संसद में विपक्ष का बढ़ता दबदबा, बैकफुट पर मोदी सरकार!
जब से केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार NDA की सरकार का गठन हुआ है...तब से एक पैटर्न उभरकर सामने आया है...और वो पैटर्न है...

4पीएम न्यूज नेटवर्क: जब से केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार NDA की सरकार का गठन हुआ है…तब से एक पैटर्न उभरकर सामने आया है…और वो पैटर्न है…बार-बार सरकार को अपने फैसलों पर बैकफुट पर आना पड़ रहा है…यानी मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद से लगातार ऐसे हालात बन रहे हैं…
जहां सरकार को विपक्ष के दबाव में अपने कदम पीछे खींचने पड़ रहे हैं…दरअसल, संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है और इस सत्र के दौरान एक के बाद एक मुद्दों पर केंद्र सरकार को बैकफुट पर आते देखा जा रहा है…चाहे चंडीगढ़ प्रशासन पर केंद्र के कब्जे को लेकर लाया जाने वाला बिल हो या फिर SIR प्रक्रिया पर संसद में होने वाली चर्चा…..हर बार विपक्ष की मांगों के आगे सरकार को झुकना पड़ रहा है…
चंडीगढ़ का बिल फिलहाल टल गया और SIR पर चर्चा की तारीखें भी तय कर दी गईं…यानी विपक्ष जो चाहता था…सरकार उसी रास्ते पर चलने को मजबूर दिख रही है…ये घटनाएं दिखाती हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है…जहाँ अब विपक्ष की आवाज़ को पहले की तुलना में ज्यादा गंभीरता से लिया जा रहा है…
इसी बीच एक और फैसला सामने आया….जिसने सरकार की स्थिति को और असहज कर दिया…और वो फैसला था…नागरिकों की जासूसी से जुड़े संचार साथी मोबाइल ऐप का…जिसे हर मोबाइल फोन में प्री-इंस्टॉलेशन को लेकर सरकार ने तीन दिनों तक अलग-अलग बयान दिए और आखिर में फैसला वापस लेना पड़ा……..जब सरकार ने अपने आदेश को वापस लिया, तो विपक्ष के आरोपों को लेकर ये माना गया कि उनमें कहीं न कहीं दम तो था….यही वजह है कि संसद के भीतर विपक्ष खुद को मजबूत स्थिति में और सरकार को डिफेंस मोड में दिखाने लगा है….
इस स्थिति की एक बड़ी वजह ये भी है कि मौजूदा एनडीए सरकार दो सहयोगी दलों की बैसाखियों पर टिकी हुई है….वहीं, विपक्ष की एकजुटता और हर मुद्दे पर एक सुर में आवाज उठाने ने भी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं…..संसद में शीतकालीन सत्र के दौरान जितने भी दिन गुज़रे, विपक्षी सांसदों ने संसद के बाहर लगातार प्रदर्शन किए…जिससे सरकार पर बढ़ता दबाव साफ दिखा…..यही कारण है कि आज विपक्ष खुद को विजेता और सरकार को लगातार हारते हुए पक्ष के रूप में पेश कर रहा है….इसी बैकड्रॉप में आज हम अपनी इस स्पेशल रिपोर्ट में बात करेंगे मोदी सरकार की उन लगातार हार की….जिनका फायदा विपक्ष उठाता दिखाई दे रहा है…
और आज बात उस मुद्दे की भी होगी….जिसने मोदी सरकार को शायद सबसे ज्यादा बैकफुट पर धकेला दिया है….यानीकि संचार साथी ऐप की अनिवार्य प्रीइंस्टॉलेशन के बारे में……जिसे लेकर विपक्ष का दावा है कि सरकार को अपने ही फैसले से पीछे हटना पड़ा….यानी सरकार को विपक्ष के दबाव के आगे झुकना पड़ा……..मामला तब तूल पकड़ गया जब केंद्र सरकार ने मोबाइल फोन निर्माताओं को आदेश दिया कि वो अपने सभी नए स्मार्टफोनों में संचार साथी नाम का सरकारी ऐप पहले से इंस्टॉल करके बेचें…..
लेकिन दो दिन बाद टेलीकॉम डिपार्टमेंट ने बयान जारी किया कि बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए अब प्रीइंस्टॉलेशन की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है….विभाग ने ये भी बताया कि अब तक लगभग 1 करोड़ 40 लाख लोग ऐप डाउनलोड कर चुके हैं और सिर्फ 48 घंटे में डाउनलोड की संख्या में 10 गुना वृद्धि हुई है….सरकार ने सफाई के तौर पर कहा कि जब लोग खुद से ऐप डाउनलोड कर रहे हैं…तो फिर प्रीइंस्टॉल करने की जरूरत नहीं…..लेकिन अब सवाल ये उठता है कि सरकार ने इतना बड़ा यू-टर्न क्यों लिया?…..और क्या ये यू-टर्न सच में विपक्ष के दबाव का नतीजा था?….
लेकिन पहले जानते हैं कि विवाद शुरू हुआ कैसे….तो 28 नवंबर को दूरसंचार विभाग ने मोबाइल निर्माताओं को आदेश जारी किया था कि भारत में बिकने वाले सभी नए मोबाइल फोनों में संचार साथी ऐप को अनिवार्य रूप से प्रीइंस्टॉल किया जाए……इतना ही नहीं, पुराने फोनों पर भी सॉफ्टवेयर अपडेट के ज़रिए ये ऐप भेजा जाना था और उसे न तो डिलीट किया जा सकता था, न डिसेबल……1 दिसंबर को जब ये नोटिफिकेशन सार्वजनिक हुआ…तो विपक्ष ने इस मुद्दे को जासूसी का प्रयास बताते हुए रसातल पर ला दिया…..
कांग्रेस, शिवसेना (UBT), समाजवादी पार्टी, TMC और लगभग हर विपक्षी दल ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए….कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि ये सीधा-सीधा लोगों की प्राइवेसी पर हमला है….ये एक स्नूपिंग ऐप है और इससे नागरिकों की निगरानी का रास्ता खुल जाता है….उन्होंने सरकार पर तानाशाही थोपने का आरोप लगाया और कहा कि साइबर धोखाधड़ी रोकने का प्रयास होना चाहिए….लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सरकार हर नागरिक की निजी बातचीत पर नजर रखे…
प्रियंका गांधी ने साफ कहा कि नागरिकों को अपनी निजी बातें करने का अधिकार है…बिना इस डर के कि सरकार हर संदेश पर नजर रख रही है….उन्होंने कहा कि ये सिर्फ एक ऐप की बात नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम को तानाशाही बनाने की कोशिश है….प्रियंका गांधी की ये प्रतिक्रिया विपक्ष के तेवरों को और आक्रामक बना गई….विवाद बढ़ता देख केंद्रीय संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में सफाई दी…..
सिंधिया ने कहा कि ये ऐप न तो जासूसी करता है, न ही जासूसी के लिए बनाया गया है…उनका कहना था कि मंत्रालय ने लोगों के फीडबैक को देखते हुए आदेश में बदलाव किया है…सिंधिया ने कहा कि संचार साथी एक कस्टमर प्रोटेक्शन ऐप है…और अगर किसी को इसे फोन से हटाना हो तो वो हटा सकता है….उन्होंने इसे ऑप्शनल बताया और कहा कि अगर कोई रजिस्टर नहीं करेगा…तो ऐप एक्टिव ही नहीं होगा….
लेकिन समस्या यहीं थी….मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन में साफ लिखा था कि ये ऐप डिलीट नहीं किया जा सकता….जबकि सिंधिया संसद के बाहर कह रहे थे कि ऐप डिलीटेबल है…….आदेश लिखित था, बयान मौखिक…….इसलिए विपक्ष ने कहा कि सरकार झूठ बोल रही है और भ्रम फैला रही है….विपक्ष के इस विरोध ने सरकार और सवालों से घेर दिया….मामला इतना गरमा गया कि सरकार के भीतर ही ये साफ होने लगा कि आगे दबाव झेलना मुश्किल होगा…
इसके बाद सरकार की तरफ से नया नोटिफिकेशन आया….जिसमें अनिवार्यता हटाने की घोषणा कर दी गई…यानी विपक्ष के आरोपों और दबाव के बाद सरकार को अपना फैसला पलटना पड़ा….लेकिन असली वजह सिर्फ विपक्ष नहीं था…असली झटका सरकार को तब लगा जब दुनिया के दो सबसे बड़े ऑपरेटिंग सिस्टम…..Apple का iOS और Google का Android ने इस आदेश को मानने से साफ इंकार कर दिया…
दोनों कंपनियों ने प्राइवेसी और सिक्योरिटी के आधार पर कहा कि वो किसी सरकारी ऐप को अनिवार्य रूप से प्रीइंस्टॉल नहीं कर सकते और न ही ऐसा ऐप जिसे यूज़र डिलीट न कर सके….इसका सीधा मतलब ये था कि सरकार का आदेश तकनीकी रूप से भी लागू नहीं हो सकता था…जब सबसे बड़ी कंपनियों ने ही मना कर दिया….तो सरकार के पास पीछे हटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा….
इस तरह सरकार का ये फैसला न सिर्फ विपक्ष की एक बड़ी जीत बन गया…बल्कि ये संदेश भी गया कि सरकार अपने ही आदेश पर टिक नहीं सकी…विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर कहा कि सरकार स्वीकार कर रही है कि उसका फैसला गलत था और ये ऐप वास्तव में निगरानी का हथियार बन सकता था…दूसरी ओर सरकार ने इसे जनता के फीडबैक के आधार पर लिया निर्णय बताया….लेकिन राजनीतिक हलकों में ये माना गया कि यू-टर्न लेने का मेन कारण विपक्ष का दबाव और टेक कंपनियों का ठंडा रुख था…
कुल मिलाकर, संचार साथी ऐप का मामला उस दौर का प्रतीक बन गया है…जहां केंद्र सरकार बार-बार संकटों का सामना कर रही है और विपक्ष हर मुद्दे पर उसे घेरने में सफल दिख रहा है…चंडीगढ़ प्रशासन का मामला, SIR पर चर्चा, और अब ये ऐप विवाद…इन सभी ने ये धारणा बना दी है कि मौजूदा कार्यकाल में सरकार की पकड़ कमजोर हुई है…जबकि विपक्ष पहले से ज्यादा एकजुट और आक्रामक है….
संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष की एकजुटता और लगातार विरोध प्रदर्शनों ने ये साफ कर दिया है कि आने वाले दिनों में सरकार के लिए स्थितियां और कठिन हो सकती हैं……ऐसे में अब ये मामला सिर्फ एक ऐप का नहीं…बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच बदलते समीकरणों का संकेत बन चुका है….जहां मोदी सरकार अब विपक्ष की एकजुटता के चलते बैकफुट पर आती दिखाई दे रही है………….



