चैतर वसावा का BJP सरकार पर हमला | आदिवासी शिक्षा रिजर्वेशन पर वार का आरोप
आम आदमी पार्टी के विधायक चैतर वसावा ने BJP सरकार पर तीखा हमला बोला है... उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात की भाजपा सरकार ने हाल ही में क्लास-3 की सरकारी नौकरियों की भर्ती परीक्षाओं में कुछ बदलाव किए हैं.. इन बदलावों में एक महत्वपूर्ण नियम है कि.. उम्मीदवारों को 100 अंकों के पेपर में कम से कम 40% अंक यानी 40 अंक लाने होंगे.. यह नियम सभी कैटेगरी के उम्मीदवारों पर लागू है.. लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर आदिवासी.. और अन्य आरक्षित वर्गों पर पड़ रहा है.. कई लोग इस नियम को असंवैधानिक बता रहे हैं.. क्योंकि उनका मानना है कि यह आरक्षण की व्यवस्था पर हमला करता है.. आदिवासी समुदाय के नेता और कार्यकर्ता कहते हैं कि इस वजह से कई सीटें खाली रह जाएंगी.. और आरक्षण का फायदा नहीं मिल पाएगा.. वहीं इस मुद्दे पर गुजरात में काफी बहस छिड़ी हुई है..
गुजरात सरकार ने दिसंबर 2025 में क्लास-3 भर्ती परीक्षाओं के पैटर्न में बदलाव की घोषणा की.. पहले परीक्षा दो भागों पार्ट-ए और पार्ट-बी में होती थी.. अब पार्ट-ए को 90 अंकों का कर दिया गया है.. जबकि पार्ट-बी को कम कर दिया गया है.. लेकिन सबसे बड़ा बदलाव यह है कि हर उम्मीदवार को कुल 100 अंकों में से कम से कम 40 अंक लाने होंगे.. चाहे वह किसी भी कैटेगरी से हो.. गुजरात सरकार की आधिकारिक वेबसाइट और समाचारों के अनुसार, यह बदलाव भर्ती प्रक्रिया को.. और पारदर्शी और योग्य बनाने के लिए किया गया है.. सरकार का कहना है कि इससे नौकरियों में बेहतर उम्मीदवार आएंगे.. और प्रशासन मजबूत होगा..
वहीं यह नियम गुजरात पब्लिक सर्विस कमीशन.. और अन्य भर्ती बोर्डों पर लागू होगा.. पहले, कुछ भर्तियों में आरक्षित वर्गों के लिए न्यूनतम अंक कम होते थे.. लेकिन अब सभी के लिए 40% का एक समान मानक लागू किया गया है.. गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने इस बदलाव को मंजूरी दी है.. और इसे अगली भर्ती परीक्षाओं से लागू किया जाएगा.. सरकार के अनुसार, यह पुराने नियमों को अपडेट करने का हिस्सा है.. जो 2014 से चले आ रहे थे.. 2014 के नियमों में भी न्यूनतम योग्यता अंक का प्रावधान था.. लेकिन अब इसे सख्ती से लागू किया जा रहा है…
इस नियम पर सबसे ज्यादा विवाद आदिवासी समुदाय से जुड़ा है.. गुजरात में आदिवासियों को सरकारी नौकरियों में 7.5% आरक्षण मिलता है.. जो संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत दिया जाता है.. लेकिन नए नियम के तहत, अगर कोई आदिवासी उम्मीदवार 40 अंक नहीं ला पाता.. तो वह आरक्षण का फायदा नहीं उठा पाएगा.. भले ही उस कैटेगरी में सीटें खाली हों.. आलोचकों का कहना है कि यह आरक्षण की मूल भावना के खिलाफ है.. आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को मौका देना है.. न कि उन्हें और कड़ी शर्तों में बांधना..
गुजरात विधानसभा के AAP विधायक चैतर वसावा ने इस मुद्दे पर जोरदार विरोध जताया है.. उन्होंने X पर एक वीडियो पोस्ट किया.. जिसमें कहा कि यह नियम आदिवासियों के शैक्षणिक आरक्षण पर सीधा हमला है.. इससे कई सीटें खाली रह जाएंगी.. वसावा ने मांग की है कि 40% और 60% (कुछ भर्तियों में उच्च पदों के लिए) न्यूनतम अंक का नियम तुरंत रद्द किया जाए.. उनका तर्क है कि आदिवासी इलाकों में शिक्षा की स्थिति कमजोर है.. और ऐसे में 40% अंक लाना मुश्किल हो जाता है.. इससे आरक्षण बेकार हो जाएगा..
वहीं कई कानूनी विशेषज्ञ भी इस नियम को संविधान के खिलाफ बता रहे हैं.. संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है.. लेकिन आरक्षण को विशेष प्रावधान के रूप में मान्यता मिली है.. अगर न्यूनतम अंक सभी के लिए एक समान रखे जाते हैं.. तो आरक्षित वर्गों का फायदा कम हो जाता है.. सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में कहा गया है कि आरक्षण में न्यूनतम योग्यता रखी जा सकती है.. लेकिन वह इतनी ऊंची नहीं होनी चाहिए कि आरक्षण बेकार हो जाए.. 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और गुजरात में जिला न्यायाधीशों की भर्ती में मौखिक परीक्षा के लिए न्यूनतम अंक को वैध माना था.. लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे नियम आरक्षण की भावना को कमजोर नहीं करने चाहिए..
गुजरात में आदिवासी आबादी करीब 15% है.. और वे मुख्य रूप से दक्षिणी और पूर्वी जिलों जैसे दाहोद, छोटा उदेपुर और डांग में रहते हैं.. इन इलाकों में शिक्षा की सुविधाएं कम हैं.. स्कूल दूर-दराज हैं, शिक्षक कम हैं, और गरीबी के कारण बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं.. ऐसे में, सरकारी नौकरियों में आरक्षण उनके लिए बड़ा सहारा है.. लेकिन 40% न्यूनतम अंक के नियम से कई उम्मीदवार क्वालिफाई नहीं कर पाएंगे..
पिछले कुछ वर्षों में गुजरात में क्लास-3 की भर्ती में आदिवासी सीटें खाली रहने के मामले सामने आए हैं.. 2023 में कुछ भर्तियों में ST कैटेगरी की 20-30% सीटें खाली रह गईं.. क्योंकि उम्मीदवार न्यूनतम अंक नहीं ला पाए.. अब नए नियम से यह समस्या और बढ़ सकती है.. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे आदिवासी युवाओं में निराशा फैलेगी.. और वे सरकारी नौकरियों से दूर हो जाएंगे.. इसके बजाय वे मजदूरी या अन्य कम आय वाले कामों में लग जाएंगे..
राष्ट्रीय स्तर पर भी आरक्षण का असर देखा जाता है.. भारत में SC/ST को 15% और 7.5% आरक्षण मिलता है.. लेकिन कई राज्यों में कुल आरक्षण 50% से ज्यादा हो गया है.. गुजरात में OBC को 27%, EWS को 10% और अन्य को मिलाकर कुल आरक्षण 59% है.. लेकिन न्यूनतम अंक का सख्त नियम इन आरक्षणों को कमजोर कर देता है.. आदिवासी नेता कहते हैं कि यह आरक्षण पर हमला है.. क्योंकि बिना योग्य उम्मीदवारों के सीटें सामान्य कैटेगरी में ट्रांसफर हो सकती हैं.. जो संविधान के खिलाफ है..
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार न्यूनतम योग्यता अंकों पर फैसले दिए हैं.. 2024 में कोर्ट ने कहा कि मौखिक परीक्षा में न्यूनतम अंक रखना वैध है.. क्योंकि इससे योग्य उम्मीदवार चुने जाते हैं.. लेकिन कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि ऐसे नियम आरक्षण को बेकार नहीं बनाने चाहिए.. एक अन्य फैसले में कोर्ट ने कहा कि कट-ऑफ अंक बदलना.. अगर परिणाम आने के बाद किया जाए.. तो असंवैधानिक है क्योंकि इससे समानता का उल्लंघन होता है..
गुजरात हाई कोर्ट में भी ऐसे मामले आए हैं.. 2025 में एक याचिका में कोर्ट ने क्लास-3 भर्ती में 40% अंक को वैध माना.. लेकिन कहा कि आरक्षित कैटेगरी के लिए छूट दी जा सकती है.. हालांकि, आदिवासी संगठनों ने इस नियम को चुनौती देने की तैयारी कर ली है.. वे कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 335 के तहत SC/ST के लिए विशेष प्रावधान हैं.. और न्यूनतम अंक उन्हें नुकसान पहुंचा रहे हैं..



