उमस भरी गर्मी से बेहाल देशवासी, मौसम विभाग ने जारी की चेतावनी
WMO की रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के अनुकूल फैसला लेने के लिए लागातार जलवायु निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया गया है.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश के कई हिस्सों में उमस भरी गर्मी से आम जनता परेशान है। आमतौर पर जंहा सुबह का समय राहत देने वाला माना जाता है, वहीं अब मॉर्निंग वॉक के दौरान भी लोग तेज गर्मी और चिपचिपी उमस का सामना कर रहे हैं। विशेष रूप से दिल्ली और उत्तर भारत के राज्यों में तापमान तेजी से बढ़ रहा है। तेज धूप और भीषण गर्मी की वजह से आम जनजीवन प्रभावित हो रहा है। लोग घर से बाहर निकलने में परहेज कर रहे हैं और गर्मी से बचाव के उपाय अपना रहे हैं।
इसी बीच मौसम विज्ञान विभाग और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की एक नई रिपोर्ट ने चिंता और बढ़ा दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 80 प्रतिशत संभावना है कि 2025 से 2029 के बीच कोई एक वर्ष, 2024 से भी अधिक गर्म हो सकता है। इसका मतलब है कि आने वाले वर्षों में तापमान में और वृद्धि देखने को मिल सकती है। मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते आने वाले वर्षों में गर्मी के रिकॉर्ड टूट सकते हैं। ऐसे में लोगों को सतर्क रहने और गर्मी से बचाव के उपाय अपनाने की सलाह दी जा रही है। यह पिछले साल की 2024-2028 के लिए डब्लूएमओ रिपोर्ट में बताई गई 47 प्रतिशत संभावना और 2023-2027 के लिए 2023 रिपोर्ट में बताई गई 32 प्रतिशत संभावना से ज्यादा है. यह सीमा अहम है क्योंकि यह पेरिस समझौते के लक्ष्यों में से एक है.
मौसम परिवर्तनों की निगरानी करनी है बेहद जरूरी
WMO की रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के अनुकूल फैसला लेने के लिए लागातार जलवायु निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि 2025-2029 के बीच हर साल वार्षिक औसत वैश्विक औसत सतही तापमान 1850-1900 के औसत से 1.2 डिग्री सेल्सियस और 1.9 डिग्री सेल्सियस ज्यादा होने की संभावना है. इसका मतलब है कि अगले पांच सालों के दौरान वार्षिक वैश्विक तापमान रिकॉर्ड स्तर पर या उसके करीब बने रहने की संभावना है. पिछले 60 सालों में देखे गए वार्षिक औसत तापमान से काफी ऊपर रहेगा.
हालांकि, WMO ने यहा साफ किया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य का अस्थायी उल्लंघन, भले ही कुछ सालों के लिए हो, पेरिस समझौते की विफलता नहीं माना जाएगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि पेरिस समझौते में 1.5 डिग्री सेल्सियस (और 2 डिग्री सेल्सियस) का स्तर वैश्विक तापमान से अनुमान लगाई गई वार्मिंग के दीर्घकालिक स्तर के बारे में बताता है. आमतौर पर 20 सालों में इस फैक्ट का हवाला देते हुए कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) 20-वर्षीय औसत के संदर्भ में भविष्य के वैश्विक वार्मिंग के लेवल के बारे में बताता है. लेकिन, रिपोर्ट के मुताबिक, 2015-2034 के लिए 20 साल के औसत वार्मिंग का केंद्रीय अनुमान 1.44 डिग्री सेल्सियस (1.22-1.54 डिग्री सेल्सियस की 90% विश्वास सीमा के साथ) पर 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को खतरनाक रूप से पार करने के करीब है.



