मुश्किलों में CEC Gyanesh Kumar, CM Mamata ने खोल दिया मोर्चा, बंद होगा ‘SIR’!

दोस्तों, चुनाव आयोग, जो हमारे देश में निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी निभाने के लिए जाना जाता है...आज बहुत ही गंभीर और पहले कभी न देखे गए खतरे में है..

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों, चुनाव आयोग, जो हमारे देश में निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी निभाने के लिए जाना जाता है…आज बहुत ही गंभीर और पहले कभी न देखे गए खतरे में है…मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर लगे गंभीर आरोपों और उनके ख़िलाफ़ विपक्षी दलों द्वारा महाभियोग चलाने की तैयारी ने…

देश की चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है…जहां ये सियासी बवंडर सिर्फ़ दिल्ली के गलियारों तक सीमित नहीं है…बल्कि बिहार में कथित वोट चोरी और SIR प्रक्रिया से उपजा है….लेकिन अब ये समस्या इतनी बड़ी हो गई है कि अब पश्चिम बंगाल में भी चुनाव ड्यूटी करने वाले छोटे कर्मचारियों की जान जा रही है….

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को लिखा गया लंबा-चौड़ा पत्र इस पूरे झगड़े का अभी तक का सबसे बड़ा धमाका है….उन्होंने अपने पत्र में राज्य में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न यानी SIR प्रक्रिया को तुरंत रोकने की माँग करते हुए इसे अव्यवस्थित, दबाव डालने वाली और खतरनाक बताया है…ममता बनर्जी का साफ आरोप है कि बिना किसी बुनियादी तैयारी, सही प्लानिंग और साफ़ कम्युनिकेशन के इस प्रक्रिया को जिस तरह से अधिकारियों और नागरिकों पर थोपा जा रहा है…उसने पहले दिन से ही सिस्टम को पंगु बना दिया है…

ये आरोप केवल प्रशासनिक लापरवाही तक सीमित नहीं है….बल्कि ये बंगाल की जटिल चुनावी राजनीति और मानवीय त्रासदी से जुड़ा हुआ है…ये मामला केवल कागजी गलती या लापरवाही का नहीं है….बल्कि बंगाल के तीखे राजनीतिक खेल और वहाँ मरते लोगों की असली पीड़ा से जुड़ा हुआ है……..TMC का दावा है कि SIR के नाम पर BLOs पर काफी ज्यादा दबाव डाला जा रहा है…..जिससे तनाव और ज्यादा काम होने की वजह से कई BLO अपनी जान गँवा चुके हैं…कई मीडिया रिपोर्ट में तो ये आंकड़ा 28 के करीब बताया गया है…जिसने इस मुद्दे को एक मानवीय संकट में बदल दिया है…ममता बनर्जी का मोर्चा खोलना इस बात का संकेत है कि चुनावी सुधार की आड़ में चल रही इस प्रक्रिया को राज्य सरकार ने अपनी जनता और अधिकारियों के लिए घातक मान लिया है…

दोस्तों, ये पहली बार नहीं है जब किसी संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारी की कार्यशैली पर इतने सीधे और सख़्त सवाल उठाए गए हों…..लेकिन जिस तरह से इस प्रशासनिक प्रक्रिया को राजनीतिक आरोपों से जोड़ा गया है…..उसने स्थिति को खतरनाक बना दिया है….और ये सारा फसाद असल में बिहार के सियासी खेल से शुरू हुआ है……..जहां हाल ही में हुए चुनावों में INDIA गठबंधन की ओर से वोट चोरी का हवाला देते हुए सीधे तौर पर चुनाव आयोग और ज्ञानेश कुमार की कार्यशैली पर सवाल उठाए गए…क्योंकि, जिस तरह से तमाम रैलियों और सभाओं में INDIA गठबंधन के पक्ष में जनता की भारी भीड़ दिखाई दी…और जो रिजस्ट सामने आए…उसने सभी को चौंका दिया….जिसके बाद कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बिहार में बड़े पैमाने पर वोट चोरी और लाखों मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से ग़ायब होने का आरोप लगाया था…ये आरोप सीधे तौर पर SIR प्रक्रिया से जुड़ा था…

चुनाव आयोग के मुताबिक, SIR, जिसका मकसद वोटर लिस्ट को सही बनाना है…वो विपक्ष के निशाने पर आ गया…विपक्षी दलों का दावा है कि इस SIR की आड़ में जानबूझकर उन ख़ास वर्गों के वोट काटे गए जो सत्तारूढ़ दल के ख़िलाफ़ थे…उनका कहना था कि SIR के दौरान फॉर्म-6, 7 और 8 के ज़रिए नाम जोड़ने, हटाने और सुधारने की प्रक्रिया में भारी धांधली हुई…बिहार में बड़े पैमाने पर मतदाता सूची से नाम हटने के आरोप लगे…जिसे विपक्ष ने लोकतंत्र पर हमला और चुनावी परिणाम को प्रभावित करने की साज़िश करार दिया…

इन आरोपों को ज्ञानेश कुमार ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूरी तरह ख़ारिज करते हुए राहुल गांधी को शपथपत्र पर माफ़ी माँगने तक की चुनौती दी थी….जिससे टकराव और बढ़ गया…और बिहार की राजनीतिक तपिश ने ही ज्ञानेश कुमार को इंडिया गठबंधन के महाभियोग अभियान के निशाने पर लाकर खड़ा कर दिया…ऐसे में अब सीएम ममता बनर्जी का SIR के खिलाफ मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को लिखा पत्र बिहार की पृष्ठभूमि में कांग्रेस के उस निर्णायक राजनीतिक वार का हिस्सा है….जिसकी तैयारी पिछले कुछ समय से चल रही है……..कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के प्रमुख घटक दलों ने ज्ञानेश कुमार के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार करना शुरू कर दिया है……

दोस्तों, ये अभियान सिर्फ़ बिहार की हार के ठीकरा फोड़ने का मसला नहीं है….बल्कि एक राजनीतिक संदेश देने की व्यापक रणनीति है…विपक्षी दलों का मानना है कि चुनाव आयोग ने अपनी निष्पक्षता खो दी है और ज्ञानेश कुमार सत्तारूढ़ दल के इशारे पर काम कर रहे हैं……..महाभियोग का प्रस्ताव लाकर विपक्ष पूरे देश को बताना चाहता है कि लोकतंत्र ख़तरे में है और संवैधानिक संस्थाएं दबाव में काम कर रही हैं…….ये कदम इंडिया गठबंधन की एकजुटता को भी दिखाता है….जब SIR के मुद्दे पर कांग्रेस के साथ कई दल विपक्षी खेमे के साथ खड़े दिख सकते हैं…चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाने की तैयारी…..जोकि भारतीय चुनावी इतिहास में एक ऐसी अनोखी और चौंकाने वाली घटना हुई है…जिसने चुनाव आयोग के सम्मान और विश्वसनीयता को बहुत गहरा झटका दिया है….

बिहार में SIR प्रक्रिया पर लगे वोट चोरी के आरोपों के बाद…अब पश्चिम बंगाल में इसी प्रक्रिया ने एक मानवीय त्रासदी का रूप ले लिया है…ममता बनर्जी और TMC ने CEC ज्ञानेश कुमार को लिखे पत्र में साफ रूप से कहा है कि इस प्रक्रिया ने BLOs और अन्य कर्मचारियों पर असहनीय तनाव पैदा कर दिया है……BLOs, जो स्थानीय शिक्षक, सरकारी कर्मचारी या आँगनवाड़ी कार्यकर्ता होते हैं…उनपर बिना किसी पहले की तैयारी और प्रशिक्षण के ज्यादा काम का दबाव के साथ SIR का काम थोपा गया…आरोप है कि उन्हें अपने रोज़मर्रा के काम के अलावा…….तय समय सीमा में घर-घर जाकर सर्वे करने, फॉर्म भरने और डेटा अपलोड करने का भारी दबाव झेलना पड़ा…TMC का आरोप है कि इसी दबाव के कारण कई अधिकारियों की तबियत बिगड़ी और कुछ ने आत्महत्या तक कर ली….यानी ये काम के बोझ से इन BLOs की मौत हुई…

इस तरह, SIR प्रक्रिया, जो बिहार में राजनीतिक धांधली के आरोपों का केंद्र थी…..वो पश्चिम बंगाल में मानवीय अधिकार और जीवन के अधिकार के उल्लंघन के आरोपों का केंद्र बन गई है…ये दो अलग-अलग राज्यों में एक ही प्रशासनिक प्रक्रिया के दो डरावने परिणाम हैं….जिसने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और पूरी चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर दिया है…जिससे बच पाना आसान नहीं होगा……ज्ञानेश कुमार पर महाभियोग की तैयारी, ममता बनर्जी का निर्णायक पत्र, बिहार में वोट चोरी के आरोप और पश्चिम बंगाल में BLOs की मौतों की त्रासदी……ये सब चीजें एक साथ मिलकर हमारे लोकतंत्र को अंदर से तोड़ देने वाली बहुत बड़ी तबाही तैयार कर रही हैं…..

चुनाव आयोग इसलिए मज़बूत है….क्योंकि संविधान ने इसे पूरी आज़ादी दी है कि कोई सरकार इसे डरा या दबा नहीं सकती…अनुच्छेद 324 इसे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की शक्ति देता है…लेकिन जब आयोग के प्रमुख पर ही एक सत्तारूढ़ दल के लिए काम करने के आरोप लगते हैं….तो इस संवैधानिक आजादी पर गहरा संदेह पैदा होता है…महाभियोग का अभियान….ये साबित करता है कि चुनाव आयोग का राजनीतिकरण हो चुका है…….ये मुद्दा आने वाले संसद सत्र को पूरी तरह से बाधित कर सकता है और चुनावी सुधारों की माँग को और मज़बूत करेगा…

SIR प्रक्रिया की डिज़ाइन पर सवाल उठना एक गंभीर प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है…अगर एक प्रशासनिक कवायद दो बड़े राज्यों में……जहां एक जगह वोटर लिस्ट में धांधली और दूसरी जगह मानवीय क्षति…जैसे गंभीर आरोप पैदा कर रही है….तो आयोग को न केवल प्रक्रिया पर पुनर्विचार करना होगा……बल्कि अपनी संचार और प्रशिक्षण प्रणाली को भी दुरुस्त करना होगा… वहीं ज्ञानेश कुमार के लिए आने वाले दिन बेहद चुनौतीपूर्ण हैं…उन्हें न केवल अपनी व्यक्तिगत ईमानदारी को साबित करना होगा….बल्कि चुनाव आयोग की उस संस्थागत विश्वसनीयता को भी बचाना होगा…..जो पिछले कई दशकों में बनाई गई है…अगर चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर जनता का भरोसा टूटता है….तो ये भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा होगा…इस पूरे मामले ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं….जिसकी जाँच उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के उल्लंघन के आरोपों से जुड़ी है…

कुल मिलाकर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार आज पूरी तरह से घिरे हुए हैं…..एक तरफ़ संसद में महाभियोग का ख़तरा है…..तो वहीं दूसरी तरफ़ ज़मीनी स्तर पर प्रशासनिक विफलता और SIR की वजह से लोगों की मौत के आरोप…ये संकट केवल एक अधिकारी का नहीं, बल्कि उस संस्था का है….जिस पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का भविष्य टिका है…इस पूरे मामले का पूरा परिणाम यही है कि भारतीय राजनीति आज एक ऐसे दौर से गुज़र रही है…….जहाँ संस्थाओं की मर्यादा और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की सीमाएं धुंधली हो चुकी हैं……….ऐसे में अब देखना अहम होगा कि पहले बिहार और अब पश्चिम बंगाल में जिस तरह से SIR को लेकर सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि….अगर इस रास्ते को बिना देर किए ठीक नहीं किया गया…तो सिस्टम, अधिकारियों और नागरिकों के लिए इसके नतीजे ऐसे होंगे, जिन्हें बदला नहीं जा सकता…..इसपर मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार की ओर से क्या सफाई सामने आएगी?….

Related Articles

Back to top button