लग गया दांव तो होगा बेड़ा पार
मप्र में कांग्रेस कर सकती है 150 सीटों पर कब्जा
- बीजेपी को एंटीइंकैंबेंसी का होगा नुकसान
- शिवराज से नाराजगी का लाभ उठा सकती है सबसे पुरानी पार्टीे
- कमलनाथ-दिग्विजय की जोड़ी पर दारोमदार
- सिंधिया बन सकते हैं बीजेपी के तारनहार
- कांग्रेस के सामने 24 सीटें बचाने की चुनौती
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
भोपाल। अमेरिका दौैरे पर गए कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने दावा किया आने वाले विधानसभ चुनावों में दो-तीन राज्यों से भाजपा साफ हो जाएगी। इसी तरह कादाव उन्होंने अभी हाल ही में आगामी होने वाले विधानसभाचुनावों के मद्देनजर कांग्रेस की हुई बैठेक केबाद कहा था। इसमें उन्होंने दावा किया था मप्र में उनकी पार्टी 150 सीटें हासिल करेगी। कर्नाट चुनवों मे बढ़े उत्साह के बाद इसतरह का आत्मविश्वास होना लाजिमी है। हालाकि इस तरह बयान देकर राहुल माइंड गेम्स पॉलिटिक्स कर रह हैं। सका कितना लाभ कांग्रेस को मिल पाएगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय में मध्य प्रदेश के नेताओं से मुलाकात के बाद राहुल गांधी ने सोमवार को बड़ा दावा किया था। पत्रकारों से बात करते हुए राहुल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में 150 सीटों पर जीत दर्ज करेगी। मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं। राज्य में इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। राहुल के दावे पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तंज कसा है। चौहान ने कहा कि कांग्रेस खयाली पुलाव पका रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इस पर चुटकी ली है. सिंधिया ने कहा- कांग्रेस की यही कठिनाई है कि बैठक दिल्ली में, बयान दिल्ली में और राज्य मध्य प्रदेश का। मध्य प्रदेश की जनता गुहार लगा रही है आपसे कि दिल्ली बहुत दूर है, कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस मध्य प्रदेश पर सबसे अधिक फोकस कर रही है, यहां भी कर्नाटक की तरह ऑपरेशन लोटस से सरकार गिर गई थी, ऐसे में राहुल के दावों का कई मायने भी निकाले जा रहे हैं। मध्य प्रदेश के 53 जिलों की 230 विधानसभा सीटों को 6 जोन में बांटा गया है. 1. महाकौशल 2. विंध्य 3. ग्वालियर-चंबल 4. बुंदेलखंड 5. मालवा-निमार और 6. भोपाल-नर्मदांचल, सभी 6 जोन को लेकर कांग्रेस-बीजेपी की रणनीति, लोकल चेहरे, जातीय समीकरण और मुद्दों के साथ-साथ पिछले चुनाव के परिणाम का विश्लेषण किया गया है.
कांग्रेस के सामने 24 सीटें बचाने की ही चुनौती है। जबलपुर मेयर चुनाव में भले जीत मिल गई हो, लेकिन लोकल स्तर पर नेताओं की कमी है. जबलपुर, कटनी, डिंडौरी, बालाघाट में अच्छे उम्मीदवारों की तलाश करना भी आसान नहीं होगा. कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़ बीजेपी में जा चुके हैं। 2018 की तुलना में इस बार बीजेपी आदिवासियों को मनाने में काफी हद तक कामयाब भी हुई है, ऐसे में अगर आदिवासी वोटबैंक कांग्रेस की बजाय बीजेपी में शिफ्ट हुआ तो पार्टी की टेंशन भी बढ़ सकती है.। यानी महाकौशल में कांग्रेस के सामने पिछली सीटों को बचाने की ही चुनौती है,यहां 24 से अधिक सीट जीतने का स्कोप कम ही है।
ग्वालियर में बीजेपी सिंधिया दोनों से जंग
ग्वालियर-चंबल की सियासत में 2 महत्वपूर्ण फैक्टर काम करता है- पहला, सिंधिया राजघराना और दूसरा दलित वोटर्स. ग्वालियर-चंबल में ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, दतिया, अशोकनगर, भिंड, श्योपुर और मुरैना जिले की 34 सीटें आती हैं। ग्वालियर-चंबल में 2018 तक कांग्रेस और बीजेपी दोनों की मजबूती की वजह सिंधिया राजघराना था। 2018 में ज्योतिरादिेत्य सिंधिया कांग्रेस में थे और यहां कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया था। कांग्रेस को दलित वोट भी जमकर मिले थे। इस वजह ग्वालियर-चंबल की 34 में से 25 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और सिर्फ 8 सीटें बीजेपी को मिली। कांग्रेस के पास इस बार यहां सिंधिया फैक्टर नहीं है। 2020 में सिंधिया अपने साथ करीब 20 विधायक भी ले गए। कांग्रेस ने ग्वालियर-चंबल में बीजेपी को मात देने के लिए कई स्तर पर मोर्चेबंदी की है।
कमलनाथ का गढ़ है महाकौशल
महाकौशल जोन में 8 जिले जबलपुर, कटनी, डिंडौरी, मंडला, नरसिंहपुर, बालाघाट, सिवनी और छिंदवाड़ा हैं, जिसमें विधानसभा की कुल 38 सीटें आती हैं। मध्य प्रदेश की पॉलिटिक्स में महाकौशल को कमलनाथ का गढ़ माना जाता है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां पर बीजेपी को झटका देते हुए 24 सीटें झटक ली थी,बीजेपी को 13 और अन्य को यहां 1 सीटें मिली थी, यह परिणाम 2013 के बिल्कुल उलट था। 2013 में बीजेपी 24, कांग्रेस 13 और अन्य को 1 सीटों पर जीत मिली थी। महाकौशल के 38 में से 11 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है, जबकि 3 सीटें दलितों के लिए, यानी महाकौशल में आदिवासी वोटबैंक काफी ज्यादा प्रभावी है। इसी को देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस अपनी रणनीति तैयार करने में जुटी है। हाल ही में जबलपुर मेयर सीट पर हारने के बाद बीजेपी ने महाकौशल को लेकर अपनी रणनीति बदली है। पार्टी महाकौशल के कई सीटों पर इस बार सिविल सोसाइटी के लोगों को टिकट देगी. साथ ही प्रोफेशनल फील्ड के लोगों को भी तरजीह देने की तैयारी है। राष्टï्रीय स्वयंसेवक संघ भी इस बार महाकौशल में सियासी घेराबंदी में जुट गई है। हाल ही में संघ ने महाकौशल के प्रांत प्रचार की जिम्मेदारी ब्रजकांत को दी है। 2022 में मोहन भागवत भी यहां संघ कार्यकर्ताओं से मिल चुके हैं।
विंध्य में ठाकुर और ब्राह्मण वोटरों पर नजर
विंध्य का समीकरण ठाकुर और ब्राह्मण वोटरों के ईर्द-गिर्द घूमता है। राजपूत कांग्रेस और ब्राह्मण बीजेपी के कोर वोटर्स माने जाते हैं. अर्जुन सिंह के वक्त विंध्य पर कांग्रेस का एकक्षत्र राज था, लेकिन 2008 के बाद बीजेपी ने जबरदस्त सेंध लगाई 2013 और 2018 में भी यहां बीजेपी का दबदबा रहा, 2018 में बीजेपी ने क्लीन स्विप ही कर लिया. वर्तमान में कांग्रेस के पास सभी 30 सीटों के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की भी भारी कमी है। 2018 में कांग्रेस के बड़े चेहरे विंध्य में चुनाव हार गए. इनमें अजय सिंह और राजेंद्र सिंह जैसे दिग्गज नेता शामिल थे। 2018 में कांग्रेस विंध्य के 30 में से सिर्फ 5 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई. इसके मुकाबले बीजेपी ने 24 सीटों पर जीत हासिल की। विंध्य में कांग्रेस को इस बार प्रदर्शन सुधरने की उम्मीद है।. इतना ही नहीं, खुद की परफॉर्मेंस से ज्यादा बीजेपी के बागी विधायक नारायण त्रिपाठी की नई पार्टी से कांग्रेस को उम्मीद है। त्रिपाठी ने विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर बीजेपी से बगावत करते हुए अलग पार्टी बनाई है। त्रिपाठी विंध्य के सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा की है. त्रिपाठी अगर बीजेपी के वोट काटने में सफल हो जाते हैं तो कांग्रेस को इसका फायदा मिलेगा। 2013 में कांग्रेस विंध्य की 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अगर पार्टी 2013 का परफॉर्मेंस भी दोहरा पाती है तो ये बड़ी सफलता मानी जाएगी।
मालवा में भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को होगा लाभ
2018 में कांग्रेस और बीजेपी के बीच मालवा-निमाड़ में टक्कर का मुकाबला रहा। कांग्रेस को इस बार यहां से बेहतर रिजल्ट की उम्मीद है. वजह है- राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा। कांग्रेस ने किसानों को साधने के लिए मालवा में ही भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी,राहुल की यात्रा 6 जिलों की 14 विधानसभा सीटों से होकर गुजरी थी, इनमें से अधिकांश सीटों पर पिछले चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। हालांकि, कई अन्य फैक्टर्स की वजह से कांग्रेस की राह में रोड़े भी कम नहीं है। मालवा-निमाड़ संभाग में नीमच, मंदसौर, आगर-मालवा, रतलाम, उज्जैन, शाजपुर, देवास, इंदौर, खंडवा, धार, झाबुआ, बुरहानपुर, खरगोन, अलीराजपुर और बड़वानी की 66 सीटें हैं, पिछले चुनाव में मालवा के कई जिलों में कांग्रेस बेहतरीन परफॉर्मेंस नहीं कर पाई। वहीं निमाड़ में बीजेपी फिसड्डी साबित हुई, 2018 में मालवा-निमाड़ की 66 में से 35 सीटें जीतने में कांग्रेस कामयाब हुई थी, 28 पर बीजेपी और सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। मालवा-निमाड़ में कांग्रेस के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ जीतने के लिए जीतू पटवारी, अरुण यादव, सुरेंद्र शेरा और कांतिलाल भूरिया जैसे नेताओं को मैदान में उतारा है, लेकिन ये नेता अब तक अपने क्षेत्र को छोडक़र बाहर परफॉर्मेंस देने में नाकाम साबित हुए हैं।
बुंदेलखंड में बागेश्वर धाम सरकार का प्रभाव
आल्हा की धरती बुंदेलखंड में आस्था फैक्टर इस बार कुछ ज्यादा ही हावी रहने की उम्मीद है। वजह है- छतरपुर का बागेश्वर धाम सरकार. पिछले कुछ महीनों से बागेश्वर धाम सरकार बुंदेलखंड के साथ-साथ पूरे देश में जबरदस्त सुर्खियां बटोरी हैं। बागेश्वर बाबा के कार्यक्रम में बीजेपी के बड़े-बड़े नेता शामिल हो रहे हैं. कार्यक्रम में बागेश्वर धाम के सरकार धीरेंद्र शास्त्री हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर होकर बयान भी देते है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मध्य प्रदेश चुनाव में बागेश्वर सरकार का रोल अहम रहने वाला है। बुंदेलखंड में विधानसभा की कुल 26 सीटें हैं और 2018 में कांग्रेस सिर्फ 7 सीट जीतने में सफल हो पाई थी। बीजेपी को 17 सीटों पर जीत मिली थी। बीजेपी इस बार क्लीन स्विप के मूड में है। कांग्रेस के पास न तो आस्था फैक्टर की काट है और ना ही बागेश्वर सरकार का, हालांकि, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमलनाथ को हनुमान भक्त कहकर प्रचारित कर रही है।
नर्मदांचल में दिग्गी पर सारा दारोमदार
भोपाल-नर्मदांचल में विधानसभा की कुल 36 सीटें हैं, जिसमें से 16 सीटों पर कांग्रेस ने 2018 में जीत हासिल की थी। पिछले चुनाव की तरह इस बार भी यहां नर्मदा में रेत उत्खनन का मुद्दा गर्माया हुआ है। दिग्गी की नर्मदा यात्रा की वजह से कांग्रेस करिश्मा करने में कामयाब हो गई थी, इस बार भी नर्मदांचल और भोपाल की सीटों का जिम्मा दिग्विजय सिंह के पास ही है, भोपाल की 4 सीटों पर कांग्रेस पिछले कई बार से जीत नहीं पाई है। नर्मदापुरम में भी पार्टी की यही स्थिति है। इन इलाकों में शिवराज सिंह काफी सक्रिय है. दिग्गी अगर पिछली बार की तरह करिश्मा करने में कामयाब रहते है तो यहां सीटों की संख्या बढ़ भी सकती है। बीजेपी 2018 में 10 हजार से कम वोटों से हारी हुई सीट पर अलग रणनीति तैयार कर रही है। इन सीटों पर बाहर के उम्मीदवारों को भी उतारने का प्लान है, ऐसे में भोपाल-नर्मदांचल में भी मुकाबला आमने-सामने का ही होने की संभावनाएं हे।