नेपाल में लोकतंत्र फेल!
राजशाही की मांग को लेकर जल उठा नेपाल

- पूरे नेपाल में हिंसक झड़पे, प्रमुख इलाकों में कफ्र्यू
बिजनेस मॉल, पालिटिक्ल पार्टी के दफ्तर और मीडिया हाउस की इमारतों को आग के हवाले किया जा रहा है
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
काठमाण्डू। भारत का पड़ोसी मुल्क नेपाल अशांत है। वहां पुलिस और प्रर्दशनकारियों के बीच ठीक वैसे ही हिंसक झड़पों का दौर शुरू हो गया है जैसा कभी राजशाही से मुक्ति के लिए होता था। इस बार की हिंसा दोबारा से राजशाही को स्थापित करने के लिए कि जा रही है। नेपाल के राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की तस्वीरें लिए हजारों राजतंत्रवादी तिनकुने क्षेत्र में इकट्ठा हुए। उन्होंने ‘राजा आओ, देश बचाओ’, ‘भ्रष्ट सरकार मुर्दाबाद’ और ‘हमें राजतंत्र वापस चाहिए’ जैसे नारे लगाए और नेपाल में राजतंत्र की बहाली की मांग कर रहे हैं। यह आग धीरे—धीरे पूरे नेपाल में तेजी से फैल रही है।
2008 में खत्म हो गयी थी राजशाही
काठमांडू में सैकड़ों पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया है, और प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के लिए कई युवाओं को हिरासत में लिया गया है। नेपाल ने 2008 में संसदीय घोषणा के जरिए 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म कर दिया था। इससे देश राज्य एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय, लोकतांत्रिक गणराज्य में बदल गया। 19 फरवरी को लोकतंत्र दिवस पर प्रसारित एक वीडियो संदेश में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की ओर से जनता से समर्थन की अपील के बाद राजशाही की बहाली की मांग फिर से उठने लगी।
हिंसक झड़पों का दौर
काठमांडू में नेपाली सुरक्षा बलों और राजशाही समर्थक कार्यकर्ताओं के बीच झड़पें हुईं। हिंसा में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए, जिससे शहर में अफरा-तफरी मच गई। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाईं, जिसके बाद कई घरों, अन्य इमारतों और वाहनों में आग लगा दी गई। हालात बिगड़ते देख कुछ इलाकों में कफ्र्यू लगा दिया गया। स्थानीय मीडिया के अनुसार, स्थिति तब बिगड़ गई जब प्रदर्शनकारियों ने निर्धारित सुरक्षा घेरा तोडऩे की कोशिश की और पुलिस पर पत्थर फेंके। जवाब में, सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे। झड़प के दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक व्यापारिक परिसर, एक शॉपिंग मॉल, एक राजनीतिक पार्टी मुख्यालय और एक मीडिया हाउस की इमारत में आग लगा दी, जिसमें एक दर्जन से ज़्यादा पुलिसकर्मी घायल हो गए।
राजा लाओ देश बचाओ
इस महीने की शुरुआत में जब ज्ञानेंद्र देश के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक स्थलों का दौरा करने के बाद त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे, तो कई राजशाही समर्थक कार्यकर्ताओं ने उनके समर्थन में एक रैली निकाली। प्रदर्शनकारियों को ‘राजा वापस आओ, देश बचाओ’, ‘हमें राजशाही चाहिए’, और ‘राजा के लिए शाही महल खाली करो’ जैसे नारे लगाते हुए सुना गया। राजनीतिक जानकारों का मानना ??है कि नेपाल में राजशाही के पक्ष में इस भावना के पीछे एक प्रमुख कारण व्यापक भ्रष्टाचार और आर्थिक गिरावट से जनता की हताशा है। इसकी एक वजह शासन की स्थिरिता भी है। राजा को कभी शक्ति और स्थिरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता था, नेपाल ने 2008 में गणतंत्र में परिवर्तन के बाद से उस स्थिरता को बनाए रखने के लिए संघर्ष किया है। पिछले 16 वर्षों में, देश ने 13 अलग-अलग सरकारें देखी हैं।
सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को ‘सुप्रीम’ राहत
- सुप्रीम कोर्ट की जजों को नसीहत
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए भले ही उन्हें विचार पसंद न आए
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के केस मामले में आज सुनवाई करते हुए उन्हें बड़ी राहत दी है। साथ ही जजों को नसीहत देते हुए टिप्पणी में कहा है कि जजो को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। भले ही उनहें विचार पंसद न हो। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद एक बार फिर इस दिशा ने नई बहस को जन्म दे दिया है। क्योंकि ज्यादातर मामलों में आरोपी पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। ताजा मामला स्टैंडअप कमेडियन कुणाल कामरा का चल रहा है। वह इस प्रकरण को अभिव्यक्ति की आजादी बता रहे हैं जबकि महाराष्ट्र सरकार इसे इस दायरे से आगे की बात कह रही है। खुद सीएम फडणवीस ने आगे आकर बयान जारी किया है। बहारहाल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कुणाल को राहत मिलने की उम्मीद है।
रदद कर दी एफआईआर
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने के निर्णय पर सवाल उठाए थे। जस्टिस ओका ने पुलिस की संवेदनहीनता पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि कविता का संदेश अहिंसा का था और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व को समझना चाहिए। प्रतापगढ़ी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट के दृष्टिकोण की आलोचना करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था और अब उसने एफआईआर को रद्द कर दिया है।
अधिकार की रक्षा करें
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर रद्द करते हुए उक्त टिप्पणी की है। जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की बेंच ने प्रतापगढ़ी की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि इस मामले में कोई अपराध नहीं बनता। अदालत ने अपने फैसले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों की रक्षा के महत्व पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नागरिकों का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है और इसे बनाए रखना आवश्यक है। न्यायालयों का दायित्व है कि वे इस अधिकार की रक्षा करें, भले ही उन्हें व्यक्त किए गए विचारों से व्यक्तिगत रूप से असहमति हो। गौरतलब है कि यह एफआईआर प्रतापगढ़ी के एक इंस्टाग्राम पोस्ट को लेकर दर्ज की गई थी, जिसमें एक कविता की पृष्ठभूमि में एक वीडियो क्लिप थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को समझना चाहिए और इस प्रकार के मामलों में संवेदनशीलता बरतनी चाहिए।