ईरान-इज़राइल संघर्ष में भारत के मित्र और शत्रु एक साथ, रूस-पाकिस्तान खड़े ईरान के साथ
जियोपॉलिटिक्स में कहा जाता है कि कोई किसी का नहीं होता है. यहां जो होता है सब अपने-अपने स्वार्थ के लिए होता है. ईरान और इजराइल की जंग में ये साफतौर पर दिख भी रहा है.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः पश्चिम एशिया में जारी ईरान- इजराइल संघर्ष में भारत के रणनीतिक मित्र और पारंपरिक विरोधी एक ही पाले में खड़े दिखाई दे रहे हैं। रूस और पाकिस्तान, जो हाल ही में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े थे, अब ईरान को समर्थन दे रहे हैं। इस जियोपॉलिटिकल बदलाव ने भारत के लिए एक जटिल कूटनीतिक स्थिति उत्पन्न कर दी है।
जियोपॉलिटिक्स में कहा जाता है कि कोई किसी का नहीं होता है. यहां जो होता है सब अपने-अपने स्वार्थ के लिए होता है. ईरान और इजराइल की जंग में ये साफतौर पर दिख भी रहा है. भारत का पक्का दोस्त रूस जो पाकिस्तान के साथ तनाव में उसके साथ खड़ा था, वो इस वक्त ईरान को मजबूत कर रहा है. वहीं, पाकिस्तान भी ईरान की ताकत बढ़ा रहा है. यानी इस जंग में भारत के दोस्त और दुश्मन साथ में खड़े हैं.
आज तारीख है 17 जून. 40 दिन पीछे जाइए. 7 मई आएगी. भारत और पाकिस्तान आमने-सामने थे. भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर का आगाज किया था. भारतीय सेना ने पाकिस्तान और PoK में कई आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था. आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई से पाकिस्तान बौखला गया था. उसने भारत पर ड्रोन से हमले शुरू कर दिए. पाकिस्तान की इन कोशिशों को रूस की मिसाइल सिस्टम S-400 ने नाकाम कर दिया. उसके कई ड्रोन मार गिराए गए. पाकिस्तान की नापाक हरकत का जवाब भारत ने उसपर हमले करके दिया. हिंदुस्तान की ताबड़तोड़ कार्रवाई में पाकिस्तान के कई एयरबेस तबाह हो गए. भारत से मार खाने के बाद पाकिस्तान अब इजराइल से पंगा ले रहा है और ईरान के लिए आवाज उठा रहा है.
कैसे हैं ईरान और पाकिस्तान के संबंध?
पाकिस्तान और ईरान के संबंध कैसे रहे, ये जानने के लिए हमें कई साल पीछे जाना होगा. पाकिस्तान की सीमा ईरान से लगती है. दोनों इस्लामिक देश हैं. पाकिस्तान सुन्नी बहुल देश है तो ईरान शिया देश है. दोनों 904 किमी सीमा साझा करते हैं. पाकिस्तान को मान्यता देने वाला ईरान पहला मुस्लिम देश था. 19 फरवरी 1950 को ईरान और पाकिस्तान एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने 1949 में ईरान की राजधानी तेहरान का दौरा किया था, जबकि ईरान के शाह 1950 में पाकिस्तान गए थे.
इसी तरह पाकिस्तान और ईरान ने 1955 में अमेरिका के नेतृत्व वाले बगदाद समझौते का हिस्सा बन गए. 1965 और 1971 में भारत से लड़ाई के दौरान पाकिस्तान को ईरान ने पूर्ण राजनीतिक और राजनयिक समर्थन दिया था. हालांकि 1979 की इस्लामिक क्रांति ने दोनों देशों के रिश्ते में कड़वाहट ला दी. इसके बाद से दोनों देशों के रिश्तों में उतार-चढ़ावा आया, लेकिन ईरान के मुश्किल दौर में पाकिस्तान उसके साथ खड़ा रहा.
रूस और ईरान के रिश्ते
रूस ईरान के साथ मजबूती के साथ है. रूस और ईरान आर्थिक और ऊर्जा मामलों में एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. लेकिन पश्चिमी दुनिया से दोनों मुल्कों की अदावत उन्हें अकसर एक-दूसरे के करीब ले आती है. मॉस्को और तेहरान एक-दूसरे के दुश्मन और दोस्त दोनों रहे हैं. दोनों के संबंधों में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं.
रूस और ईरान की प्रतिद्वंद्विता ऐतिहासिक रही है. ईरानी लोग रूस को संदेह की नजर से देखते हैं क्योंकि ईरान के घरेलू मामलों में रूसियों की दखलंदाजी का पुराना और लंबा इतिहास रहा है. 19वीं सदी में और 20वीं सदी की शुरुआत में ईरान को कई बार रूस के हमलों का सामना करना पड़ा. साल 1979 की ईरानी क्रांति के लक्ष्यों में एक मकसद सोवियत संघ का विरोध करना भी था. लेकिन साल 2007 में पुतिन की ईरान यात्रा से दोनों देशों के रिश्तों में गर्माहट आनी शुरू हुई.



