2019 जैसा प्रदर्शन करना मुश्किल, महाराष्ट्र में हार रही बाजेपी !

महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है... और महाराष्ट्र जीतने का बीजेपी का सपना पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा है.... देखिए खास रिपोर्ट...

4पीएम महाराष्ट्रः देश में लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां चुनाव प्रचार करने में जुट गई है… और एक दूसरे पर हमलावर है… बता दें महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है… और महाराष्ट्र जीतने का बीजेपी का सपना पूरा होता हुआ नहीं दिख रहा है…. बता दें कि बीजेपी के सभी मनसूबे पर पानी फिरता नजर आ रहा है… जिसका मुख्य कारण पार्टी में टूट है… बता दें कि बीजेपी अपने पाले में शामिल कर ने से पहले नेताओं का खूब सम्मान करती है… उनकी सभी बातों को मानती है…. वहीं सत्ता पाते ही सभी वादे भूल जाती है… और अपने सांसदों और नेताओं की किसी भी बात को नहीं सुनती है… जिसके परिणाम स्वारूप चुना हुआ प्रत्याशी जनता के लिए कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाता है… जिसके चलते उसकी छबि जनता के बीच में खराब होती है… और जनता को उस नेता की ही सारी जवाबदेही होती हैं…. क्योंकि जनता उसको और उसके वादों के चलते उसको चुनती है…. बता दें की बीजेपी सत्ता में आने से पहले तमाम लालच और योजनाओं की घोषणा करती है… वहीं भरे मंच से दिग्गज नेता खूब जोर-शोर से विकास का पिटारा खोल देते हैं…. वहीं चुनाव जीतने के बाद सभी पिटारे बंद हो जाते है… और जनता फिर अपने पुराने अंदाज में जीने लगती है… इसका मुख्य कारण है कि देश की जनता को आदत हो गई है… शोसण सहने की… जनता अपने हक के लिए आवाज नहीं उठा रही है… बस सत्ता के बहकावें में अपना जीवन यापन कर रही है… जिसका फायदा बीजेपी उठाती चली आ रही है… लेकिन अब जनता समझ चुकी है… और इसका जवाब देने का जनता ने मन बना लिय़ा है… और इस बार बीजेपी के सभी मनसूबे पर पानी फिरेगा… और 400 पार के लक्ष्य को लेकर चल रही भाजपा को 200 पार करना भी मुश्किल हो जाएगा….

2019 में शिवसेना झोंक दी पूरी ताकत

आपको बता दें कि साल 2019 में शिवसेना की पूरी ताक़त भाजपा के साथ थी… वहीं इस बार शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का एक हिस्सा उसके साथ हैं… और राज्य में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति “सहानुभूति की लहर” की बात कही जा रही है…. वहीं जालना ज़िले के अंतरवाली सराटी गांव में मनोज-जरांगे पाटिल मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे हैं…. जिसको देखते हुए उस गांव में भाजपा के प्रति बहुत नाराज़गी है…. देश के दूसरे हिस्सों की तरह भाजपा-शासित महाराष्ट्र में भी बेरोज़गारी, महंगाई, किसानों की समस्या आदि चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं…. लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी का ज़ोर उनकी नाव किनारे लगा देगा…. लेकिन ऐसा संभव नहीं है… मोदी के जुमलों से पार्टी लगातार दो बार सत्ता में आ चुकी है… और जनता अब पहले से अधिक समझदार है… अब जनता पीएम मोदी के जुमलों में नहीं आने वाली है…

ओपेनियन पोल में इंडिया गठबंधन को मिल रही 41 सीटें

वहीं महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें दांव पर हैं…. बता दें कि हाल ही में जारी ओपेनियन पोल ने एक बार इंडिया गठबंधन को 41 सीटें और एक बार 37 सीटें मिलने का अनुमान व्यक्त किया है… जिसको देखते हुए बीजेपी की जमीन हिली हुई है…. वहीं एनसीपी (शरद पवार) के जीतेंद्र आव्हाड ने महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के लिए 28 सीटों की उम्मीद जताई…. जबकि अमरावती से भाजपा उम्मीदवार नवनीत राणा का कहना है कि…. भाजपा महायुति गठबंधन “अधिकांश” सीटें जीतेगा…. वहीं इस चुनाव में जहां शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) के लिए जनता के सामने अपना केस मज़बूती से पेश करने की चुनौती है…. और एकनाथ शिंदे और अजीत पवार और उनके साथ गए नेता से महाराष्ट्र की जनता नाराज है…

महाराष्ट्र रहा कांग्रेस का गढ़

आपको बता दें कि महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा था….. लेकिन आपसी कलह कांग्रेस के लिए कांग्रेस के लिए भी कुछ चुनौती रही है…. लेकिन इसके बावजूद मराठवाड़ा, विदर्भ में अभी भी ऐसे इलाक़े हैं जहां कांग्रेस का ज़ोर है…. और लोग कांग्रेस को चाहते है… आपको बता दें कि कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण के मुताबिक इस चुनाव में पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना महत्वपूर्ण राज्य हैं…. जिसको लेकर उनका दावा है कि सभी जगह भाजपा का बल घटा है…. जनता बीजेपी के झूठ से वाकिफ हो गई है…. जिसका परिणाम 4 जून को देखने को मिलेगा….

महाराष्ट्र की सियासत में 2012 में शुरू हुआ अंतर्कलह

वहीं उत्तर भारत में अपने राजनीतिक चरम पर पहुंच चुकी भाजपा को पता है कि उसके लिए महाराष्ट्र कितना महत्वपूर्ण है…. लेकिन भाजपा के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं…. बता दें कि महाराष्ट्र में एक वक़्त मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस… और शिवसेना/भाजपा के बीच होता था…. शिवसेना और भाजपा ने साल 1984 में पहली बार ग़ैर-कांग्रेसवाद के नाम पर हाथ थामा था…. साल 1987 में जब शरद पवार वापस कांग्रेस में शामिल हुए…. मराठी मानुस की बात करने वाली शिवसेना कांग्रेस-विरोध का स्तंभ बनी…. और उसके बढ़ने की शुरुआत हुई…. वक़्त के साथ-साथ मराठी मानुस की बात हिंदुत्व में तब्दील हो गई… वहीं कुछ और परिस्थितियों के कारण गठबंधन में भाजपा का पलड़ा भारी होता गया…. वहीं साल 2012 में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की मौत और उसके बाद की अंतर्कलह ने शिवसेना को और कमज़ोर किया…. जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में लहर ने भाजपा को साल 2014 में महाराष्ट्र में 23 सीटों तक पहुंचा दिया… वहीं साल 2019 में भाजपा, शिवसेना गठबंधन ने 41 सीटों पर बाज़ी मारी…. वहीं पीएम मोदी के पक्ष में वोटिंग की मुख्य वजह पुलवामा रहा हैं…

महाराष्ट्र्र में बीजेपी को 2019 की सफलता दोहराना मुश्किल

आपको बता दें कि पार्टियों में टूट-फूट के कारण… इस बार भाजपा या एनडीए के लिए 2019 की सफलता  को दोहराना मुश्किल है… वहीं राज्य में स्थानीय चुनावों में लंबी देरी को भी वो राज्य सरकार में विश्वास की कमी की निशानी मानते हैं… बता दें कि उद्धव ठाकरे के मुक़ाबले एकनाथ शिंदे की पहुंच सीमित है…. भाजपा को लगा सभी ठाकरे समर्थक शिंदे की तरफ़ हो जाएंगे…. लेकिन ऐसा हुआ नहीं…. भाजपा को एहसास हुआ कि अजीत पवार का असर पूना ज़िले तक सीमित है…. ऐसी सोच है कि ये कुछ ज़्यादा (तोड़-फोड़) ही हो गई…. कि मराठी मानुस को हमेशा दिल्ली से चुनौती मिलती है…..जिसको देखते हुए पार्टी कार्यकर्ता ये भी देख रहे हैं कि कल तक जिन्हें भाजपा भ्रष्ट कहती थी…. आज वो पार्टी के साथ खड़े हैं…. वहीं ये सोचने वाली बात है…. लेकिन राजनीति में जोड़-तोड़ करना पड़ता है… नहीं तो एक सीट के कारण भी सरकार गिर सकती है…..

एकनाश शिंदे-अजीत पवार से नाराज़ है जनता

आपको बता दें कि महराष्ट्र के लोग भाजपा से ज़्यादा एकनाश शिंदे और अजीत पवार से नाराज़ हैं… कि उन्होंने टूट में हिस्सा लिया…. वहीं ये सहानुभूति कितनी गहरी है…. ये साफ़ नहीं है लेकिन एकनाथ शिंदे का हाथ थामने वाले शिवसैनिक नरेश म्हस्के चुनाव में उद्धव या शरद पवार के लिए किसी भी सहानुभूति से इनकार करते हैं…. जिसको लेकर नरेश म्हस्के कहते हैं कि शुरुआत में उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति थी…. जो बाद में कम होने लगी…. वो कहते हैं, “लोगों को मुख्यमंत्री (एकनाथ शिंदे) चौबीसों घंटे काम करते दिखने लगे….. लोगों को लगा कि वो काम कर रहे हैं…. अच्छे-अच्छे फ़ैसले हुए जिसकी वजह से लोग उनसे जुड़े….. लेकिन उसका परिणाम अब सबके सामने है….

‘किसी भी पार्टी को तोड़ना गलत’

वहीं दिन में सूरज जब सिर के ठीक ऊपर था…. तब पुणे के संपन्न नांदेड़ सिटी में समर्थकों से घिरीं शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले घर-घर जाकर लोगों से मिल रही थीं…. उनके समर्थकों में लाल पोशाक और एक पगड़ी पहना एक शख़्स भी था…. जो थोड़ी-थोड़ी देर पर साज़ तुरहा बजा रहा था…. मराठी में तुरहा बजाने वाले व्यक्ति को तुतारी कहते हैं…. चुनाव आयोग ने शरद पवार वाले एनसीपी गुट को लोकसभा चुनाव के लिए ‘तुतारी’ चुनाव चिह्न दिया है….. वहीं शोभा कारले के मुताबिक पार्टी को तोड़ना ग़लत हुआ….. जिनकी पार्टी थी उनसे पार्टी छीन लेना, बहुत ग़लत बात हुई है…. वहीं जनता ने मन बना लिया है… और इस बार महाराष्ट्र में भाजपा को करारी शिकस्त मिलना तय है….

सुप्रिया सुले से सुनेत्रा पवार का मुकाबला

वहीं बारामती से सांसद सुप्रिया सुले का मुक़ाबला एनसीपी पार्टी तोड़ एनडीए में शामिल हुए अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से है…. पवार बनाम पवार की इस लड़ाई पर सुप्रिया सुले कहती हैं…. “क्या ये दुख की बात नहीं है…. उस राज्य के लिए जहां सब कुछ ठीक चल रहा था…. उसे तोड़ दिया गया क्योंकि आप अपने बल पर नहीं जीत सकते….. वहीं शिवसेना और एनसीपी में टूट के लिए सुप्रिया सुले ने इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी को ज़िम्मेदार ठहराया… उन्होंने बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि बीजेपी अपने दम पर महाराष्ट्र जीत ही नहीं सकती है…. जिसको देखते हुए बीजेपी ने डरा धमकाकर पार्टियों में तोड़ कराया और फिर एक हिस्से को अपने खेमें शामिल किया… जिसके बाद महाराष्ट्र में अपनी सरकार बनाने में सफल हुई है…. लेकिन इस बार बीजेपी को पता चल जाएगा कि किसमें कितना है दम…

अकेले दम पर बीजेपी को महाराष्ट्र जीतना मुश्किल

जानकारी के मुताबिक भाजपा को अपने बल पर महाराष्ट्र पर शासन करने के लिए ज़रूरी था कि वो शिवसेना और एनसीपी के क़द को छोटा करे… और यही टूट की वजह थी…. लेकिन अब बहस ये है कि क्या उन कोशिशों के परिणामस्वरूप नई परेशानियां तो खड़ी नहीं हो गईं हैं…. आज यहां शिवेसना के दो फाड़, एनसीपी के दो फाड़, भाजपा, कांग्रेस, प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघड़ी, एआईएमआईएम हैं…. टिकट न मिलने से या राजनीतिक महत्वाकांक्षा से ऐसे कई नाराज़ नेता हैं… जो या तो पार्टी बदल रहे हैं…. या सही वक़्त का इंतज़ार कर रहे हैं…. वहीं पार्टियों में टूट के कारण कई लोगों में ये छवि बनी है कि भाजपा पार्टी…. परिवार तोड़ने वाली पार्टी है, और ये छवि भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है…..

महाराष्ट्र में कम हुआ बीजेपी का कद

आपको बता दें कि यही कारण है कि बीजेपी का कद महाराष्ट्र में तम हुआ है… और जनता बीजेपी से नफरत करने लगी है… सभी राज्यों की तरह महाराष्ट्र में भी महंगाई, बेरोजगारी समेत तमाम मुद्दे छाए हुए है… सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने गरीब जनता से किए हुए सभी वादे भूल गई… हर साल दो करोड़ रोजगार की बात भूल गई वहीं इस बार जनता बीजेपी से हर साल दो करोड़ रोजगार का हिसाब मांग रही है… महंगाई इतने चरम पर है कि आम आदमी अपना जीवन यापन करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहा है…. फिर भी तमाम दिक्कते आ रही है… बीजेपी को इस बार अपने किए हुए वादो का असर 4 जून को पता चल जाएगा….

 

 

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