चुनाव आयोग ने मान ली हार, SIR करा कर बुरा फंस गए ज्ञानेश कुमार

क्या ज्ञानेश कुमार को भारी पड़ रहा है एसआईआर कराना? क्या चुनाव आयोग के अपने ही अधिकारी और कर्मचारी ज्ञानेश कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं? क्या ममता बनर्जी के आगे आखिरकार ज्ञानेश कुमार को झुकना ही पड़ा है?

4पीएम न्यूज नेटवर्क: क्या ज्ञानेश कुमार को भारी पड़ रहा है एसआईआर कराना? क्या चुनाव आयोग के अपने ही अधिकारी और कर्मचारी ज्ञानेश कुमार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं? क्या ममता बनर्जी के आगे आखिरकार ज्ञानेश कुमार को झुकना ही पड़ा है?

पिछले कई दिनों से पश्चिम बंगाल में हो रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी एसआईआर को लेकर ऐसा बवाल मचा हुआ है कि पूरा चुनाव आयोग हिल गया है। ज्ञानेश कुमार जिस बेरहमी से अपने ही बीएलओ पर दबाव डाल रहे हैं, उसने उन बीएलओ को सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करने पर मजबूर कर दिया है। बीएलओ की लगातार हो रही मौतों के बाद तो ज्ञानेश कुमार और भी बुरी तरह दबाव में आ गए हैं।

इधर ममता बनर्जी ज्ञानेश कुमार पर लगातार हमले पर हमले कर रही हैं और इसका नतीजा यह हुआ है कि अब चुनाव आयोग ममता बनर्जी के सामने सरेंडर कर चुका है, उनकी हर बात मानने को तैयार हो गया है। जी हां, जो बिहार में एसआईआर के दौरान नहीं हुआ था, वह अब पश्चिम बंगाल में हो रहा है। कैसे बीएलओ के प्रदर्शन से चुनाव आयोग की नींद उड़ गई है और कैसे ज्ञानेश कुमार ने ममता बनर्जी के आगे घुटने टेक दिए हैं, बताएंगे आपको इस रिपोर्ट में।

लेकिन रिपोर्ट में आगे बढ़ने से पहले आप इन खबरों को देखिए जो साफ-साफ बता रही हैं कि देश के हर कोने से बीएलओ की मौत, आत्महत्या, हार्ट अटैक की खबरें आ रही हैं और कारण हर जगह एक ही लिखा जा रहा है, एसआईआर का दबाव, एसआईआर का टारगेट, एसआईआर की धमकी और एसआईआर का असंभव वर्कलोड। यह बताता है कि अब ये सिर्फ संयोग नहीं रहा, बल्कि यह एक खतरनाक पैटर्न बन चुका है, एक क्रूर और निर्दयी सिस्टम बन चुका है जो बीएलओज की जान ले रहा है। पश्चिम बंगाल से लेकर गुजरात तक एक ही चीख सुनाई दे रही है कि बीएलओ को एसआईआर का दबाव मार रहा है।

पश्चिम बंगाल में एक महिला बीएलओ ने एसआईआर के बोझ तले दम तोड़ दिया, परिवार चीख-चीख कर बता रहा है कि एसआईआर के काम ने उनकी बहू-बेटी की जान ले ली। उत्तर प्रदेश के लखनऊ में बीएलओ की मौत हुई, घरवालों का साफ आरोप है कि एसआईआर की वर्किंग और तनाव ने उसे खत्म कर दिया। राजस्थान में एक बीएलओ ट्रेन के आगे कूद गया, दूसरे को हार्ट अटैक आया, दो दिन पहले ही नोटिस मिला था, रिश्तेदार चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि काम का दबाव जान निकाल रहा है। मध्य प्रदेश में एक बीएलओ स्कूल भवन में फंदे पर लटका मिला, दूसरे की मौत पर परिवार का सीधा आरोप है कि एसआईआर का टारगेट मार रहा है। केरल में एसआईआर के तनाव में बीएलओ ने सुसाइड कर लिया, सहकर्मियों ने काम करने से ही इनकार कर दिया।

तमिलनाडु में आंगनबाड़ी वर्कर ने एसआईआर के दबाव में आत्महत्या की कोशिश की, एक बीएलओ ने वर्कलोड के कारण जान दे दी। गुजरात में एक बीएलओ ने एसआईआर के बोझ में सुसाइड कर लिया, दूसरे की हार्ट अटैक से मौत हुई, परिवार का वही पुराना आरोप, काम का बढ़ता तनाव। इतनी मौतें, इतना दर्द फैला है और चुनाव आयोग ने चुप्पी साध ली है। चुनाव आयोग हर महीने बीएलओ से हजारों-हजार घरों में फॉर्म भरवाता है, लेकिन जब बीएलओ मर जाता है तो एक शोक संदेश तक जारी करना जरूरी नहीं समझता।

मोदी सरकार और चुनाव आयोग दोनों मिलकर दोषी हैं क्योंकि असंभव टारगेट तो मोदी सरकार तय करती है और पूरे दिन-रात बीएलओ को दौड़ाने के आदेश ज्ञानेश कुमार का चुनाव आयोग देता है। ये मौतें आत्महत्याएं नहीं हैं, ये सिस्टम द्वारा की गई सुनियोजित हत्याएं हैं। जब पूरे देश से हर राज्य, हर अखबार, हर परिवार एक ही कारण बता रहा है तो अब सवाल यह नहीं कि बीएलओ क्यों मर रहे हैं, सवाल यह है कि नरेंद्र मोदी और ज्ञानेश कुमार अब तक सो क्यों रहे हैं, क्यों इन लाशों पर भी अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं?

इन्हीं सब वजहों से पश्चिम बंगाल में बीएलओ का संगठन पिछले दिनों सड़कों पर उतर आया और तगड़ा प्रदर्शन किया। बीएलओ काम के अत्यधिक दबाव और एसआईआर के बढ़ते दबाव से तनाव में आ चुके हैं, बीएलओ की हो रही मौतों पर उन्होंने खुला बगावत कर दी। प्रदर्शन के दौरान सीईओ कार्यालय में घुसने का प्रयास किया गया, बीएलओ ने पुलिसकर्मियों के साथ हाथापाई तक कर दी। शाम को नाटकीय घटनाक्रम तब शुरू हुआ जब दस सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल, जिसमें चार बीएलओ और छह शिक्षक या राज्य सरकार के कर्मचारी थे, अपनी शिकायतें दर्ज कराने सीईओ मनोज अग्रवाल के कार्यालय में घुसा।

सीईओ की गैरमौजूदगी में उनके अधीनस्थ ने ज्ञापन स्वीकार किया, लेकिन जब प्रतिनिधिमंडल बाहर जा रहा था तो एक सदस्य ने बताया कि रैली में आने की वजह से उसे धमकी भरा संदेश मिला, बस फिर क्या था, पूरा समूह अंदर ही धरने पर बैठ गया। हंगामे के बीच कोलकाता पुलिस और सीईओ कार्यालय के सुरक्षाकर्मी प्रदर्शनकारियों को उठा-उठा कर बाहर फेंकने लगे। इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़कर सीईओ दफ्तर में घुसने की कोशिश की थी। बीएलओ निर्वाचन आयोग के खिलाफ नारे लगा रहे थे और खुलेआम आरोप लगा रहे थे कि चुनाव आयोग ने एसआईआर के दौरान थोपी गई अत्यधिक और अमानवीय कार्य दबाव की उनकी शिकायतों पर कोई जवाब तक नहीं दिया, इसलिए उन्हें सड़क पर उतरना पड़ा।

आपको बता दें कि अभी तक जितनी भी बीएलओ की मौतें हुई हैं उनमें सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल के ही हैं और इसका सीधा कारण यह है कि मोदी-शाह किसी भी कीमत पर पश्चिम बंगाल की सत्ता हथियाना चाहते हैं, इसलिए वहीं सबसे ज्यादा बीएलओ पर क्रूर दबाव डाला जा रहा है और यही वजह है कि वहीं सबसे बड़ा आंदोलन भी खड़ा हो गया है।

अब एक तरफ जहां बीएलओ ने चुनाव आयोग के खिलाफ खुला विद्रोह कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने भी राज्य में हो रहे एसआईआर को लेकर ज्ञानेश कुमार पर सीधा हमला बोल रखा है। ममता बनर्जी सड़कों पर उतरकर चुनाव आयोग को खुली चुनौती दे रही हैं। बोनगांव में एंटी-एसआईआर रैली में ममता ने साफ कहा कि चुनाव आयोग अब निष्पक्ष नहीं रहा, यह बीजेपी आयोग बन चुका है। उन्होंने धमकी भरे लहजे में कहा कि अगर बंगाल में उन्हें चुनौती दी गई तो वह पूरे देश में बीजेपी की नींव हिला देंगी।

पिछले एक सप्ताह में ममता बनर्जी ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को लगातार दो चिट्ठियां लिखी थीं। आखिरी चिट्ठी सोमवार को भेजी गई थी और इसके ठीक एक दिन बाद चुनाव आयोग ने ममता की तृणमूल कांग्रेस को चिट्ठी लिखकर उनके प्रतिनिधिमंडल से मिलने का समय दे दिया। जी हां, जिन दस टीएमसी सांसदों ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी थी, अब आयोग ने उन्हें 28 नवंबर को मिलने का समय दे दिया है। बताया जा रहा है कि तृणमूल नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने आयोग से मिलने का समय मांगा था और आयोग की यह चिट्ठी उसी का जवाब है।

यह पहली बार हो रहा है जब चुनाव आयोग ने विपक्षी दल के सांसदों से बैठकर एसआईआर को लेकर उनके सारे सवालों के जवाब देने के लिए हामी भर दी है। जो बिहार में नहीं हो सका, वह ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में करके दिखा दिया। ममता ने बाकी सारे विपक्षी नेताओं को भी बता दिया कि ज्ञानेश कुमार को भी झुकाया जा सकता है, बस झुकाने वाले में दम होना चाहिए।

अब देखिए एक बात तो साफ है कि मोदी और उनका चुनाव आयोग SIR को खुले आम वोट चोरी के हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। बंगाल में लाखों वोटरों के नाम काटकर 2026 में वोट चोरी की पूरी साजिश चल रही है, और इसके लिए सैकड़ों बीएलओ की लाशें बिछाई जा रही हैं। ज्ञानेश कुमार नरेंद्र मोदी के लिए अपनी वफादारी साबित करने के चक्कर में आम लोगों की जान से खेल रहे हैं।

लोकतंत्र के ये तथाकथित रखवाले अब लोगों की जान के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं। एक तरफ लाशों का ढेर लग रहा है, दूसरी तरफ ज्ञानेश कुमार और मोदी सरकार कुर्सी बचाने में लगे हैं। लेकिन इस बार उनका पाला ममता दीदी से पड़ गया है। ममता किसी से डरने वाली नहीं हैं।वो जुस तरीके से चुनाव आयोग और सरकार से लड़ रही हैं और चुनाव आयोग को अपने सामने झुकने पर मजबूर किया है वो बाकि के विपक्ष नेताओं के लिए एक उदाहरण बन गया है। अब 28 नवंबर को हेने वाली मीटिंग के बाद क्या निष्कर्ष निकलता है ये देखने वाली बात होगी।

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