ढाका में बढ़ रहा भूकंप का खतरा, कैसे बनता जा रहा है एपिक सेंटर?
विशेषज्ञ ने चेतावनी जताई है कि ढाका अब भूकंपीय गतिविधि का नया केंद्र बन रहा है, जहां पिछले 12 सालों में भूकंपों की संख्या बढ़ी है.

4पीएम न्यूज नेटवर्क: बांग्लादेश में हाल ही में आए भूकंप ने तबाही मचाई, जिसमें 10 लोगों की मौत हुई. विशेषज्ञ ने चेतावनी जताई है कि ढाका अब भूकंपीय गतिविधि का नया केंद्र बन रहा है,
जहां पिछले 12 सालों में भूकंपों की संख्या बढ़ी है. ज्यादातर इमारतें भवन संहिता का पालन नहीं करतीं, जिससे जानमाल का भारी जोखिम है. आपातकालीन तैयारी और सुरक्षित खुले स्थानों की कमी भी गंभीर चिंता का विषय है. बांग्लादेश में शुक्रवार को भूंकप ने तबाही मचाई. ढाका और देश के कई हिस्सों में तेज भूकंप के झटके महसूस किए गए. इन झटकों की तीव्रता 5.7 थी. इस भूंकप में 10 लोगों की मौत हो गई. वहीं, 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं. इस बीच चलिए समझते हैं कि कैसे ढाका भूकंप का एपिक सेंटर बन गया है. विशेषज्ञों के अनुसार, ढाका अब तेज भूकंपीय गतिविधि का नया केंद्र बनता जा रहा है. ढाका यूनिवर्सिटी के डेटा के मुताबिक, पिछले 12 साल में 10 भूकंप दर्ज हुए, जबकि पिछले 485 साल में सिर्फ 6 बड़े भूकंप हुए थे.
एपिसेंटर भी बदल रहा है
ढाका यूनिवर्सिटी के भूकंप ऑब्जर्वेटरी (Earthquake Observatory) ने पिछले 485 वर्षों के भूकंपों की लिस्ट बनाई है. पिछले सालों को देखे तो पिछले 12 साल में ज्यादा झटके महसूस किए जा रहे हैं. साथ ही एपिसेंटर (भूकंप का केन्द्र) का स्थान भी बदल गया है. पहले यह अधिकतर सिलहट, चिटगांव और कॉक्स बाजार में होता था. अब यह मनिकगंज, नारायांगंज, मयमनसिंह, डोहार और नारसिंगी की ओर शिफ्ट हो गया है.
भूकंप विशेषज्ञ प्रोफेसर सैयद हुमायूं अख्तर ने समकाल (बांग्लादेशी मीडिया) को बताया, भारतीय प्लेट जमीन के अंदर बर्मा प्लेट के नीचे धंस रही है और कोई नहीं जानता कि यह कब मुक्त होगी. हालांकि, भविष्य में जोखिम बढ़ने के आसार दिखाई दे रहे हैं.
61 सालों में 5 बड़े भूकंप
1869 से 1930 के बीच, इन 61 सालों में इस क्षेत्र में 5 बड़े भूकंप आए, जिनकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 7 से ज्यादा थी. कई विशेषज्ञ इसे खतरनाक संकेत मानते हैं. 2024 के बाद दर्ज 60 भूकंपों में से 31 की तीव्रता 3-4 के बीच थी. बांग्लादेश के बाहर नेपाल, भूटान, भारत और चीन में भी समान भूकंप महसूस किए गए, जो सामने रखता है कि पूरा क्षेत्र अब अस्थिर भूवैज्ञानिक तनाव में है.
भूकंप से इमारतों को खतरा
समस्या यह है कि इस तरह की चेतावनियां कई सालों से सुनाई जा रही हैं. लेकिन, व्यावहारिक कदम नहीं उठाए गए. ढाका के 6 लाख में से दो-तिहाई भवन नियमों के अनुरूप नहीं हैं. नए भवनों के हालात भी यही है. भवन निर्माण कोड लागू करने की बार-बार बातें हुई हैं, लेकिन असल में यह लगभग प्रभावहीन है. आपातकालीन तैयारी भी कमजोर है. जोखिम वाले भवनों की सूची तैयार की गई और 3,200 भवनों की पहचान हुई, लेकिन तब से कोई कदम नहीं उठाया गया. शहर में लाखों लोग नहीं जानते कि वो कितने असुरक्षित भवनों में रह रहे हैं.
“7 तीव्रता वाले भूकंप हर 100-150 साल में आते हैं”
BUET के प्रोफेसर मेहदी अहमद अंसारी ने याद दिलाया कि कचर (1869), श्रीमंगल (1918) और दुर्गापुर (1923) के भूकंपों के बाद इन क्षेत्रों में दरारें बन गई थीं. छोटे झटके भी अब उन्हें हिला रहे हैं. उनके अनुसार, लगभग 7 तीव्रता वाले भूकंप हर 100-150 साल में एक बार आते हैं. बांग्लादेश उस चक्र में गहराई से खड़ा है और ढाका के 25% भवन भूकंप-प्रतिरोधी नहीं हैं.
भूकंप से लाखों लोगों को खतरा
अर्बन रेजिलियंस प्रोजेक्ट के आंकड़े और चिंता बढ़ाते हैं. 1885 में मधुपुर फॉल्ट पर 7.5 तीव्रता का भूकंप आया. इसके बाद 139 साल तक कोई बड़ा भूकंप नहीं आया. अगर अब उसी लाइन पर 6.9 तीव्रता का भूकंप आता है, तो ढाका के कम से कम 8 लाख 64 हजार भवन ध्वस्त हो सकते हैं. दिन में भूकंप आने पर 2 लाख से अधिक लोग मारे जा सकते हैं; रात में यह संख्या 3 लाख से अधिक हो सकती है.
हाउसिंग और पब्लिक वर्क्स सलाहकार आदिलुर रहमान खान ने कहा, असल में इस देश में भूकंप जोखिम से निपटने के लिए कोई समन्वित राष्ट्रीय नीति नहीं है. आपदा प्रबंधन विभाग ने 13 क्षेत्रों को भूकंप-संवेदनशील बताया है. सिलहट का जैन्टापुर और चिटगांव हिल ट्रैक्ट के तीन जिले विशेष रूप से जोखिम में हैं. ये ढाका से सैकड़ों किलोमीटर दूर हैं, फिर भी 7-8 तीव्रता का भूकंप ढाका को भी गंभीर आपदा की ओर धकेल सकता है.
ढाका में सुरक्षित स्थानों की कमी
जाहांगिरनगर यूनिवर्सिटी के शहरी एवं क्षेत्रीय योजना विभाग के प्रोफेसर आदिल मुहम्मद खान ने कहा कि बड़े भूकंप जैसी आपदा में ढाका शहर में सुरक्षित और खुले स्थानों की काफी कमी है. लोग घबराकर सुरक्षित जगहों की ओर भागते हैं, लेकिन ज्यादातर क्षेत्रों में खुले स्थान नहीं मिलते. ढाका का निर्माण और विस्तार इस तरह हुआ है कि ज्यादातर क्षेत्रों में कोई ऐसा खाली स्थान नहीं है जिसकी तरफ भूकंप के समय लोग भागे और वहां सुरक्षित महसूस करें. साथ ही जो थे वो धीरे-धीरे बदल गए.
उन्होंने कहा कि शहरी नियोजन के मूल नियमों के अनुसार, हर क्षेत्र में पैदल दूरी पर एक खेल का मैदान या खुला स्थान होना चाहिए, जो आपदा के समय सामुदायिक स्थान के रूप में इस्तेमाल हो सके. घनी आबादी वाले क्षेत्रों में यह दूरी 500 मीटर के अंदर होनी चाहिए.



