हिल गई सरकार, खतरे में मोदी की कुर्सी? होने वाला है बड़ा खेला!
बिहार की राजनीति में पिछले कुछ हफ्तों से जो तूफान चल रहा है…उसकी हवा सिर्फ पटना तक सीमित नहीं है…इस तूफान की गूंज अब दिल्ली के सिंहासन तक सुनाई देने लगी है…

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बिहार की राजनीति में पिछले कुछ हफ्तों से जो तूफान चल रहा है…उसकी हवा सिर्फ पटना तक सीमित नहीं है…इस तूफान की गूंज अब दिल्ली के सिंहासन तक सुनाई देने लगी है…
ये चर्चा सिर्फ इस बात तक सीमित नहीं है कि बिहार में स्पीकर का पद छीनने की कोशिश हुई….या नीतीश कुमार फिर से अपने पुराने अंदाज़ में कोई नई पलटी मारने की तैयारी कर रहे हैं…बल्कि, ये चर्चा इससे कहीं बड़ी है…चर्चा ये है कि देश की राजनीति में एक नया शक्ति-संतुलन बन रहा है… और इसी संतुलन के बीच अब पीएम मोदी की कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है…और ये खतरा नीतीश कुमार की वजह से नहीं बल्कि, उन्हीं की पार्टी के दिग्गज नेता की वजह से मंडराने लगा है….तो आखिर क्यों खतरे में आई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुर्सी?…
बिहार में सबसे पहले विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब बीजेपी ने विधानसभा के स्पीकर पद पर कब्जा करने की पूरी रणनीति तैयार कर ली…सालों से ये पद जेडीयू या उसके सहयोगियों के पास माना जाता था…लेकिन इस बार बीजेपी ने साफ कर दिया कि…हम सिर्फ जूनियर पार्टनर नहीं रहेंगे… सत्ता का आधा हिस्सा हम भी चाहेंगे…….और जैसे ही बीजेपी के इस कदम की चर्चा हुई….पटना की राजनीति में हलचल तेज हो गई…NDA के भीतर ही मनमुटाव की आवाज़ें आने लगीं…..जेडीयू के कई नेताओं ने ये साफ संकेत दिया कि बीजेपी लगातार नीतीश कुमार को कमजोर करने पर लगी है…………दोस्तों, नीतीश कुमार, जो अपने राजनीतिक जीवन में हर बार नई चाल चलने के लिए जाने जाते हैं…उन्होंने भी ये स्थिति हल्की नहीं ली…स्पीकर का पद सिर्फ एक कुर्सी नहीं होता…वो इस बात का प्रतीक होता है कि विधानसभा में आपका वजन कितना है…इस पद पर पकड़ खोने का मतलब है… सत्ता में आपकी पकड़ ढीली होना…
अब ये बात किसी से छिपी नहीं है कि नीतीश कुमार राजनीति में अचानक फैसले लेने के लिए मशहूर हैं…चाहे 2013 में बीजेपी से अलग होना हो…चाहे 2017 में तेजस्वी यादव के खिलाफ अचानक इस्तीफा देना हो…चाहे 2022 में फिर पलटी मारकर महागठबंधन में शामिल होना हो…और चाहे 2024 में वापस बीजेपी के साथ आ जाना हो…इसलिए बिहार में चर्चा ये होने लगी कि क्या नीतीश कुमार फिर से किसी नई चाल की तैयारी में हैं?….क्या वो बीजेपी के दबाव से निकलने के लिए कोई नया रास्ता खोज रहे हैं?…या फिर एक बार फिर सहयोगियों को उनके अंदाज़ में चौंकाने वाले हैं?…..दरअसल, स्पीकर विवाद ने इस डर को और बढ़ा दिया कि बिहार में अगली बड़ी राजनीतिक हलचल किसी भी वक्त हो सकती है…
बिहार की इन हलचलों की सबसे बड़ी गूंज पटना में नहीं….बल्कि दिल्ली में सुनाई दी…क्योंकि दिल्ली की सत्ता को ये डर सताने लगा था कि अगर बिहार में एक और राजनीतिक भूचाल आया…और नीतीश कुमार किसी नई दिशा में मुड़ गए…तो संसद में सरकार के लिए पहले से मुश्किल हालात और भी ज्यादा मुश्किल हो जाएंगे….याद कीजिए…संसद के पिछले सत्रों में सरकार को कई बार बैकफुट पर आना पड़ा…विपक्ष कई मुद्दों पर भारी पड़ा…कई बिलों पर सरकार को रणनीति बदलनी पड़ी…ऐसे समय में बिहार की राजनीति किसी भी दिशा में पलट सकती है…ये बात दिल्ली के लिए हल्की नहीं है…
इसी बीच जब बिहार की राजनीति दिल्ली तक अपनी आग फैला रही थी….उसी दौरान उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के मोरना से एक और बड़ी राजनीतिक हलचल पैदा हो गई…और ये हलचल किसी पार्टी ने नहीं… बल्कि धर्म संसद ने पैदा की…मुजफ्फरनगर के मोरना स्थित शुक्रतीर्थ के हनुमान धाम में सनातन धर्म संसद का आयोजन हुआ…ये कोई साधारण सभा नहीं थी…यहां देशभर से साधु-संत, महंत, धार्मिक संगठनों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में शामिल हुए और इस धार्मिक आयोजन में एक ऐसा प्रस्ताव पारित हुआ…
जिसने दिल्ली की राजनीतिक रणनीति से लेकर लखनऊ की सत्ता तक को हिला दिया…बता दें कि धर्म संसद ने 12 बड़े प्रस्ताव पारित किए…जिनमें दो प्रस्ताव मुख्य थे…पहला, सीएम योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प माना जाए….और दूसरा, देश को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए…सभा में मौजूद साधु-संतों ने साफ कहा कि योगी आदित्यनाथ देश को सुरक्षित और मजबूत नेतृत्व दे सकते हैं…ये मांग सिर्फ एक भावनात्मक अपील नहीं थी…ये 2029 की राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक खुला संदेश था…
ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या वाकई मोदी जी की कुर्सी खतरे में है?…क्या सीएम योगी को पीएम बनाने की मांग राजनीतिक दबाव बन सकती है?….क्या बीजेपी के भीतर दो कैंप बनने की शुरुआत हो गई है?….तो, सच ये है कि बीजेपी में खुलकर दो धड़े दिखते नहीं… लेकिन राजनीतिक ऊर्जा के स्तर पर एक साफ बदलाव नजर आता है….क्योंकि सीएम योगी ने नाम का समर्थन जिस वजह से हुआ उसके पीछे की वजह थी…
सीएम योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व की सीधी और स्पष्ट लाइन…सख्त कानून-व्यवस्था मॉडल….राम मंदिर का नाम उनसे जोड़ा जाना और उत्तर प्रदेश पर उनकी मजबूत पकड़….इन सबकी वजह से वो राष्ट्रीय हिंदुत्व राजनीति के मजबूत चेहरों में से एक बन चुके हैं…धर्म संसद में सीएम योगी को पीएम का विकल्प बताना…सिर्फ धार्मिक समुदाय की प्रतिक्रिया नहीं है…ये राजनीतिक भविष्य की तैयारी जैसा एक सीधा संदेश माना जा रहा है…
अब ऐसे में सवाल ये है कि दिल्ली के लिए ये संकेत खतरनाक क्यों है?…तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्तमान में सबसे लोकप्रिय नेता हैं…ये बात अलग नहीं हो सकती…लेकिन राजनीति में ये भी सच है कि भविष्य की लाइनें हमेशा पहले से तैयार होती रहती हैं और जब देश के सबसे बड़े राज्य….उत्तर प्रदेश की धार्मिक संस्थाओं, साधु-संत समाज और सांस्कृतिक समूहों में सीएम योगी का नाम बतौर प्रधानमंत्री के विकल्प के रूप में उठने लगे…तो ये संदेश बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व तक जरूर पहुंचता है…………
ये संदेश ये बताता है कि नेतृत्व के लिए विकल्प तैयार हो रहा है…और भविष्य में दो विचारधाराओं के बीच संघर्ष हो सकता है…………यानीकि, ये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति की कमान किसके हाथ में जाएगी…इस पर नई बहस शुरू हो गई है और ये बात किसी भी सरकार के लिए हल्की नहीं होती….खासकर तब, जब बिहार की वजह से सहयोगी पहले ही असंतोष में हों…
अब बड़ा सवाल ये है कि ये दोनों घटनाएं….एक तरफ बिहार का संकट और दूसरी तरफ यूपी से आया योगी प्रस्ताव कैसे जुड़ते हैं?…तो जवाब साफ है कि सीएम नीतीश कुमार का राजनीतिक मूड राष्ट्रीय समीकरणों को हिला सकता है…अगर सीएम नीतीश फिर किसी नई दिशा में जाते हैं…तो दिल्ली की सरकार को संसद में बहुमत संतुलन में परेशानी आ सकती है…कहा जा रहा है कि सीएम योगी को पीएम बनाने की मांग पार्टी के भीतर दबाव बढ़ाएगी…इससे बीजेपी की शीर्ष रणनीति और लीडरशिप मॉडल पर नए सवाल उठेंगे…दोनों हालात मिलकर नेतृत्व पर एक बड़ी चिंता की लकीर खींच रही है…यानी सीएम नीतीश का कथित राजनीतिक मूड और सीएम योगी की राष्ट्रीय उभार…दोनों मिलकर दिल्ली की स्थिरता पर डबल प्रेशर बन सकता है…
इस स्थिति में सवाल ये भी उठता है कि क्या वाकई मोदी की कुर्सी खतरे में है?…तो इसका जवाब है कि शायद अभी नहीं…लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि बीजेपी के भीतर ही एक वैकल्पिक नेतृत्व का नाम इतने खुले मंच पर सामने आ रहा है और बिहार की राजनीति उसी समय अस्थिरता पैदा कर रही है…हालांकि, दोनों घटनाएं एक दूसरे से जुड़ी नहीं दिखतीं हैं…लेकिन असर एक ही दिशा में जाता है…यानी, केंद्र की कुर्सी अब डगमगा रही है….जो कभी भी गिर सकती है या बहुत कमज़ोर हो सकती है……..



