलक भी हैं।
मतगणना के शुरुआती घंटों में जो तस्वीर उभरी है वह किसी एक दल के पक्ष में बहती लहर नहीं बल्कि तीन मोर्चों के बीच कड़े संतुलित और तनावपूर्ण मुकाबले की कहानी बता रही है।

दो चरणों में हुए थे चुनाव

केरल निकाय चुनाव को दो चरणों में सम्पादित कराया गया था । केरल निकाय चुनाव में 2 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने मतदान किया है। दोनों चरणों में कुल 73.69 प्रतिशत वोटिंग हुई। इस साल हुए स्थानीय निकाय चुनाव में 1995 के बाद से सबसे अधिक मतदान हुआ है। केरल में 1995 में पहली बार निकाय चुनाव हुए थे। दोनों चरणों में राज्यभर के वार्ड में चुनाव लड़ रहे 75,632 उम्मीदवारों के चुनावी भाग्य का फैसला करने के लिए 2,86,62,712 मतदाता पात्र हैं। इन नतीजों से केरल में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राज्य की राजनीतिक पार्टियों और गठबंधनों के प्रचार अभियान की भविष्य की दिशा तय होगी। निर्वाचित पंचायत सदस्यों और नगर पार्षदों का शपथ ग्रहण समारोह 21 दिसंबर को सुबह 10 बजे होगा। नगर निगम पार्षदों का शपथ ग्रहण समारोह 21 दिसंबर को सुबह 11 बजे होगा।

कन्नूर में कांग्रेस आगे

कन्नूर नगर निकाय में कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन यूडीएफ 12 डिवीजनों में आगे चल रहा है। वहीं सीपीआईएम के नेतृत्व वाला गठबंधन एलडीएफ 6 डिवीजनों में और बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन एनडीए 2 डिवीजनों में आगे चल रहे हैं। यहां मुख्य मुकाबला एलडीएफ और यूडीएफ के बीच देखने को मिल रहा है।

शुरूआती रूझानों में कांग्रेस को बढ़त

शुरुआती रुझानों में कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रं ट (यूडीएफ) कोच्चि, त्रिशूर और कन्नूर जैसे अहम शहरी निगमों में बढ़त बनाता दिख रहा है। यह वही शहरी इलाके हैं जहां मध्यम वर्ग, व्यापारिक तबका और अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यूडीएफ की इस बढ़त को पार्टी के लिए शहरी पुनरुत्थान के संकेत के रूप में देखा जा रहा है। खासतौर पर ऐसे समय में जब कांग्रेस लगातार यह सवाल झेल रही है कि क्या वह केरल में अपनी पुरानी धार खो चुकी है। दूसरी ओर सीपीआई(एम) के नेतृत्व वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) भी पूरी तरह बैकफुट पर नहीं है। कोल्लम और कोझिकोड जैसे पारंपरिक गढ़ों में एलडीएफ की बढ़त यह बताती है कि लेफ्ट की संगठनात्मक जड़ें अब भी मजबूत हैं। सत्ता में रहते हुए एंटी-इंकम्बेंसी के आरोपों के बावजूद लेफ्ट ने यह संदेश दिया है कि उसका कैडर आधारित ढांचा आज भी चुनावी मैदान में असरदार है।

घर का भेदी लंका ढाए!

कांग्रेस वाले शशि थरूर के क्षेत्र तिरूवनंतपुरम से बीजेपी के लिए शुभ संकेत आना शुरू भी हो गये है। तिरुवनंतपुरम नगर निगम में एनडीए ने 21 वार्डों में बढ़त हासिल की है। यहां एलडीएफ 16 वार्डों में और यूडीएफ 11 वार्डों में आगे चल रही है। उधर कोच्चि नगर निगम में एलडीएफ और यूडीएफ की कांटे की टक्कर चल रही है। शुरुआती रुझानों के अनुसार भले ही एलडीएफ की जीत की उम्मीद थी। लेकिन यूडीएफ ने अब यहां वापसी की है। फिलहाल दोनों मोर्चे 32-32 सीटों पर बराबरी पर हैं। जबकि बीजेपी पांच डिवीजनों में आगे चल रही है।

तिरुवनंतपुरम में वोट दर वोट बदल रहा है मूड

लेकिन इस पूरे चुनाव का सबसे दिलचस्प और राजनीतिक रूप से सबसे अहम मैदान तिरुवनंतपुरम नगर निगम बनकर उभरा है। यहां बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए और एलडीएफ आमने सामने हैं। हर राउंड में कभी एनडीए आगे होता है तो कभी एलडीएफ और इसी खींचतान ने तिरुवनंतपुरम को राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में ला खड़ा किया है। बीजेपी के लिए तिरुवनंतपुरम सिर्फ एक नगर निगम नहीं बल्कि केरल की राजनीति में दरवाजा खोलने का प्रतीक है। पार्टी लंबे समय से यह दावा करती रही है कि केरल में उसका वोट शेयर बढ़ रहा है लेकिन सत्ता में तब्दील नहीं हो पा रहा। लेफ्ट के लिए भी यह मुकाबला कम अहम नहीं। अगर तिरुवनंतपुरम में पकड़ ढीली पड़ती है, तो यह शहरी मतदाताओं के बीच बदलते रुझान का संकेत माना जाएगा जो 2026 की विधानसभा चुनावी रणनीति को प्रभावित कर सकता है।

Related Articles

Back to top button