अदालतें समलैंगिक विवाह जैसे मुद्दों को निपटाने का मंच नहीं- किरेन रिजिजू

नई दिल्ली। सेम सेक्स मैरेज के मामले पर देश की सुप्रीम अदालत सुनवाई कर रही है। हालांकि केंद्र सरकार का कहना है कि इस मसले को संसद पर छोड़ देना चाहिए। इस बीच कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सेम सेक्स मैरिज को लेकर कहा कि अदालतें ऐसे मुद्दों को निपटाने का मंच नहीं हैं। अगर पांच बुद्धिमान लोग कुछ ऐसा तय करते हैं जो उनके अनुसार सही है, तो मैं उनके खिलाफ किसी भी तरह की प्रतिकूल टिप्पणी नहीं कर सकता, लेकिन अगर लोग इसे नहीं चाहते हैं तो उनके ऊपर चीजों को नहीं थोपा जा सकता।
एक न्यूज चैनल के कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री का कहना था कि विवाह जैसी चीज एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामला है। इस लोगों की ओर से ही तय किया जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के पास एक निश्चित डायरेक्शन में धारा 142 के तहत कानून बनाने की शक्ति है। साथ ही साथ वह जहां पर कमियां हैं उन्हें पूरा कर सकता है, लेकिन जब हर नागरिक को प्रभावित करने की बात आती है तो सुप्रीम कोर्ट सही मंच नहीं है। यह पहली बार नहीं है जब केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ऐसी टिप्पणी को हो। वह पहले भी कह चुके हैं कि सेम सेक्स मैरिज का मामला सुप्रीम कोर्ट का नहीं है।
सेम सेक्स मैरिज के कानूनी मंजूरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को पांचवीं बार सुनवाई हुई। कोर्ट इस संबंध में कम से कम 15 याचिकाओं के एक ग्रुप पर सुनवाई कर रही है। इस दौरान केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ को बताया कि सुप्रीम कोर्ट एक बेहद जटिल विषय पर सुनवाई कर रही है। इसका बहुत गहरा सामाजिक प्रभाव है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि याचिकाओं में उठाए गए लगभग सभी क्षेत्रों को संसद की शक्तियां कवर करती हैं। 2018 सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को नहीं माना था। इसे फैसले के बाद इस समुदाय को नई उम्मीद जाग गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी का कहना है कि एक शून्य को भरने के लिए अदालत को संसद की ओर से कानून बनाने की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है।

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