बिहार चुनाव में बड़ी गड़बड़ी, शिकायत करती रहीं पार्टियां, देखते रहे ज्ञानेश

बिहार चुनाव के दौरान वोटिंग वाले दिन चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल खड़े हो गए जब ज्ञानेश कुमार का असली चेहरा खुलकर सामने आ गया। गोदी मीडिया पर जब बताया जा रहा था कि वोटिंग में सब ठीक चल रहा है उसी वक्त सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो सामने आए जिससे साफ हो गया कि चुनाव आयोग के अधिकारी और स्थानीय प्रशासन किसका साथ दे रहा है।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः बिहार चुनाव के दौरान वोटिंग वाले दिन चुनाव आयोग पर गंभीर सवाल खड़े हो गए जब ज्ञानेश कुमार का असली चेहरा खुलकर सामने आ गया।

गोदी मीडिया पर जब बताया जा रहा था कि वोटिंग में सब ठीक चल रहा है उसी वक्त सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो सामने आए जिससे साफ हो गया कि चुनाव आयोग के अधिकारी और स्थानीय प्रशासन किसका साथ दे रहा है। क्योंकि कई जगहों से खबरें आईं कि कुछ इलाकों में दलित, पिछड़े और मुसलमान वोटरों को बूथ तक पहुँचने ही नहीं दिया जा रहा है। तो कई बूथों से खबरें आईं कि मतदाताओं को बूथ पहुंचने का बाद भी वोट नहीं डालने दिया गया। कहीं EVM खराब हो गई तो लोगों ने बवाल काट दिया।

कहीं पता चला कि नियमों को धज्जियों में उड़ाते हुए खुलेआम पर्चियां बांटी गईं है। और सुबह-सुबह के अख़बारों में चुनावी प्रचार छपा, जिस पर लोग पूछ रहे हैं — क्या ये सब चुनावी नियमों का खुला उल्लंघन नहीं? अब देखिए विपक्षी पार्टियों को तो पहले से अंदाजा था कि आज चुनाव आयोग कुछ न कुछ खेल करने वाला है। इसीलिए तो आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव ने आज सुबह सुबह ही वीडियो जारी कर लोगों को चेताया था लेकिन जनता को उनकी बात तब समझ आई जब वो वोट डालने बूथ पर पहुंचे। तो ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किसके इशारे पर और किसे जिताने के लिए बिहार चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के दिन ये खेल हुआ, सब बताएंगे आपको इस रिपोर्ट में।

अब कल राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जो हाइड्रोजन बम गिराया उसके बाद से बिहार की जनता के मन में ये शक बैठ गया था कि हरियाणा की तरह चुनाव आयोग बिहार चुनावों में भी कुछ न कुछ गड़बड़ी करने वाला है। और वो शक आज यकीन में बदल गया जब आज पहले चरण की वोटिंग के दौरान जिस तरीके वोटरों को वोट डालने से रोकने की कोशिश की गई। सोचिए वोटर वोट डालने के लिए बूथ पर पहुंचे वोटर को ये कह कर भगा दिया गया कि तुम्हारा वोट गिर चुका है। अब देखिए डिजिटल इंडिया का दावा करने वाले मोदी के राज में दो महिलाओं को इसलिए वोट नहीं डालने दिया गया क्योंकि उनके पास सिर्फ डिजिटल पर्ची थी।

अब मतदाताओं को वोट डालने से रोकने के लिए सिर्फ चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कोशिश नहीं की बल्कि पूरा प्रशासन अमला भी वोट चोरों का साथ देता हुआ पकड़ा गया। बिहार दानापुर में नसीरगंज घाट पर मतदाताओं को वोट देने से रोकने के लिए पुलिस ने नाव को बूथ तक जाने ही नहीं दिया।

अब देखिए ये ऐसे कोई एक दो मामले नहीं थे जहां पर मतदाताओं ने अधिकारियों पर आरोप लगाए। बल्कि ऐसे इतने मामले थे कि बीच वोटिंग में विपक्षी पार्टी को एक्स पर पोस्ट कर चुनाव आयोग को नींद से जगाना पड़ा। राष्ट्रीय जनता दल ने अपने ऑफिशयल एक्स हैंडल पर पोस्ट करते हुए लिखा कि, “प्रथम चरण की वोटिंग के मध्य में महागठबंधन के मजबूत बूथों पर धीमा मतदान करने के उद्देश्य से बीच-बीच में बिजली काट दी जा रही है।जानबूझ कर स्लो वोटिंग कराई जा रही है। कृपया चुनाव आयोग ऐसी धांधली बुरी नीयत” और”दुर्भावनापूर्ण इरादों” का अविलंब संज्ञान लेकर त्वरित कारवाई करें।”

अब देखिए चुनाव आयोग EVM से चुनाव कराए और वो खराब न हो ऐसा हो सकता है क्या? हर बार की तरह इस बार भी वही गड़बड़ी देखने को मिली। मतदान सुबह 7 बजे शुरू हुआ और कुछ ही देर में तकनीक समस्याएं सामने आने लगीं। बिहार की 10 सीटों पर EVM खराब हो गईं जिसके चलते वोटिंग की प्रक्रिया रुक गई। बिहार के भगवानपुर विधानसभा के बूथ संख्या 334 और 335 पर EVM मशीनें खराब होने से वोट डालने पहुँचे लोगों का सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने हंगामा कर दिया।

अब देखिए सिर्फ वीडियो ही नहीं सोशल मीडिया पर लोगों ने तस्वीरें वायरल करते हुए चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए। पहली तस्वीर एक पर्ची की थी जिसपर भाजपा प्रत्याशी की फोटो और डीटेल छपि थी। लोगों ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा कि क्या ये दीघा विधानसभा में इस तरह से पर्ची बांटना नियमों के विरुद्ध नहीं है? इसके अलावा एक दैनिक जागरण अखबार की एक फोटो वायरल हुई जिसमें वोटिंग वाले दिन खुलेआम फ्रंट पेज पर एनडीए को वोट देने को लेकर एड छपा था। इसपर भी चुनाव आयोग को घेर कर पूछा गया कि क्या ये चुनावी नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा?

तो पहले चरण की वोटिंग ने जो तस्वीर सामने रखी है, उसने आम लोगों के मन में एक गहरी बेचैनी छोड़ दी है। चुनाव को लोकतंत्र का सबसे पवित्र दिन कहा जाता है, लेकिन जब उसी दिन आम मतदाता को बूथ तक पहुँचने से रोका जाए, उसके हाथ में पर्ची होने के बावजूद उसे यह कहकर लौटा दिया जाए कि तुम्हारा वोट पहले ही डल चुका है, तो फिर लोकतंत्र का मतलब क्या रह जाता है? जिस राज्य में प्रशासन जनता की सुरक्षा नहीं, बल्कि किसी खास राजनीतिक लाभ की पहरेदारी करता दिखे, वहां चुनाव सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक योजना बन जाते हैं। EVM खराब पड़ जाए, मतदाता घंटों धूप में खड़े रहें, और दूसरी तरफ अख़बारों और पर्चियों के ज़रिए खुलेआम चुनाव प्रचार चलता रहे। यह सब यूँ ही नहीं हो जाता, यह सेटिंग की तरफ इशारा करता है। यह साफ तौर पर दिखाता है कि ज्ञानेश कुमार देश की लोकतंत्र के लिए नहीं बल्कि मोदी शाह के लिए काम कर रहे हैं।

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