चैतर वसावा ने सरकार को दे सीधी चेतावनी, स्थानीय लोगों का हक छीना तो होगा बड़ा आंदोसन

स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की मांग को लेकर आज उमरगाम तालुका के दो जीआईडीसी में रैली आयोजित की गई...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः दोस्तों गुजरात के वलसाड जिले के उमरगाम तालुका के दो बड़े औद्योगिक क्षेत्र सरिगाम जीआईडीसी… और दौहेला जीआईडीसी में 1 दिसंबर को हजारों की संख्या में स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोग सड़क पर उतर आए.. ये लोग पिछले कई सालों से चले आ रहे एक ही सवाल को लेकर आंदोलन कर रहे हैं.. जिनकी जमीन लेकर जीआईडीसी बनाया गया.. और उनके बच्चों को स्थायी नौकरी क्यों नहीं मिल रही है.. जिसको लेकर स्थानीय आदिवासी समुदाय में काफी नाराजगी है.. वहीं अब आदिवासी समुदाय को आप का साथ मिल गया है.. और आप के फायरब्रांड नेता चैतर वसावा आदिवासियों के मुद्दे जोरःशोर से उठा रहे हैं.. क्योंकि चैतर वसावा भी आदिवासी समुदाय से आते हैं.. और खुलकर सरकार के खिलाफ बोलते हैं और आदिवासी मुद्दों को उठाते हैं.. जिससे आप की साख गुजरात में तेजी से मजूबत हो रही है.. जो बीजेपी और मोदी के लिए किसी सुनामी से कम नहीं है.. चैतर वसावा की रैली मैं लाखों की संख्या में लोग आते हैं… पार्टी के द्वारा कम संख्या में आने की अपील पर भी लोग नहीं मानते हैं.. और भारी संख्या में आते हैं.. जिसको देखकर बीजेपी सरकार की नींव हिल रही है..

आपको बता दें कि आदिवासी समाज अब अपने हक की बात करने लगा है.. पहले आदिवासियों को प्रलोभन देकर किसी भी तरह से जमीनों को ले लिया जाता था… और बाद कोई भी वादा पूरा नहीं किया जाता था,.. और आदिवासियों की आवाज को दबा दिया जाता था.. लेकिन अब आदिवासी भी चैतर वसावा का साथ मिलने के बाद जागरूक हो गए हैं.. और सरकार से अपने हक की मांग कर रहे हैं.. इसी कड़ी में एक दिसंबर को सरिगाम जीआईडीसी के मुख्य गेट पर लगभग 3000 से 3500 लोग एकत्र हुए.. इनमें ज्यादातर वे परिवार थे.. जिन्होंने 1980-90 के दशक में अपनी कृषि जमीन जीआईडीसी को दी थी.. इसके बाद लोग दौहेला जीआईडीसी भी पहुंचे.. और दोनों जगहों पर रैली निकाली गई.. और कंपनियों के गेट के सामने जोरदार नारेबाजी हुई..

बता दें कि आदिवासी लोग कंपनियों के सामने हमारी जमीन– हमारा हक, 85% स्थानीय को नौकरी दो.. कंपनियां सर्कुलर मानो, वरना बंद करो.. आदिवासी का शोषण बंद करो.. जैसे नारे लगा रहे थे.. जानकारी के अनुसार गुजरात सरकार का पुराना सर्कुलर (जीआर दिनांक 24-07-2001 और बाद में संशोधित 2016 का जीआर) स्पष्ट कहता है.. कि जिस गांव की जमीन जीआईडीसी या किसी कंपनी को दी गई हो.. वहां की फैक्ट्रियों में 85% नौकरियां उस गांव.. और आसपास के प्रभावित लोगों को दी जाएंगी.. इनमें प्राथमिकता प्रोजेक्ट प्रभावित परिवारों को होगी.. 100% अकुशल मजदूर और 50% से ज्यादा कुशल/अर्ध-कुशल पद स्थानीय लोगों को देने हैं…

आपको बता दें कि सरिगाम जीआईडीसी के लिए कुल लगभग 2200 एकड़ से ज्यादा जमीन 40-45 गांवों से ली गई थी.. स्थानीय लोगों का दावा है कि जिन 85% परिवारों की जमीन गई.. उनमें से भी 80-85% परिवारों को एक भी स्थायी नौकरी नहीं मिली.. सिर्फ 15% लोगों को नौकरी मिली.. वह भी ठेका प्रथा, बिना पीएफ, बिना ईएसआई, बिना स्थायीकरण के तहत मिली.. वहीं रैली में मौजूद लोगों ने कहा कि मेरे पास 12 एकड़ जमीन थी.. 1992 में जीआईडीसी को दी.. जिसके बदले में वादा हुआ था कि मेरे दो बेटों को स्थायी नौकरी मिलेगी.. आज तक एक को भी नौकरी नहीं मिली.. बड़ा बेटा अब 48 साल का है.. अभी भी दिहाड़ी मजदूरी करता है..

वहीं जो 15% स्थानीय लोग नौकरी कर भी रहे हैं.. उनकी हालत भी खराब है.. रैली में मौजूद कई मजदूरों ने बताया.. कि रोज 12-12 घंटे ड्यूटी.. ओवरटाइम का पैसा नहीं मिलता है.. पीएफ कटता तो है, लेकिन जमा नहीं होता.. कोई लीव नहीं, बीमार होने पर भी वेतन कट जाता है.. ठेका प्रथा के कारण कभी भी नौकरी से निकाल भी सकते हैं.. बता दें एक मजदूर ने अपना पे-स्लिप दिखाया.. उसमें 26 दिन काम करने पर कुल वेतन ₹8,700 था.. और ओवरटाइम अलग से 120 घंटे दिखाया गया.. लेकिन उसका पैसा नहीं दिया गया..

वहीं इन दिनों सरिगाम और आसपास के कई गांवों में अवैध निर्माण हटाने के नाम पर नोटिस बांटे जा रहे हैं.. स्थानीय लोगों का कहना है कि जो मूल आदिवासी परिवार तीन-चार पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं.. उन्हें नोटिस दिए जा रहे हैं.. जबकि बाहर से आए कुछ लोग सालों से कब्जा करके बैठे हैं.. उन्हें कुछ नहीं कहा जा रहा है..  हम हाउस टैक्स, लाइट बिल, पानी का टैक्स सब भरते हैं.. फिर भी हमें अवैध बता रहे हैं.. अगर हमारे मकान पर बुलडोजर चला तो हम सब चादर-चद्दर लेकर नेताओं के घर जाएंगे..

 

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