सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, जमानत याचिका पर फैसले में एक भी दिन की देरी का मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिका पर फैसले में देरी को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत याचिका पर कई वर्षों तक फैसला न देने की अदालतों की प्रथा की भी आलोचना की और कहा कि जमानत याचिका पर एक भी दिन की देरी नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली साबित होती है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने शुक्रवार को एक आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार निजी स्वायत्ता की अहमियत पर जोर देता रहा है। बेंच ने कहा कि हम जमानत याचिका को वर्षों तक लंबित रखने की प्रथा को ठीक नहीं मानते।
सुप्रीम कोर्ट की यह राय एक व्यक्ति की याचिका पर आया है। इस शख्स की याचिका पिछले साल अगस्त से ही इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है और मामले में कोई प्रगति भी नहीं हुई है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि इस मामले को हाईकोर्ट ने बिना किसी प्रभावी सुनवाई के कई बार स्थगित कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस मामले पर हाईकोर्ट 11 नवंबर को सुनवाई करेगा। बेंच ने कहा, जिन भी जजों के सामने इस मामले को सुनवाई के लिए रखा गया है हम उनसे अनुरोध करते हैं कि उसी दिन मामले की सुनवाई हो और इस पर विचार हो। किसी भी स्थिति में 11 नवंबर 2024 से दो हफ्ते के समय में इस पर कुछ फैसला लिया जाए।