लोकसभा चुनाव में बसपा का नहीं खुला खाता, अखिलेश के व्यूह रचना भेदने में नाकाम रहे बसपा के रणनीतिकार
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लखनऊ। लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को करारी शिकस्त मिली है। पार्टी का कोई भी प्रत्याशी जीत पाना तो दूर, दूसरे स्थान पर आने लायक वोट तक नहीं जुटा सका। बसपा के वोट बैंक में भी विपक्षी दलों ने जमकर सेंध लगाई, लिहाजा बसपा का वोट शेयर इकाई में आ गया।
पार्टी के युवा चेहरे आकाश आनंद की लोकसभा चुनाव में लांचिंग बेअसर साबित हुई तो बसपा सुप्रीमो मायावती की लोकप्रियता का ग्राफ भी हालिया चुनाव में नीचे खिसकता नजर आया। बसपा का अकेले चुनाव लडऩे का फैसला सबसे बड़ी चूक साबित हुआ। इसका दलित वोट बैंक पर विपरीत असर हुआ और वर्ष 2014 के चुनाव के मुकाबले पार्टी का करीब दस फीसदी वोट दूसरे दलों में खिसक गया।
बता दें कि बसपा को इससे पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई थी। हालांकि उसके 34 प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे। तत्पश्चात बसपा ने वर्ष 2019 का चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ा और 10 सीटों पर जीत हासिल की।
हालिया चुनाव में बसपा ने किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला लिया और अंतिम वक्त तक अपने फैसले पर कायम रही। यह पार्टी की हार का सबब बन गया। बता दें कि वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 24.67 फीसदी वोट मिले थे और उसने 19 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को करीब 27.42 फीसदी वोट मिले थे और उसके 20 सांसद बने थे, जो बसपा का लोकसभा चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन था। हालांकि वर्ष 2014 के चुनाव में बसपा को 19.77 फीसदी वोट मिले थे और उसका कोई प्रत्याशी संसद तक नहीं पहुंच पाया था।
पार्टी के नेशनल कोआर्डिनेटर के साथ मायावती के उत्तराधिकारी बनने के बावजूद आकाश आनंद का जादू चुनाव में नहीं चला। उन्होंने अपनी पहली जनसभा नगीना में की, जहां आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद रावण को सीधे निशाने पर लेना बड़ी चूक साबित हुआ। इससे दलित वोट बैंक चंद्रशेखर के पाले में चला गया।
बता दें कि बसपा की ओर से आकाश ने 6 अप्रैल को नगीना से चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत की थी। तत्पश्चात उन्होंने मथुरा, संतकबीनगर, गोरखपुर, कौशांबी, सीतापुर और उन्नाव में पार्टी प्रत्याशियों के लिए वोट मांगे थे। इनमें से किसी भी सीट पर बसपा प्रत्याशी दूसरे स्थान पर आने लायक वोट भी हासिल नहीं कर सका।
मायावती ने भी लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में 26 जिलों में प्रचार किया, जहां पर आसपास की सीटों के प्रत्याशियों को भी बुलाकर उन्हें वोट देने की अपील की गयी थी। इन सभी सीटों पर बसपा का प्रदर्शन बेहद खराब होने से मायावती की सियासत पर खतरा मंडराने लगा है। जानकारों की मानें तो मायावती की लोकप्रियता का ग्राफ गिरने का फायदा आजाद समाज पार्टी को मिल सकता है और दलित वोट बैंक अब तेजी से उसके पाले में जा सकता है।
पार्टी का अपने वर्तमान सांसदों पर भरोसा नहीं करके नये चेहरों को मौका देना भी घाटे का सौदा बन गया। टिकट नहीं मिलने की वजह से उसके सांसद अन्य दलों में चले गए। केवल नगीना के सांसद गिरीश चंद्र को पार्टी ने बुलंदशहर से लड़ाया, जबकि जौनपुर के सांसद श्याम सिंह यादव को अंतिम वक्त पर टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा था।
लोकसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक बसपा की सीटों पर सबसे ज्यादा सपा ने सेंध लगायी है। सपा ने बसपा की श्रावस्ती, अंबेडकरनगर, जौनपुर, लालगंज, गाजीपुर और घोसी सीट पर कब्जा जमाया है। वहीं कांग्रेस ने सहारनपुर और अमरोहा सीट पर जीत हासिल की है। इसके अलावा बिजनौर सीट पर रालोद और नगीना में आजाद समाज पार्टी ने जीत का परचम लहराया है। हैरानी की बात यह है कि भाजपा को बसपा की किसी भी सीट पर जीत हासिल नहीं हुई है।
बसपा ने यूपी के अलावा कई अन्य राज्यों में भी चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे थे, हालांकि उसके केवल 2.06 फीसद वोट ही मिले हैं।