सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज का प्रश्न, बाबरी ढांचा गिराने के आरोपियों को बरी करने वाला लोकायुक्त बन गया
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रोहिनटन नरीमन ने बाबरी ढांचा गिराने के आरोप में चले ट्रायल पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद भी लंबे चले मुकदमे के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को बरी कर दिया गया। उन्होंने गुरुवार को एक लेक्चर में कहा कि मैंने सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर ट्रायल को दोबारा शुरू करने का आदेश दिया था और उससे पहले 25 साल तक कुछ नहीं हो सका। यही नहीं इस केस के ट्रायल की सुनवाई करने वाले और सभी आरोपियों को बरी करने वाले सीबीआई के स्पेशल जज सुरेंद्र यादव को यूपी में उप लोकायुक्त बना दिया गया। ऐसा उनके रिटायरमेंट के बाद हुआ। सेकुलरिज्म और भारतीय संविधान के विषय पर बोलते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि बाबरी गिराए जाने के बाद दो एफआईआर हुई थीं। एक एफआईआर कारसेवकों पर थी कि वे आए और उन्होंने बाबरी को गिराना शुरू कर दिया। दूसरी एफआईआर 198 के तहत भाजपा के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य लोगों पर थी। इन लोगों पर आरोप था कि उन्होंने कारसेवकों को ऐसा करने के लिए उकसाया था। इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि यह मामला मेरे सामने 2017 में आया था। इस पर मैंने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए दोबारा ट्रायल चलाने का आदेश दिया। जस्टिस नरीमन ने कहा कि संयोग से यह केस मेरे सामने 2017 में आया। मैं जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष के साथ बैठा था और मैंने इस बात पर हैरानी जताई कि आखिर कैसे दो एफआईआर दर्ज होने के बाद भी कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इसके बाद दो एफआईआर का मुकदमा अलग-अलग चला। केस की सुनवाई अलग जगहों पर होने से साजिश होने वाली बात ही दब गई। बता दें कि सितंबर 2022 में रायबरेली की विशेष अदालत ने बाबरी ढांचा गिराने की साजिश रचने के आरोपों से लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को बरी कर दिया था।विशेष अदालत का कहना था कि बाबरी ढांचा गिराए जाने के पीछे कोई साजिश जैसी बात नहीं दिखती। जज का कहना था कि ऐसा कोई सबूत नहीं दिखता, जिससे साबित हो कि इन नेताओं ने ढांचे को गिराने की साजिश रची थी। जस्टिस नरीमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच का आदेश था कि स्पेशल सीबीआई कोर्ट के जज तभी रिटायरमेंट ले पाएंगे, जब वह इस केस का फैसला सुना देंगे। इस तरह सख्ती की गई, लेकिन अंत में पता चला कि उन्होंने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। उन्होंने 3.5 साल तक केस सुना और फिस फैसले पर पहुंचे। यही नहीं सभी को बरी करने के बाद वह यूपी के उप-लोकायुक्त बन गए।