फिर बाहर आए किसानों से जुड़े मुद्दे प्रधानमंत्री मोदी को करेंगे परेशान !

  • पूरे देश के अन्नदताओं का दर्द समेटे किसान
  • सीएम स्टालिन ने एनडीए सरकार को घेरा
  • किसानों केमामले में भाजपा संवेदनहीन
  • चुनावी सीजन में और ज्यादा तीखी होकर वापस लौट रही है अन्नदाताओं की मांग

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। आखिर क्या कारण है कि किसानों से जुड़े सवाल? पीएम मोदी का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। इस बार पूरे देश के अन्नदाताओं का दर्द समेटे किसानों की आवाज तमिलनाडु से उठी है। मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने किसानों के मुद्दों को पीएम मोदी के सामने ऐसे अंदाज में उठाया है जैसे वह सिर्फ सवाल नहीं बल्कि सीधी राजनीतिक चार्जशीट सौंप रहे हों।
पहली नजर में यह सवाल सिर्फ राज्य और केंद्र सरकार का संवाद लगते हैं लेकिन असल में यह उस बड़ी तस्वीर का हिस्सा है जिसमें किसान राजनीति मोदी सरकार का पीछा नहीं छोड़ रही। मंच चाहे दक्षिण का हो या फिर उत्तर का चुनावी मैदान किसानों से जुड़ी समस्याओं का सामना पीएम मोदी को हर जगह करना पड़ रहा है।

पूरी ताकत से खेला किसान कार्ड

सीएम स्टालिन ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा है कि कृषि सहायता में कटौती धान चावल खरीद की अनिश्चितता और किसानों पर बढ़ता कर्ज यह तीनों मुद्दे तमिलनाडु की जमीनी हकीकत हैं और केंद्र सरकार को जवाब देना ही होगा। सीएम स्टालिन ने इस बार पीएम मोदी की यात्रा से ठीक पहले पूरी ताकत से किसान कार्ड खेला है। उनके इस बयान के बाद किसान अब किसी एक राज्य का मुद्दा नहीं रहा। एमएसपी से लेकर सब्सिडी और कर्ज राहत तक हर राज्य में गुस्सा और मांगें बढ़ी हैं। और यही वह कंटीन्यूअस प्रेशर पॉइंट है जो मोदी सरकार को हर यात्रा हर भाषण और हर चुनाव में परेशान कर रहा है। स्टालिन का यह प्रहार सिर्फ तमिलनाडु की राजनीति नहीं यह एक बड़ा संकेत है कि केंद्र राज्य रिश्तों में किसान अब सबसे निर्णायक और सबसे असहज अध्याय बन चुका है। पीएम मोदी तमिलनाडु में निवेश विकास और योजनाओं की बात करेंगे लेकिन जमीन पर किसान ही वह बात है जो हर बार उनकी यात्रा के पहले सवाल बनकर सामने खड़ा हो जाता है।

अन्नदाताओं का भला कब होगा?

सीएम स्टालिन तीन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया है जो सीधे तमिनाडु के किसानो से रिलेटेड हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने पूरे देश के किसानों से जुड़े सवालों को भी उकेरा है जैसे केंद्र की कृषि योजनाओं में राज्य की हिस्सेदारी, धान-चावल खरीद का पेंच और किसानों की कर्ज माफी का दबाव। यह तीनों एक साथ मिलकर सिर्फ तमिलनाडु की आवाज नहीं बल्कि देशभर के किसान मोर्चे का वह प्रतिध्वनि हैं जो चुनावी मौसम में और ज्यादा तीखी होकर लौट रही है। दक्षिण में द्रविड़ राजनीति और उत्तर में किसान यूनियनों की अलग अलग भाषा हो सकती है लेकिन सभी कि शिकायत एक ही है कि मालिक अन्नदाताओं का भला करो।

पहली मांग

सीएम स्टालिन ने मांग की कि तमिलनाडु को चालू खरीफ 2025-2026 सीजन के लिए 16 लाख मीट्रिक टन चावल के लक्ष्य को खरीफ सीजन के वास्तविक उत्पादन और खरीद स्तर के अनुसार संशोधित करने की अनुमति देने के लिए आवश्यक आदेश जारी किए जाएं।

दूसरी मांग

सीएम स्टालिन ने नमी की मात्रा का आकलन करने के लिए केंद्रीय टीमों के तमिलनाडु आने के बाद, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग भारत सरकार द्वारा नमी की मात्रा को 17 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करने के आदेश जारी किये जाने की मांग की है।

तीसरी मांग

सीएम स्टालिन ने फोर्टिफाइड राइस कर्नेल के 25 किलोग्राम के मौजूदा पैकिंग आकार को बढ़ाकर 50 किलोग्राम करने की अनुमति देने की मांग की है। उन्होंने सैंपल लाट के आकार को 10 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 25 मीट्रिक टन किये जाने का अनुरोध पीएम मोदी से किया है। उन्होंने कहा हे कि यह मांगे अत्यावश्यक प्रकृति की हैं और तमिलनाडु के धान किसानों के हित में हैं।

पेंडिग इश्यू नहीं राष्ट्रीय फाइल बन चुकी है किसानों की मांग

तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने पीएम मोदी की कोयम्बटूर यात्रा को मौके की तरह इस्तेमाल किया है। स्टालिन द्वारा उठाया गया यह मुद्दा सिर्फ कृषि तक सीमित नहीं रहता। यहां किसान कार्ड उठाना राजनीतिक पहचान सांस्कृतिक प्रतिरोध और केंद्र राज्य सरकारों का शक्ति संतुलन का हिस्सा है। संदेश साफ है अगर केंद्र तमिलनाडु में राजनीतिक पैर जमाने की कोशिश करेगा तो उसकी राह खेतों से ही होकर गुजरेगी। शायद यही कारण है कि पीएम मोदी कहीं भी जांए किसान मुद्दे उनके हर दौरे की परछाई की तरह साथ चल पड़ते हैं। कहानी यह नहीं कि स्टालिन ने तीन मुद्दे क्यों उठाए। कहानी यह है कि किसान राजनीति अब बीजेपी सरकार के लिए पेंडिंग इश्यू नहीं बल्कि लगातार पीछा करने वाली राष्ट्रीय फाइल बन चुकी है और 2026-2027 के चुनावी चक्र में यह फाइल किसी भी वक्त गर्म होकर पूरी बहस को अपने आगोश में ले सकती है।

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