जस्टिस यादव पर महाभियोग का नोटिस सुप्रीम कोर्ट से साझा करें: धनखड़

नई दिल्ली। मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने से पहले राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने नोटिस को सुप्रीम कोर्ट के महासचिव के साथ साझा करने का निर्देश दिया है। धनखड़ ने स्पष्ट किया कि प्रक्रिया सांविधानिक रूप से संसद के अधीन है। इसके बाद, जस्टिस यादव के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की जा सकती है।
सभापति धनखड़ ने प्रश्नकाल के दौरान विपक्ष के नोटिस पर व्यवस्था देते हुए कहा, उन्हें 13 दिसंबर, 2024 को महाभियोग प्रस्ताव के लिए बिना तारीख वाला नोटिस मिला है। विपक्षी सांसदों ने नोटिस में संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत जस्टिस यादव को पद से हटाने की मांग की है। सभापति धनखड़ ने कहा, इस विषय-वस्तु का अधिकार क्षेत्र सांविधानिक रूप से राज्यसभा के सभापति, राष्ट्रपति व संसद के पास है। सार्वजनिक सूचना के मद्देनजर यह उचित है कि राज्यसभा के महासचिव इसकी जानकारी सुप्रीम कोर्ट के महासचिव के साथ साझा करें।
जस्टिस यादव पर बीते साल 8 दिसंबर को विहिप के विधि प्रकोष्ठ से जुड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेने और इस दौरान मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। जस्टिस यादव ने कहा था कि बहुसंख्यकों के अनुसार ही देश चलेगा। यही कानून है। इस दौरान उन पर यह कहने का भी आरोप है कि कठमुल्ले देश के लिए घातक हैं।
मुस्लिमों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में विपक्ष के 55 सासंदों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था। पिछले साल 13 दिसंबर के इस प्रस्ताव में जस्टिस यादव पर न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनर्कथन-1997 का उल्लंघन करते हुए समान नागरिक संहिता से जुड़े सियासी मामलों पर सार्वजनिक बहस में शामिल होने व धर्म विशेष पर आपत्तिजनक टिप्पणी का आरोप है।
महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से जानकारी साझा करने के बाद सभापति धनखड़ नोटिस के गुण-दोष के आधार पर स्वीकार या अस्वीकार करेंगे। स्वीकार करने की स्थिति में आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन होगा। कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, किसी भी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और संविधान के विशेषज्ञ को शामिल किया जाएगा। यह समिति रिपोर्ट सभापति को देगी। समिति की ओर से आरोप सही पाए जाने की स्थिति में संबंधित व्यक्ति को पद से हटाने के लिए मतदान कराया जाएगा। पद से हटाने के लिए प्रस्ताव के पक्ष में उपस्थित सांसदों में से दो तिहाई सांसदों का समर्थन जरूरी है।
विवाद बढऩे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले का स्वत: संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर मुद्दे पर जस्टिस यादव की प्रतिक्रिया मांगी। जवाब में जस्टिस यादव ने कहा कि वह टिप्पणी पर कायम हैं, जो न्यायिक आचरण के किसी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करती है।