भद्रा मुख समाप्त होने के बाद करें होलिका दहन
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन करते हैं, उसके अगले दिन सुबह होली का त्योहार मनाया जाता है। होलिका दहन के समय भद्रा काल नहीं लगना चाहिए। दरअसल, ज्योतिष शास्त्र में भद्रा काल को अशुभ समय बताया गया है। कहा जाता है कि भद्रा काल में होलिका दहन करने से सुख समृद्धि में कमी आती है। इसके अलावा पूर्णिमा प्रदोष काल में होलिका दहन करना उत्तम माना जाता है। अगर प्रदोष काल में भद्र मुख लग जाए तो भद्रा मुख समाप्त होने के बाद होलिका दहन किया जाता है। लेकिन साल 2024 में फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में भद्रा लगी हुई है, जिस वजह से लोगों को होलिका दहन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा। होलिका दहन के अगले दिन सुबह में रंगोंवाली होली खेली जाएगी। साल 2024 में होली 25 मार्च दिन सोमवार को है। उस दिन सुबह 06:19 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।
होलिका दहन का मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च रविवार को सुबह 09 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी। जो रात 11 बजकर 13 मिनट तक है। उस दिन भद्रा की पूंछ शाम 06:33 बजे से शाम 07:53 बजे तक है, वहीं भद्रा का मुख शाम 07:53 बजे से रात 10:06 बजे तक है। होलिका दहन के लिए 1 घंटा 14 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा। होलिका दहन के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:19 बजे तक है, वहीं रवि योग रवि योग सुबह 06:20 बजे से सुबह 07:34 बजे तक है।
कब होगा रंग
होलिका दहन के दिन भद्रा का वास पृथ्वी लोक पर सुबह 09:54 बजे से दोपहर 02:20 बजे तक है, वहीं भद्रा का वास पाताल लोक में दोपहर 02:20 बजे से रात 11:13 बजे तक है। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का समापन 25 मार्च सोमवार को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। उस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र प्रात:काल से लेकर सुबह 10:38 बजे तक है। उसके बाद से हस्त नक्षत्र होगा।
पौराणिक कथा
होली मनाने के पीछे शास्त्रों में कई पौराणिक कथा दी गई है। लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादा भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है। कथा के अनुसार, असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस प्रकार होली का यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
हर रंग का होता है खास महत्व
रंग का लोगों के जीवन में खास महत्व है। वहीं रंगों के साथ दुनिया में बेहद खूबसूरत लगती है। यह रंग हमारी आंखों को सुकून पहुंचाते हैं, तो वहीं जीवन में उमंग, प्यार और खूबसूरती को बढ़ाते हैं। लाल रंग को प्यार का प्रतीक माना जाता है। हालांकि होली में लाल रंग का गुलाल जोश और ऊर्जा को जाहिर करता है। प्रकृति की सुंदरता को बढ़ाने वाली हरियाली हरे रंग से आती है। होली के मौके पर आप हरा रंग अपनों से बड़ों को लगा सकते हैं। होली के मौके पर लोग नारंगी रंग का उपयोग भी करते हैं। नारंगी रंग खुशियों, मिलनसारिता और खुशहाली का प्रतीक होता है। आप अपने दोस्तों, करीबियों और परिजनों को लगा सकते हैं। पीले रंग का गुलाल बेहद खूबसूरत लगता है। पीला रंग सुंदरता, पूजा और सम्मान का प्रतीक है। लड़कियों के चेहरे पर पीला रंग काफी आकर्षक लगता है। इसलिए बहनों को, महिला दोस्तों को या घर की महिलाओं को पीले रंग का गुलाल लगा सकते हैं।