इंदौर के डॉक्टरों ने किया दुर्लभ किडनी ट्रांसप्लांट, पत्नी की स्टोन वाली किडनी लगाई पति को
मध्य प्रदेश के इंदौर में डॉक्टरों ने एक बेहद दुर्लभ और चुनौतीपूर्ण किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। यह मामला धार जिले के एक दंपती से जुड़ा है, जिसमें पति की दोनों किडनियां फेल हो गई थीं और उसका वजन 114 किलो तक पहुंच गया था।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: मध्य प्रदेश के इंदौर में डॉक्टरों ने एक बेहद दुर्लभ और चुनौतीपूर्ण किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है।
यह मामला धार जिले के एक दंपती से जुड़ा है, जिसमें पति की दोनों किडनियां फेल हो गई थीं और उसका वजन 114 किलो तक पहुंच गया था। जब स्थिति गंभीर हुई, तो पत्नी ने अपने पति को नई जिंदगी देने के लिए अपनी किडनी दान करने का निर्णय लिया। लेकिन जांच के दौरान डॉक्टरों ने पाया कि पत्नी की किडनी में आठ पथरियां मौजूद थीं। इससे सर्जरी का जोखिम कई गुना बढ़ गया।
इसके बावजूद, इंदौर के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने पहले ऑपरेशन के जरिए दानकर्ता की किडनी से सभी स्टोन्स को सावधानीपूर्वक निकाला और फिर वही किडनी सफलतापूर्वक पति के शरीर में ट्रांसप्लांट कर दी। धार जिले के रहने वाले 47 वर्षीय मेहमूद मोहम्मद पिछले तीन साल से डायलिसिस पर थे. उनका वजन 115 किलो था और किडनी फेल होने के कारण वे लगातार कमजोर होते जा रहे थे. 2018 में जब उन्हें किडनी फेल्योर का पता चला, तो उन्होंने कई बड़े अस्पतालों में इलाज करवाया, लेकिन कोई खास सुधार नहीं हुआ.
तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ती गई और हर हफ्ते डायलिसिस कराना उनकी दिनचर्या बन गया. उनकी पत्नी नजमा बी, जो हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं. नजमा ने एक दिन फैसला लिया कि वे अपनी किडनी पति को दान करेंगी. लेकिन यह फैसला आसान नहीं था. जब डॉक्टरों ने बताया कि नजमा की खुद की किडनी में आठ स्टोन्स हैं, तो परिजनों ने उन्हें रोकने की कोशिश की. वहीं मेहमूद ने भी यह कहते हुए मना कर दिया कि यह सर्जरी उनके लिए खतरनाक साबित हो सकती है.
तीन साल तक पत्नी ने पति को समझाया, हिम्मत दी और फिर मेहमूद ने उनकी बात मान ली. दोनों इंदौर के मेदांता हॉस्पिटल पहुंचे, जहां डॉ. अंशुल अग्रवाल और डॉ. जय सिंह अरोरा के नेतृत्व में विशेषज्ञों की टीम ने पूरे मामले की जांच की. डॉक्टरों के मुताबिक, मेहमूद का वजन 114 किलो था, जो ट्रांसप्लांट के लिए काफी जोखिम भरा था. इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें वजन घटाने की सलाह दी। अगले कुछ महीनों में उन्होंने अपनी डाइट और जीवनशैली में बदलाव करते हुए वजन 106 किलो तक कम कर लिया.
पत्नी की किडनी में आठ पथरियां
दूसरी ओर, पत्नी नजमा की जांच में सामने आया कि उनकी किडनी में आठ पथरियां हैं. आमतौर पर ऐसी स्थिति में डोनर की किडनी ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती, लेकिन नजमा अपने फैसले पर अडिग रहीं. डॉक्टरों ने स्थिति को चुनौती के रूप में लिया और एक दुर्लभ तकनीक अपनाने का निर्णय किया।
ऑपरेशन के दौरान पहले नजमा की किडनी को शरीर से निकाला गया और उसी समय दूरबीन (लेप्रोस्कोपिक तकनीक) की मदद से उसमें मौजूद सभी स्टोन्स को सावधानीपूर्वक हटाया गया. इसके बाद वही किडनी मेहमूद के शरीर में ट्रांसप्लांट की गई. इस अनोखी प्रक्रिया से एक अतिरिक्त सर्जरी और तीन महीने का लंबा रिकवरी पीरियड दोनों ही बच गए.
सर्जरी पूरी तरह सफल रही. कुछ ही हफ्तों में मेहमूद की तबीयत में उल्लेखनीय सुधार देखा गया. अब उनका वजन घटकर 96 किलो रह गया है और वे सामान्य जीवन जी रहे हैं. डॉक्टरों ने इस केस को अत्यंत दुर्लभ और प्रेरणादायक करार दिया है.
मेदांता की टीम का कहना है कि इस ट्रांसप्लांट ने यह साबित किया है कि जब हिम्मत, विज्ञान और प्रेम का मेल होता है, तो असंभव भी संभव हो जाता है. नजमा का समर्पण और मेहमूद की जिजीविषा आज समाज के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गई है.


