ED की बड़ी कार्रवाई: बेंगलुरु में इतने ठिकानों पर छापेमारी, सुषरुति सौहार्द सहकारी बैंक से जुड़ा है मामला
एन श्रीनिवास मूर्ति के खिलाफ की गई एफआईआर में आरोप है कि उनके द्वारा शुरू की गई बैंक ने ग्राहकों को उनकी फिक्स्ड डिपॉजिट और सेविंग अकाउंट पर ब्याज देना बंद कर दिया.

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क: प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में बड़ी कार्रवाई करते हुए 15 अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी की है।
यह छापेमारी सुषरति सौहार्द सहकारी बैंक के चेयरमैन एन. श्रीनिवास मूर्ति और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के सिलसिले में की गई है। सूत्रों के अनुसार, इस कार्रवाई की शुरूआत ईसीआईआर (ECIR) दर्ज होने के बाद की गई। यह ECIR एन. श्रीनिवास मूर्ति, उनकी पत्नी धरनी देवी और बेटी मोक्षतारा सहित उनके करीबी सहयोगियों के खिलाफ बेंगलुरु के विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज एफआईआर के आधार पर दर्ज की गई है।
मामले में आरोप है कि एन. श्रीनिवास मूर्ति और उनके परिवार ने ग्राहकों की जमा राशि पर ब्याज देना बंद कर दिया, जिससे हजारों निवेशकों को भारी नुकसान हुआ। जांच एजेंसी को शक है कि बैंक के जरिए बड़े पैमाने पर मनी लॉन्ड्रिंग की गई है। फिलहाल ED की जांच जारी है और आने वाले दिनों में और खुलासे होने की संभावना है।
क्या आरोप है?
एन श्रीनिवास मूर्ति के खिलाफ की गई एफआईआर में आरोप है कि उनके द्वारा शुरू की गई बैंक ने ग्राहकों को उनकी फिक्स्ड डिपॉजिट और सेविंग अकाउंट पर ब्याज देना बंद कर दिया. जब लोगों ने इस बात से आपत्ति जताई और बैंक जाकर पूछताछ की कि ब्याज क्यों नहीं मिल रहा, तो बैंक कर्मचारियों ने सर्वर की समस्या बताकर टाल दिया. आरोप है कि चेयरमैन, डायरेक्टर्स और बैंक के कुछ कर्मचारी मिलीभगत करके ग्राहकों की जमा की गई राशि को हड़प गए.
श्रीनिवास मूर्ति ने लोगों को ज्यादा ब्याज का लालच देकर बैंक में एफडी और टर्म डिपॉजिट खोलने को कहा. लोगों ने अपने और अपने परिवार के नाम पर बैंक में पैसा जमा कराया. बाद में उन्होंने श्रुति सौहार्द क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी शुरू की, जिसमें उनके रिश्तेदार बी.वी. सतीश (बहनोई) अध्यक्ष और दीपक जी (भतीजा) उपाध्यक्ष बने. शुरुआत में लोगों को ब्याज मिला, लेकिन 2021-22 के बाद न ब्याज मिला, न एफडी बंद करने दिया गया. कई लोगों को इसी तरह धोखा दिया गया.
कैसे चल रहा था गड़बड़झाला?
मूर्ति ने अलग-अलग वित्तीय संस्थाएं बनाई, जैसे श्री लक्ष्मी महिला को-ऑपरेटिव सोसायटी (जिसका संचालन उनकी दूसरी पत्नी करती है) और वहां भी लोगों से पैसे जमा कराकर ठगा. उन्होंने अपने, अपने परिवार और दोस्तों के नाम पर कई संपत्तियां खरीदीं. बैंक की हर जरूरी कमेटी (लोन, निवेश, ऑडिट आदि) के चेयरमैन खुद थे, जिससे बैंक की रकम का मनचाहा उपयोग कर सके. उन्होंने अपने करीबी लोगों को बिना किसी गारंटी के लोन दिए, जिनमें से ज्यादातर रकम बैंक को वापस नहीं मिली. लोन की रकम अक्सर कैश में निकाली गई या घुमा-फिराकर मूर्ति, उनके परिवार या उनके व्यापारिक संस्थानों के अकाउंट्स में डाली गई.



