सर्वे से किसानों में उबाल, 25000 परिवारों पर मंडरा रहा बेघर होने का खतरा
नई दिल्ली। केरल सरकार द्वारा इको-सेंसिटिव जोन्स के सेटेलाइट सर्वे के खिलाफ राज्य में कुछ किसान संगठन और चर्च निकायों ने विरोध-प्रदर्शन का ऐलान किया है. राज्य सरकार ने यह सर्वे सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद किया था. दोनों ही निकाय सर्वे में रिविजन की मांग कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि राज्य सरकार द्वारा किए गए सर्वे से हजारों परिवार बेघर हो सकते हैं. विरोध प्रदर्शनों की सुर देख मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने इसका जवाब दिया. सीएम ने भी ये माना है कि सर्वे के जो आउटकम आए हैं, वो फाइनल नहीं है.
राज्य वन विभाग के मंत्री एके ससींद्रन ने कहा कि सर्वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर किए गए थे, ताकि कोर्ट यह माने की उसके आदेश का राज्य द्वारा पालन किया गया है. 3 जून को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि वो नेशनल पार्क और वाइल्डलाइफ सेंचुरीज जो प्रोटेक्टेड एरिया के तहत आते हैं, उसकी पहचान की जानी चाहिए और इसके एक किलोमीटर के दायरे को बफर जोन घोषिता किया जाना चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस दायरे में कोई माइनिंग, किसी भी नए परमानेंट स्ट्रक्चर की इजाजत न दी जाए.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दो एक्सटेंशन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को अगले साल मार्च तक लागू करने को कहा है. हालांकि कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ केंद्र और केरल सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की है. बताया जा रहा है कि इन याचिकाओं पर कोर्ट में 11 जनवरी को सुनवाई होगी. अक्टूबर महीने में केरल सरकार ने कोर्ट के इस आदेश को लागू करने के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस थोट्टाथिल बी राधाकृष्णन की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी. इस संबंध में स्टेट रिमोट सेंसिंग और एनवायरोमेंट सेंटर द्वारा एक सेटेलाइट सर्वे किया गया था. रिपोर्ट में बताया गया है कि 13 दिसंबर को कमेटी ने बफर जोन की पहचान करते हुए एक मैप जारी किया था. इसी मैप को कुछ किसान संगठन और चर्च निकाय मानने से इनकार कर रहे हैं और कह रहे हैं कि इसमें बहुत कमियां हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक सर्वे के दौरान 20,000 बिल्डिंग जिसमें अधिकतर रेजिडेंस बिल्डिंग शामिल हैं, की पहचान की गई है जो 23 बफर जोन के एक किलोमीटर के दायरे में आते हैं. इनमें ज्यादातर बफर जोन की इडुक्की और वायनाड में पहचान की गई है. प्रदर्शनकारियों का दावा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू किया जाता है तो इससे 25,000 परिवार प्रभावित होंगे और 250,000 एकड़ क्षेत्र की जमीन बफर जोन में चली जाएंगी. इडुक्की, वायनाड और कोझीकोड जिलों के पहाड़ी और वन क्षेत्रों में ईसाइयों की बहुसंख्यक आबादी है. 1960 के दशक में जब देश खाद्य संकट से जूझ रहा था, तब उन्हें “अधिक विकास योजना” के तहत इस क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया था.