बीजेपी में हू-तूतू , घेरे में गडकरी!

- पार्टी के भीतर अन्तर्कलह और गुटबाजी चरम पर
- एक बार फिर नितिन गडकरी चर्चा में
- कभी संसदीय क्षेत्र में जातिय दंगे तो कभी उनका नाम लेकर फैक्ट्री पर हमला
- नितिन गडकरी एक गैर मोदीवादी लोकप्रिय नेता हैं
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चलने की खबरें लगातार बाहर आ रही है। राज्यों में हालात पहले से खराब हैं और अब केन्द्रीय नेतृत्तव में भी खटपट चल रही है। बड़े नेता एक दूसरे को फूंटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। ताजा खबरें नितिन गडकरी को लेकर हैं जो उन्हें असहज कर रही है। गडकरी सावर्जनिक मंच से इस बार का एलान कर चुके हैं कि जो कुछ उनके खिलाफ हो रहा है वह उनकी छवि को धूमिल करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने तो यहां तक कहा कि सोशल मीडिया पर करोड़ों रूपये उनकी ब्रांड को बबार्द करने के लिए खर्च किये जा रहे हैं? एक बार फिर नितिन गडकरी चर्चा में है। उनका नाम राजस्थान किसान आंदोलन के साथ ट्रेंड कर रहा है और आरोप है कि उनकी एथनाल फैक्ट्री को किसानों के कोप भजन का सामना करना पड़ा है। कुछ दिन पहले उनके संसदीय क्षेत्र में जातिय दंगे और अब राजस्थान में एथनाल प्लांट में किसानों का उग्र प्रदर्शन। यह सब मात्र किसानों का गुस्सा भर नहीं है। यह दृश्य कहीं न कहीं उस राजनीतिक ज्वालामुखी का धुआं है जो भाजपा के भीतर लंबे समय से पक रहा है। अब सवाल उठता है कि क्या यह गुस्सा सिर्फ एथनॉल का था या फिर यह बीजेपी की अंदरूनी राजनीति का भभका था जो किसान आंदोलन के धुएं में अपना रास्ता बनाकर बाहर निकल आया? राजनीति का पुराना उसूल कहता है कि भीड़ कभी बेवजह नहीं भड़कती बस वजह कभी बताई जाती है और कभी छुपाई जाती है। यहां मामला थोड़ा अलग है।
लीक से हटकर चल रहे है नितिन गडकरी
केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनो एक बयान दिया था कि जो करेगा जात-पात की बात उसको पड़ेगी लात। बस यह एक लाइन थी जिसने भाजपा के भीतर बैठे जातीय समीकरण के दुकानदारों के कान खड़े कर दिए। ये वही लोग हैं जिनका पूरा राजनीतिक करियर जाति गणित के मेरठी रंगबाजी अंदाज पर टिका हुआ है। गडकरी की यह लाइन मानो उनके तंबू को आग लगा देने वाली थी। इतने सालों से भाजपा के भीतर एक अनकहा सच दबा था। नितिन गडकरी एक गैर मोदीवादी लोकप्रिय नेता हैं। उनकी अपनी पकड़ है, अपनी पहचान है और अपनी भाषा है। वो बातों को घुमा-फिराकर नहीं बल्कि सीधा बोलते हैं। और यही बात कई लोगों को चुभती है।
चुनावी मौसम नजदीक है
राजस्थान में किसानों का उभार अचानक उस दिशा में क्यों गया यह महज संयोग नहीं लगता। चुनावी मौसम नजदीक है। राज्य सरकारें डगमगाती चाल में चल रही हैं। दिल्ली में राजनीतिक ट्रैफिक जाम लगा है। और ऐसे माहौल में फैक्ट्री पर किसानों की नाराजगी यह अपने आप में बहुत कुछ कहती है। भाजपा के भीतर अलग अलग पावर सेंटर हमेशा मौजूद रहे हैं। लेकिन इस बार मामला कुछ ज्यादा गाढ़ा है। गडकरी की बेबाक बातें पार्टी की पीआर मशीनरी के चिकने सेटअप में अक्सर फंस जाती है।
क्या गडकरी को साइड-लाइन करने की एक नई कड़ी है?
क्योंकि पिछले लंबे समय से यह लगातार दिखाई दे रहा है कि नितिन गडकरी बार-बार विवादों बयानबाजी और अप्रत्याशित टकराव की सुर्खियों में आ रहे हैं। और उतनी ही बार भाजपा का असहज दिखाई देती है। राजस्थान की इस घटना ने एक नया नैरेटिव खड़ा कर दिया है। बीजेपी में अंदरूनी खटपट अब गली मोहल्ले से निकलकर बीच चौराहे पर आ पहुंची है। मामला अब सिर्फ बयानबाजी का नहीं अब यह आर्थिक ठिकानों तक पहुंच चुका है। और यही बात भारत की राजनीति में 440 वोल्ट का झटका झटका पैदा करती है। किसान आंदोलन के इस एपिसोड को चाहे कोई कितना भी छुपाने की कोशिश कर ले उसके पीछे चल रही हूतूतू राजनीति की आवाज अब दूर तक सुनाई देने लगी है। इस घटना का असली खतरा भाजपा के भीतर है जहां इस घटना ने एक असहज सवाल को और मजबूत कर दिया है कि क्या नितिन गडकरी भाजपा में अकेले पड़ रहे हैं? या कोई उन्हें राजनीतिक तौर पर घेरने की कोशिश में है? राजनीति की गंध वही पहचान सकता है जिसके पास समय की नब्ज़ सुनने का हुनर हो। और राजस्थान की इस आग में भाजपा की अंदरूनी राजनीति की वही पुरानी चिंगारी जलती हुई दिखाई दे रही है।
भाजपा व शिवसेना में सहमति बनी
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने गत दिनो आगामी नगर निगम चुनावों पर चर्चा के लिए एक बंद कमरे में बैठक की। सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन मुंबई और ठाणे सहित इन नगर निगम चुनावों में मिलकर चुनाव लड़ेगा। राज्य भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले और वरिष्ठ शिवसेना नेता रवींद्र चव्हाण भी बैठक में शामिल हुए। शिवसेना ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि दोनों दलों के नेताओं ने महायुति के बैनर तले आगामी नगर निगम चुनाव मिलकर लडऩे पर रचनात्मक बातचीत की। अगले दो-तीन दिनों में, प्रत्येक नगर निगम के लिए सीट बंटवारे और अन्य विवरणों को अंतिम रूप देने के लिए स्थानीय स्तर पर चर्चा शुरू की जाएगी।
आदित्य ठाकरे की टिप्पणी के बाद बवाल
दोनों नेताओं के बीच हुई इस बैठक ने राजनीतिक अटकलों का भी बाजार गर्म कर दिया है, क्योंकि यह शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे के उस दावे के बाद हुई है जिसमें उन्होंने दावा किया था कि महायुति गठबंधन के एक सहयोगी दल के 22 से ज़्यादा विधायक मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी हैं और पाला बदलने को तैयार हैं। वह परोक्ष रूप से उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट का ज़िक्र कर रहे थे। ठाकरे ने कहा था, एक पार्टी है और राजकोषीय मोर्चे पर दो गुट हैं। एक गुट के 22 विधायक मुख्यमंत्री के करीब आ गए हैं। उनके पास अच्छा धन है और वे मुख्यमंत्री के इशारों पर नाचने लगे हैं। हालांकि, फडणवीस ने स्पष्ट किया कि भाजपा ऐसी राजनीति नहीं करती और भविष्य में गठबंधन और मज़बूत होगा। उन्होंने कहा कि शिंदे सेना हमारी सहयोगी और सच्ची शिवसेना है। हम ऐसी राजनीति नहीं करते। हम उनके साथ खड़े हैं और यह सुनिश्चित करेंगे कि वे मज़बूत हों। भविष्य में, हम निश्चित रूप से शिवसेना, भाजपा और महायुति को और मजबूत होते देखेंगे।




