बहस नहीं, बेनकाब होने का दिन

- एसआईआर पर राजनीतिक महातकरार
- एसआईआर किस के हित में किसके खिलाफ जवाब दे सरकार
- मनीष तिवारी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता और एसआईआर पर उठाए सवाल
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। आखिरकार सरकार को राहुल गांधी के आगे झुकना पड़ा। आज संसद का माहौल देखते ही समझ में आ गया कि लोकतंत्र सिर्फ किताबों में पवित्र है और असल में एक कुश्ती का दंगल बन चुका है। आज का दिन किसी साधारण बहस का नहीं बल्कि एसआईआर के नाम पर सीधा राजनीतिक महाप्रलय का रहा। संसद के दोनों सदनों में आज इस मुद्दे पर जोरदार बहस शुरू हुई।
विपक्ष एसआईआर प्रक्रिया पर एक सुनियोजित चर्चा की लगातार मांग कर रहा था। विपक्ष का दावा है कि एसआईआर की वजह से हाशिए पर पड़े समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित किया गया है। इसी मुद्दे को लेकर 1 दिसंबर को शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद से ही सदन में हंगामे और कार्यवाही में रुकावटें आ रही थीं। राज्यसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एसआईआर पर चर्चा शुरू की। बातचीत के लिए कुल दस घंटे का समय दिया गया है। राहुल गांधी विपक्ष के दखल को लीड करेंगे और बुधवार को केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल चर्चा का जवाब देंगे। यह बहस मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत विपक्ष के बड़े नेताओं के बार-बार विरोध के बाद हुई।
चुनाव आयोग के पास एसआईआर का नहीं है अधिकार : मनीष तिवारी
कांग्रेस सांसद ने सदन में बोलते हुए कहा है कि देश के कई राज्यों में एसआईआर हो रहा है। आयोग के पास कानूनी तौर पर एसआईआर कराने का कोई अधिकार नहीं है। चुनाव आयोग का कहना है कि सेक्शन 21 से उन्हें एसआईआर कराने का अधिकार मिलता है। हालांकि मनीष तिवारी ने पूरा सेक्शन पढ़ा और कहा कि ना तो संविधान में और ना ही कानून में एसआईआर का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को एक हथियार के रूप में एसआईआर दिया गया। अगर किसी वोटर लिस्ट में कोई गड़बड़ी है तो उसे ठीक करने के लिए लिखित कारण बताकर ही एसआईआर किया जा सकता है। उन्होंने मांग की कि सरकार को यह बात सदन के पटल पर रखनी चाहिए कि कौन से निर्वाचन क्षेत्र में कौन सी खामियां थीं और क्यों एसआईआर की जरूरत पड़ी।
मनीष तिवारी ने संभाला मोर्चा
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि पूर्व पीएम राजीव गांधी की सरकार ने देश में सबसे बड़ा चुनाव सुधार का काम किया था। उन्होंने 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को वोटिंग का अधिकार दिया था। लेकिन आज चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि चुनाव सुधार की जो सबसे पहली जरूरत है। मनीष तिवारी ने मांग की कि इसमें दो और सदस्यों को जोड़ा जाना चाहिए। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की कमेटी में सरकार और विपक्ष के दो-दो लोग रहने चाहिए। इसके अलावा एक सीजेआई को रखना चाहिए। एसआईआर का जिक्र करते हुए।
बीएलओ की सुरक्षा सुप्रीम कोर्ट का आदेश
पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया में शामिल बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नया नोटिस जारी किया है। यह कदम राज्य में बीएलओ की बढ़ती सुरक्षा चिंताओं और उनके कार्यभार के बढ़ते दबाव के मद्देनजर उठाया गया है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि तमाम राजनेता इस मुद्दे को लेकर कोर्ट पहुंच रहे हैं। ऐसा लगता है कि यह मंच उन्हें हाईलाइट करने का माध्यम बन गया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्य बागची ने कहा कि बीएलओ पर बढ़ती धमकियों और हिंसा के कई मामलों में सिर्फ एक एफआईआर दर्ज है। याचिका में उठाई गई बाकी हिंसा की घटनाएं पुरानी हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आम तौर पर चुनाव से पहले पुलिस प्रशासन सीधे चुनाव आयोग के नियंत्रण में नहीं दिया जाता। चुनाव आयोग के वकील ने भी बीएलओ की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग का समर्थन किया। गौरतलब है कि इससे पहले 4 दिसंबर को बीएलओ की मौत पर तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टी टीवीके द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बीएलओ की मौतों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा था कि बीएलओ पर बढ़ते काम के बोझ को कम करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती तत्काल की जानी चाहिए। देशभर में अब तक लगभग 35-40 बीएलओ अत्यधिक कार्यभार और तनाव के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। याचिकाकर्ताओं ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की भी मांग की थी।




