सरकार को कानून बनाने से नहीं रोक सकते राज्यपाल, केरल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
नई दिल्ली। लंबित विधेयकों पर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ केरल सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई की। शीर्ष अदालत ने बुधवार को कहा कि राज्यपाल राज्य सरकार को कानून बनाने से रोक नहीं सकती है। बता दें कि कार्यवाही की शुरुआत के बाद से राज्यपाल आरिफ ने विधानसभा से पारित आठ में से एक लंबित विधेयक को मंजूरी दे दी है। वहीं, अन्य 7 विधेयकों को राष्ट्रपति द्वारा विचार के लिए आरक्षित किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से विधेयकों पर चर्चा के लिए संबंधित मंत्री के साथ मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से मिलने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की दलीलों पर ध्यान दिया कि आठ विधेयकों में से सात को राष्ट्रपति द्वारा विचार के लिए आरक्षित किया गया है। जबकि एक को खान ने सहमति दे दी है। इस बीच, शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को समयबद्ध तरीके से विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को सहमति देने या अस्वीकार करने पर राज्यपालों के लिए दिशानिर्देश जारी करने की अपनी याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी है।
सीजेआई ने कहा, हम रिकॉर्ड करेंगे कि राज्यपाल मुख्यमंत्री और प्रभारी मंत्री दोनों के साथ विधेयक से संबंधित मामले पर चर्चा करेंगे। हम आशा करते हैं कि कुछ दूरदर्शिता कायम रहेगी। अन्यथा, हम यहां कानून बनाने और संविधान के तहत अपना कर्तव्य निभाने के लिए हैं।
शुरुआत में, राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि समय आ गया है कि इस अदालत के लिए कुछ दिशानिर्देश तय किए जाएं कि विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए कब आरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को विधेयकों पर बैठे रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
पीठ ने इस मुद्दे पर दिशानिर्देश तय करने पर विचार करने के लिए इसे लंबित रखने का फैसला किया। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने केरल के राज्यपाल के अतिरिक्त मुख्य सचिव से पंजाब के मामले में अपने हालिया फैसले का हवाला देने को कहा था। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल नहीं कर सकते। केरल सरकार ने दावा किया है कि राज्यपाल अपनी सहमति रोककर आठ विधेयकों पर विचार करने में देरी कर रहे हैं और यह ‘लोगों के अधिकारों की हार है।