बिहार में आसमानी बिजली से तबाही, इतने लोगों की हुई मौत

हार में पिछले 48 घंटों के भीतर आसमानी बिजली और गरज से कम से कम 61 लोगों की जान चली गई है। यह घटना बिहार के विभिन्न जिलों में हुई है, जहां अप्रत्याशित मौसम ने भारी तबाही मचाई।

4पीएम न्यूज नेटवर्कः बिहार में पिछले 48 घंटों के भीतर आसमानी बिजली और गरज से कम से कम 61 लोगों की जान चली गई है। यह घटना बिहार के विभिन्न जिलों में हुई है, जहां अप्रत्याशित मौसम ने भारी तबाही मचाई। पिछले कुछ वर्षों में, न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में वज्रपात के कारण होने वाली मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई है। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और मौसम के अनियंत्रित व्यवहार के चलते ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है।स्थानीय प्रशासन ने पीड़ित परिवारों को सहायता राशि देने का आश्वासन दिया है और सावधानी बरतने की अपील की है। वहीं, लोगों को बिजली गिरने के दौरान सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी गई है।

हाल के कुछ बरसों में न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में वज्रपात से हुई तबाही और मौत का आंकड़ा काफी तेजी से बढ़ा है. अगर बिहार की बात करें तो 2020 में जहां एक साल में 83 मौतें हुईं. तो अगले साल यानी 2021 में ये बढ़कर 280 पहुंच गया. 2022 में 329 जबकि 2023 में 275 मौतें आसमानी बिजली की वजह से बिहार में हुईं. वहीं, इस साल अब तक यानी साल के चार महीने भी समाप्त नहीं हुए हैं, और 82 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. ये तो हुई बिहार की बात. पूरे देश के आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं. साल दर साल इस पैमाने पर तेजी से हो रही बढ़ोतरी भी काफी चिंताजनक है. आइये पूरे देश की स्थिति और बिजली गिरने के मामलों में आई तेजी के पीछे की वजहों को समझें.

सालाना करीब 2 हजार मौत हो रही
एनसीआरबी के आंकड़ों के आधार पर किए गए एक अध्ययन से पिछले साल मालूम चला कि 2010 से लेकर 2020 का एक दशक बिजली गिरने की घटनाओं के मामले में काफी भयावह रहा. 1967 से लेकर 2002 के बीच जहां एक राज्य विशेष में औसत तौर पर 38 मौतें होती थीं. वहीं, 2003 से लेकर 2020 के बीच ये संख्या बढ़कर 61 पहुंच गई. 1986 में जहां राज्यों में होने वाली औसत ऐसी मौतों की संख्या 28 थी, वो 2016 में यानी तीन दशक में बढ़कर तीन गुना हो गई. 2016 में औसत तौर पर एक राज्य में 81 मौतें हुईं.

एनसीआरबी के अलावा ओडिशा के फकीर मोहन विश्वविद्यालय ने भी एक अध्ययन किया. जिस से पता चला कि 1967 से 2020 के बीच बिजली गिरने से 1 लाख 1 हजार 309 मौतें भारत में हुईं. यानी करीब दो हजार मौतें सालाना इस वजह से हो रही हैं. अगर ठीक-ठीक कहा जाए तो औसतन पिछले पांच दशकों में भारत में सालाना 1 हजार 876 मौतें दर्ज हो रही हैं. ओडिशा के रिपोर्ट में भी 2010 से 2020 के बीच आसमानी बिजली से होने वाली मौतों पर चिंता जताया गया था. सबसे ज्यादा ऐसी मौतों से प्रभावित होने वाले राज्य – मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और ओडिशा रहे हैं.

एक्शन प्लान, पॉलिसी की कमी भी वजह
पिछले साल आए रिपोर्ट ही में कहा गया था कि चक्रवात, बाढ़, तूफान और सुखाड़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं को लेकर भारत की तैयारी तो बेहतर हुई है मगर लू और आकाशीय बिजली जैसी घटनाओं पर रोक के लिए कम तैयार है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया था कि देश के किन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आकाशीय बिजली को लेकर नीति और एक्शन प्लान नहीं है. मालूम चला था कि देश के 36 राज्य और केंद्र शासित में से केवल 7 राज्यों में इसे लेकर एक्शन प्लान है. सबसे ज्यादा इस समस्या से जूझने वाले राज्य – मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु और सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन – एनडीएमए के दिशा-निर्देशों के बाद भी एक्शन प्लान नहीं बनाया गया.

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